खेल मंत्री किरेन रिजिजू जी! खेलेगा या झेलेगा इण्डिया?

लाखों शारीरिक शिक्षक-प्रशिक्षक दो वक्त की रोटी को मोहताज योगी और मोदी जी क्या यही है सबका साथ, सबका विकास? श्रीप्रकाश शुक्ला नई दिल्ली। हमारे देश के होशियार खेल मंत्री किरेन रिजिजू 2028 ओलम्पिक खेलों को लेकर एक बड़ा लक्ष्य तय कर चुके हैं। लक्ष्य है मेडल टैली में शीर.......

मीडिया और खेलतंत्र का गठजोड़ खेलहित में नहीं

खिलाड़ी और 90 फीसदी प्रशिक्षक खेल एसोसिएशनों से लाचार नई दिल्ली। विगत दिवस खेलों में बदलते भारत पर चर्चा के लिए मुझे अपने विचार व्यक्त करने को आमंत्रित किया गया। इस आयोजन से जुड़े लोगों को उम्मीद थी कि मैं अपने उद्बोधन में खेलतंत्र और खेल एसोसिएशनों की वाहवाही करूंगा लेकिन मैं देश में खेलों के उत्थान के लिए खेलतंत्र तथा मीडिया के गठजोड़ को उपयुक्त नहीं मानता, मेरी नजर में यह अभिशाप है। .......

भूखे पेट स्वस्थ राष्ट्र की संकल्पना

भारत में चोरों के हाथ खेल प्रबंधन नीति निर्धारकों में प्रतिबद्धता का अभाव श्रीप्रकाश शुक्ला हमारे खेलनहार इन दिनों भारतीय खेलप्रेमियों को टोक्यो ओलम्पिक में अधिक से अधिक पदक जीत लेने का सपना दिखा रहे हैं तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने मन की बात में स्वस्थ राष्ट्र की संकल्पना को फलीभूत होते देखना.......

आसान नहीं सुशील बनना

पहलवानों का मंदिर है नई दिल्ली का छत्रसाल अखाड़ा श्रीप्रकाश शुक्ला नई दिल्ली। आज के समय में जहां थोड़ी सी सफलता मनुष्य का मिजाज बदल देती है वहीं कुछ ऐसी शख्सियतें भी हैं जिन पर शोहरत का नशा चढ़ने की बजाय वे सिर्फ अपने काम से वास्ता रखती हैं। ऐसी ही शख्सियतों में शुमार हैं दो बार के ओलम्पिक पदक विजेता खेल रत्न सुशील कुमार। गत दिवस नई दिल्.......

सिर्फ कागजों में बेटियों का प्रोत्साहन

बेटी पढ़ाओ, बेटी बढ़ाओ सिर्फ तमाशा श्रीप्रकाश शुक्ला समय तेजी से बदल रहा है लेकिन नारी शक्ति का तरफ नजर डालें तो उनकी प्रगति आज भी कछुआ चाल ही है। हमारी हुकूमतें बेटियों के प्रोत्साहन पर खर्च होने वाला पैसा सिर्फ कागजों पर जाया कर रही हैं। पिछले दो दशक में हर राज्य सरकार ने खेलों के बजट में बढ़ोत्तरी की है तो बेटी पढ़ाओ, बेटी बढ़ाओ पर अरबों रुपये खर्च किए गए लेकिन इससे बेटियों का कितना भला हुआ इस तरफ किसी सरकार ने संजीदगी से ध्यान नह.......

खिलाड़ी, खेल प्रशिक्षक और खेल पत्रकारिता

आओ खेलों के विकास का संकल्प लें श्रीप्रकाश शुक्ला हर जीव जन्म से ही उछल-कूद शुरू कर देता है। हम कह सकते हैं कि खेलना हर जीव का शगल है। दुनिया पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि आम इंसान जब काम पर नहीं होता तो उसके जेहन में खेलने की लालसा बलवती हो जाती है। खेल बिना जीवन के कोई मायने भी नहीं हैं। जीत-हार हमारे लिए किसी प्रेरणा-पुंज से कम नहीं होती। असफलता ही ह.......

तंज पर रंज न कर छुआ आसमान

सपने सी लगती है स्वप्ना बर्मन की सफलता श्रीप्रकाश शुक्ला ग्वालियर। बुखार, टीबी, रक्तचाप, मधुमेह, थायराइड, आप अनेक बीमारियों के नाम.......

उम्मीदों का बोझ ढोती खिलाड़ी बेटियां

दिव्या काकरान ने बढ़ाया प्रेमनाथ अखाड़े का मान श्रीप्रकाश शुक्ला नई दिल्ली। बेटियों को बोझ मानने वालों को हम बता दें कि बेटियां ताउम्र अपने घर-परिवार के साथ ही समाज की उम्मीदों का भी बोझ उठाती हैं। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की रहने वाली (फिलहाल दिल्ली निवासी) दिव्या काकरान इस बात का जीता जागता उदाहरण है। पहलवान दिव्या ने अपने करिश्माई प.......

बेटियों से लाड़-प्यार

केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री ने पानीपत में जिस ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत की थी, उसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं। जो राज्य कभी नकारात्मक लिंगानुपात में असंतुलन के लिये जाना जाता था, वहां संतुलन की दिशा में धनात्मक रुझान नजर आ रहा है। कुछ अपवाद छोड़ दें तो अधिकांश जनपदों में सकारात्मक बदलाव देखने को मिला है। नई पीढ़ी की प्रगतिशील सोच ने इसमें सकारात्मक भूमिका निभाई है। अब हरियाणा में यह समझ विकसित ह.......

खेल हुकूमतें नजर नहीं, नजरिया बदलें

भारत अपनी आजादी के 73 जश्न मना चुका है लेकिन हमारे खिलाड़ी आज भी खेलतंत्र की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं। खराब प्रदर्शन पर हम उन खिलाड़ियों को भला-बुरा कहते हैं जोकि अपना सब कुछ दांव पर लगाकर देश का गौरव बढ़ाने की कोशिश करते हैं। हर बड़ी खेल प्रतियोगिता के बाद हमारा खेलतंत्र उन खिलाड़ियों के प्रदर्शन का विश्लेषण करता है जिनके प्रोत्साहन में उसका लेशमात्र भी योगदान नहीं होता। खिलाड़ियों की समीक्षा करने की बजाय हमारे निठल्ले खेलतंत्र को मनन-मंथन करना चाहिए कि आखिर वह .......