हिमा दास यूं ही नहीं बनीं 'स्वर्ण परी'

'मेरे जुनूं का नतीजा जरूर निकलेगा, इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा'
खेलपथ प्रतिनिधि
नई दिल्ली।
हमारे समाज में जितना योगदान पुरुषों का है उतना ही महिलाओं का भी योगदान है। मगर फिर भी उन्हें कई बार बराबरी का हक नहीं मिल पाता है। महिलाओं के अदृश्य संघर्ष को सलाम करने के लिए, उन्हें समान अधिकार और सम्मान दिलाने के उद्देश्य से हर साल आठ मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। तो आइए इस खास मौके पर हम आपको बताते हैं 'ढिंग एक्सप्रेस' के नाम से मशहूर अनुभवी स्टार फर्राटा धाविका हिमा दास की जिंदगानी के बारे में। 
जानते हैं कि कैसे उन्होंने फर्श से अर्श तक का सफर तय किया। भारत की उड़न परी के नाम से मशहूर महिला एथलीट हिमा दास ने अपनी जिंदगी में कई अड़चनों को पार किया है तब जाकर उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई। 21 साल की हिमा ने अपनी कड़ी मेहनत से एक-एक सपने को साकार किया। एशियाई खेलों की रजत पदक विजेता और जूनियर विश्व चैम्पियन हिमा दास ने शुक्रवार को तीसरी इंडियन ग्रांप्री (आईजीपी) में स्वर्ण पदक जीता। हिमा ने महिलाओं की 100 मीटर स्पर्धा में 11.67 सेकेंड के साथ गोल्ड मेडल पर कब्जा किया। हिमा के अलावा पंजाब की अमृत कौर भी इस स्पर्धा में भाग ली थीं लेकिन उन्हें कोई पदक नहीं मिला।
नौ जनवरी, 2000 को असम के एक छोटे से गांव कांधूलिमारी (नगांव जिला) में जन्मी हिमा को यूं ही नहीं भारतीय एथलेटिक्स इतिहास की स्वर्ण परी कहा जाता है। इसके लिए उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। हीमा रणजीत दास (पूरा नाम) अपने स्कूल के दिनों में लड़कों के साथ फुटबॉल खेला करती थीं। वो अपना करियर फुटबॉल में देख रही थीं और भारत के लिए खेलने की उम्मीद संजोकर रखी थी। अजीज शायर अमीर कजलबाश के शब्दों में कहें तो, 'मेरे जुनूं का नतीजा जरूर निकलेगा, इसी सियाह समुंदर से नूर निकलेगा'। कजलबाश की यह पंक्ति हिमा पर सटीक बैठती है। 
हिमा दास को 25 सितम्बर 2018 को राष्ट्रपति द्वारा अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति भवन में पुरस्कार हासिल करने के बाद हिमा ने कहा था, 'मेरा लक्ष्य अपने समय में लगातार सुधार करना है। मैं टाइमिंग के लिए दौड़ती हूं, पदक के लिए नहीं। अगर मेरी टाइमिंग बेहतर होगी तो पदक मुझे खुद ही मिल जाएगा। मैं खुद पर पदक का दबाव नहीं बनाती। इसलिए मेरा लक्ष्य पदक नहीं पिछली बार से बेहतर प्रदर्शन करना होता है।
कहते हैं न सबसे ज्यादा खुशी इंसान को तब होती हैं, जब उसके सपने सच होते हैं। हिमा दास को 26 फरवरी 2021 को असम पुलिस में उप अधीक्षक (डीएसपी) बनाया गया। असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने एक समारोह के दौरान हिमा को नियुक्ति पत्र सौंपा। इस मौके पर पुलिस महानिदेशक समेत शीर्ष पुलिस अधिकारी और प्रदेश सरकार के अधिकारी मौजूद थे। हिमा ने इसे बचपन का सपना सच होने जैसा बताया। इस दौरान उन्होंने कहा कि एथलेटिक्स करियर जारी रहेगा।
हिमा ने कहा कि वह बचपन से पुलिस अधिकारी बनने का सपना देखती आई हैं। उसने कहा, 'यहां लोगों को पता है। मैं कुछ अलग नहीं कहने जा रही। स्कूली दिनों से ही मैं पुलिस अधिकारी बनना चाहती थी और यह मेरी मां का भी सपना था।' उन्होंने कहा 'वह (हिमा की मां) दुर्गापूजा के दौरान मुझे खिलौने में बंदूक दिलाती थी। मां कहती थी कि मैं असम पुलिस की सेवा करूं और अच्छी इंसान बनूं।' एशियाई खेलों की रजत पदक विजेता और जूनियर विश्व चैम्पियन हिमा ने कहा कि वह पुलिस की नौकरी के साथ खेलों में अपना करियर भी जारी रखेगी। हिमा ने कहा, 'मुझे सब कुछ खेलों की वजह से मिला है। मैं प्रदेश में खेल की बेहतरी के लिए काम करूंगी और असम को हरियाणा की तरह सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला राज्य बनाने की कोशिश करूंगी। असम पुलिस के लिए काम करते हुए अपना कैरियर भी जारी रखूंगी।'

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