भारत के भाल पर भवानी का तिलक
तलवार की धार पर चलने वाली भवानी का भावुक करने वाला है संघर्ष
देश भर में 50 तलवारबाजी अकादमियां खोलेंगे राजीव मेहता
श्रीप्रकाश शुक्ला
नई दिल्ली। मेहनत कभी अकारथ नहीं जाती, उसका देर-सबेर फल जरूर मिलता है, यह साबित किया है तलवार की धार पर चलते हुए चेन्नई की भवानी देवी ने। ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय तलवारबाज सीए भवानी देवी ने कहा कि वह टोक्यो ओलम्पिक खेलों के लिए इतनी बेताब थीं कि उन्होंने अपनी रैंकिंग में सुधार करने के लिए चोटों के बावजूद टूर्नामेंटों में हिस्सा लिया।
भवानी देवी ने समायोजित अधिकारिक रैंकिंग (एओआर) प्रणाली के जरिए टोक्यो खेलों का टिकट कटाया। वह 2016 रियो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करने में विफल रही थीं। उन्होंने कहा कि वह नहीं जानती थीं कि टूर्नामेंट का चयन किस तरह से करे इसलिए उसने सभी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। भवानी ने वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा, 'क्योंकि यह मेरे लिए पहली बार था सो मैंने दोगुने प्रयास किए। मैं नहीं जानती थी कि सभी टूर्नामेंट में भाग लेना सही था या नहीं। मैं किसी भी चीज को छोड़ना नहीं चाहती थी।'
भवानी ने कहा, 'इसलिए मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ करने की कोशिश की और सभी टूर्नामेंट में शिरकत की। यहां तक अगर मुझे थोड़ी चोट भी होती तो मैंने स्पर्धाओं में भाग लेने की कोशिश की। मैं कुछ अंक हासिल करने के लिए ऐसा करना चाहती थी और एशियाई क्षेत्र क्वालीफिकेशन में अपनी रैंकिंग लाना चाहती थी। इन सभी प्रयासों और त्याग ने मुझे अपना सपना पूरा करने में मदद की।'
चेन्नई की 27 वर्षीय तलवारबाज को लगता है कि भारतीय फेंसर (तलवारबाजों) को ज्यादा अनुभवी यूरोपीय प्रतिद्वंद्वियों से भिड़ने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे क्योंकि यह खेल यहां नया है और अब भी पैर जमा रहा है। उन्होंने कहा, 'मुझे इस खेल को चुनने के फैसले के संबंध में कभी भी कोई संदेह नहीं था, भले ही नतीजे अच्छे रहें या खराब, मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ किया। मैंने हमेशा खुद को सुधारने का प्रयास किया और टूर्नामेंट में बेहतर किया।'
भवानी ने कहा, 'भारत में तलवारबाजी क्योंकि नया खेल है सो यह अभी आगे बढ़ रहा है, लेकिन इटली या किसी अन्य देश में खिलाड़ी 100 से ज्यादा वर्षों से इसे खेल रहे हैं। इसलिए हमें उस स्तर तक पहुंचने के लिए अन्य देशों से दोगुनी मेहनत करनी होगी।'
उन्होंने कहा, 'इसलिए मैंने हमेशा कड़ी मेहनत की, जैसे मैं दिन में तीन सत्र में अभ्यास करती और शनिवार को भी ट्रेनिंग करती इसलिए मैं यहां तक पहुंचने में सफल रही।' भवानी ने कहा, 'अगर मैं ट्रेनिंग में जरा भी कमी कर देती तो मैं यहां तक नहीं पहुंच पाती। हमें तलवारबाजी में काफी पैसा खर्च करना होता है क्योंकि मुझे ज्यादा अंक जुटाने के लिए काफी सारे टूर्नामेंट में हिस्सा लेना पड़ा तो इसमें अन्य का सहयोग भी काफी अहम रहा।'
शुरुआती दिनों की परेशानियों के बारे में बात करते हुए इस तलवारबाज ने उन दिनों को याद किया जब इस खेल से जुड़ने के लिए उन्होंने स्कूल में झूठ भी बोला था। उन्होंने कहा, 'उन्होंने मुझसे मेरे पिता की सालाना आय पूछी थी और कहा कि तलवारबाजी बहुत महंगा खेल है, अगर तुम गरीब परिवार से हो तो तुम इसका खर्चा नहीं उठा पाओगी। लेकिन मैंने झूठ बोला और अपने पिता की आय ज्यादा बता दी।'
बांस की लकड़ियों से खेला करते थे
उन्होंने कहा, 'शुरू में जब तलवार काफी महंगी होती तो हम बांस की लकड़ियों से खेला करते थे और अपनी तलवार केवल टूर्नामेंट के लिए ही इस्तेमाल करते थे क्योंकि अगर ये टूट जातीं तो हम फिर से इनका खर्चा नहीं उठा सकते थे और भारत में इन्हें खरीदना आसान नहीं है, आपको ये आयात करनी पड़ती है।'
भारतीय तलवारबाजी संघ के अध्यक्ष राजीव मेहता भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे, उन्होंने कहा, 'हम देश भर में 50 तलवारबाजी अकादमियां खोल रहे हैं। प्रत्येक अकादमी में 20 से 30 खिलाड़ी होंगे।' उन्होंने कहा, 'जिला स्तर पर भी हम 50 केंद्र खोलेंगे। खेल मंत्री ने भी हमसे 31 मार्च तक 20 करोड़ रुपये खर्च करने को कहा है तो हमें यह लक्ष्य 31 मार्च तक पूरा करना है। यह पहली बार है जब तलवारबाजी को सरकार से इतना सहयोग मिला है।'
बेटी की ट्रेनिंग के लिए मां ने गिरवी रख दिए थे गहने
तलवारबाजी ऐसा खेल है जो ओलम्पिक खेलों की शुरुआत के साथ ही इसका हिस्सा बन गया लेकिन 125 सालों तक कोई भारतीय इसके लिए क्वालीफाई तक नहीं कर पाया था। अब भारत की बेटी भवानी ने ये करिश्मा कर दिखाया है। भवानी देवी टोक्यो ओलम्पिक में क्वालीफाई करने के साथ ही ओलम्पिक में जगह बनाने वाली पहली भारतीय तलवारबाज बन गई हैं।
पुजारी के घर में जन्मी भवानी
तमिलनाडु के चेन्नई में 27 अगस्त, 1993 को एक पुजारी सी. सुंदररमन के घर में बेटी हुई तो उन्होंने देवी के सम्मान में बेटी का नाम भवानी देवी रखा, शायद इस उम्मीद में कि वह बेटी आगे चलकर देवी जैसा ही कुछ करेगी। आज वह भवानी वास्तव में पूरे देश की भवानी बन गई है। भवानी देवी का पूरा नाम चदलवदा आनंद सुंदररमन भवानी देवी है। दोस्त और जानने वाले सीए भवानी देवी कहकर बुलाते हैं। ओलम्पिक में क्वालीफाई करने के बाद आज पूरे देश में 27 वर्षीय भवानी देवी के नाम की चर्चा है लेकिन उनका यहां तक का सफर बहुत आसान नहीं रहा है। निम्न मध्यवर्गीय परिवार से चलकर इस मुकाम तक पहुंचने वाली भवानी देवी की तैयारी के लिए उनकी मां ने अपने गहने तक गिरवी रख दिए थे।
भवानी देवी इसके लिए अपने परिवार का शुक्रिया अदा करना नहीं भूलतीं। वह कहती हैं कि वह आज जिस मुकाम पर हैं, अपने परिवार की बदौलत हैं। उन्होंने कहा "मेरी मां ने मेरी इच्छाओं को पूरा करने के लिए अपने गहने तक गिरवी रख दिए। लोगों से उधार लेकर मुझे प्रतियोगिता में हिस्सा लेने भेजा।" भवानी देवी को जब इतनी बड़ी सफलता मिली है तो उन्हें खुशी के साथ ही अपने पिता के इस अवसर पर साथ नहीं होने का बहुत दुख है। भवानी देवी के पिता की 2019 में मौत हो गई थी।
मजबूरी में चुनी थी तलवारबाजी
भवानी देवी के जीवन में तलवारबाजी बस अचानक ही आई थी। साल था 2004 और वह स्कूल बदलकर छठीं कक्षा में पहुंची थीं। यहां उन्हें कोई एक खेल चुनना था और जब तक वह किसी नतीजे पर पहुंचती, बाकी के सभी खेलों में सीट फुल हो चुकी थी। आखिर में भवानी देवी के पास तलवारबाजी को चुनने के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। वह कहती हैं कि उसके पहले उन्होंने इसका नाम भी नहीं सुना था लेकिन जब उन्होंने तलवार पकड़ी तो उन्हें खूब पसंद आई।
उनके जीवन में पहला बड़ा मौका तब आया जब तीन साल बाद स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) के कोच सागर लागू की नजर उन पर पड़ी और उन्हें केरल के थलास्सेरी स्थित साई एकेडमी में ट्रेनिंग के लिए आमंत्रित किया। थलास्सेरी स्थित साई की एकेडमी देश में उन गिने-चुने संस्थानों में है जहां पर तलवारबाजी की ट्रेनिंग दी जाती है। हाईस्कूल की परीक्षा देने के बाद भवानी देवी ने साई एकेडमी ज्वाइन कर ली।
पहले अंतरराष्ट्रीय दौरे में ब्लैक कार्ड
पहली बार तलवारबाजी चुनने की तरह इस खेल का पहला अंतरराष्ट्रीय अनुभव भी उनके लिए अच्छा नहीं रहा था। तुर्की में अपने पहले ही अंतरराष्ट्रीय दौरे में उन्हें तीन मिनट लेट पहुंचने की वजह से रेफरी ने ब्लैक कार्ड दिखा दिया था। ये तलवारबाजी में दी जाने वाली सबसे बड़ी सजा है और इसके चलते उन्हें टूर्नामेंट से बाहर होना पड़ा था।
भारत जैसे देश में जहां पर यह खेल बहुत ज्यादा लोकप्रिय नहीं है उसमें ट्रेनिंग और तैयारी भी काफी मुश्किल काम था। खासतौर पर जब न तो इसके ज्यादा टूर्नामेंट होते हैं और न ही अच्छे कोच और खेल की बारीकियां समझने वाले विशेषज्ञ ही मौजूद हैं।
ओलम्पिक क्वालीफाई के अलावा ये रिकॉर्ड भी नाम
भवानी देवी न केवल ओलम्पिक में क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय तलवारबाज (फेंसर) हैं बल्कि उन्हें इस खेल में कई और रिकॉर्ड अपने नाम किए हैं। वह पहली भारतीय हैं जिसने फिलीपींस में आयोजित एशियन चैम्पियनशिप 2014 में अंडर 23 कैटेगरी में सिल्वर मेडल जीता था। साथ ही वह 2019 में कैनबरा में आयोजित सीनियर कॉमनवेल्थ फेंसिंग चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय बनीं।
इसकी शुरुआत हुई थी 2009 में जब भवानी ने मलेशिया में आयोजित राष्ट्रमंडल चैम्पियनशिप में कांस्य जीता। इसके बाद उन्होंने 2010 इंटरनेशनल ओपन, 2010 कैडेट एशियन चैम्पियनशिप, 2012 कॉमनवेल्थ चैम्पियनशिप, 2015 अंडर -23 एशियाई चैम्पियनशिप और 2015 फ्लेमिश ओपन में कांस्य पदक जीतकर उभरती भारतीय खिलाड़ी बनीं।
जब इस खेल को छोड़ने का बना लिया था मन
भवानी की जिन्दगी में एक मौका ऐसा भी आया जब उन्होंने तलवारबाजी को अलविदा कहने का मन बना लिया था। बातचीत में उन्होंने कहा "मेरे परिवार ने बहुत पैसा खर्च किया था। बहुत सारे बिजनेस से जुड़े लोग भी थे जो मुझे स्पॉन्सर करने के लिए आगे थे लेकिन फिर भी इसके लिए जरूरी उपकरण और खर्च बहुत महंगे थे और मैं इन चीजों का इंतजाम करते-करते थक चुकी थी। 2013 में मेरे मन में इसे छोड़ने का विचार आने लगा था।"
यही समय था जब वह गो स्पोर्ट्स फाउंडेशन स्कॉलरशिप प्रोग्राम के लिए चुनी गईं और फिर उनकी सारी मुश्किलें आसान हो चुकी थीं। 2016 में वह इटली शिफ्ट हो गईं और तलवारबाजी के नए अध्याय के लिए खुद को तैयार करना शुरू कर दिया। एक ऐसे खेल के बारे में जिसे चुनते वक्त वह इसके बारे में कुछ नहीं जानती थीं आज इससे पूरी तरह प्यार है। वह कहती हैं "मैं तलवार, जैकेट और मास्क से प्यार करती हूं।"