डोपिंग के बढ़ते मामलों से खेल मंत्रालय सकते में
शर्मनाकः शक्तिवर्धक दवाओं के सेवन में भारतीय खिलाड़ी दुनिया में नम्बर वन
श्रीप्रकाश शुक्ला
नई दिल्ली। टोक्यो ओलम्पिक खेल शुरू होने में अब चार माह से भी कम समय बचा है लेकिन भारत के नामचीन खिलाड़ी लगातार डोपिंग में पकड़े जा रहे हैं। खिलाड़ियों की इस हरकत से खेल मंत्रालय भी सकते में है। नाडा के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि डोपिंग में पकड़े जा रहे खिलाड़ियों की सूची लम्बी है। इस कुलक्षण पर समय रहते काबू न पाया गया तो भारत खेल बिरादर से भी बाहर हो सकता है। सच कहें तो भारतीय खिलाड़ी शक्तिवर्धक दवाओं के सेवन में रूस और अमेरिका को भी पीछे छोड़ चुके हैं।
खिलाड़ियों को यदि शक्तिवर्धक दवाओं के सेवन से बचाना है तो भारत में डोपिंग मामलों पर नजर रखने वाली संस्था नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी (नाडा) को सबसे पहले मजबूत करने की जरूरत है। नाडा के पास फण्ड के साथ-साथ स्टाफ की भी कमी है। अधिकतर समय सैम्पल जुटाने या अन्य कार्यों के लिए नाडा को छोटे-छोटे समय के कॉन्ट्रेक्ट पर लोगों को रखना पड़ता है। इस वजह से 10 करोड़ के उसके सालाना बजट में से करीब एक करोड़ कॉन्ट्रेक्ट पर रखे गए स्टाफ पर ही खर्च हो जाते हैं। लोगों की कमी के कारण कई बार वह बड़े इवेंट भी मिस कर जाती है।
साल 2018-19 में भारत में कुल 187 मामले ऐसे रहे, जहां डोपिंग नियमों का उल्लंघन हुआ। शूटर रवि कुमार, बॉक्सर सुमित सांगवान, शॉट पुटर मनप्रीत कौर और इंद्रजीत सिंह, क्रिकेटर पृथ्वी साव जैसे बड़े नाम भी डोपिंग में पकड़े जा चुके हैं। देखा जाए तो पिछले कुछ वर्षों में खेल मंत्रालय द्वारा यह कोशिश की जा रही है कि ओलम्पिक में भारत के प्रदर्शन में सुधार हो। सरकार खिलाड़ियों की हर तरह से मदद करने की कोशिश में लगी हुई है। वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) ने जो आंकड़े जारी किए हैं उसे देखकर लग रहा है कि खिलाड़ी खेल पर कम और उससे खिलावाड़ में ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। साल 2019 में भारत पॉजिटिव डोप टेस्ट के मामलों में रूस और अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए शीर्ष पर पहुंच गया है।
वाडा के जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत की डोपिंग एजेंसी नाडा (नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी) ने साल 2019 में कुल 4004 सैम्पल लिए थे, इनमें से 5.6 प्रतिशत खिलाड़ियों की डोपिंग रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी। इन 4004 में से 1879 सैम्पल टूर्नामेंट के दौरान लिए गए थे जिसमें से 148 पॉजिटिव पाए गए। वहीं 1971 सैम्पल टूर्नामेंट के बाहर लिए गए जिसमें से 76 डोपिंग करते पाए गए। खेलों की बात करें तो डोपिंग के मामले में सबसे आगे एथलीट रहे। पॉजिटिव पाए गए खिलाड़ियों में 35 एथलीट, 32 वेटलिफ्टर और 12 रेसलर शामिल थे। हाल के कुछ नामों को और जोड़ दिया जाए तो स्थिति काफी चिन्ताजनक है।
डोपिंग के आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत के बाद दूसरे स्थान पर अमेरिका है जहां 2019 में 195 पॉजिटिव केस पाए गए थे। रूस डोपिंग के मामले में सबसे ज्यादा खबरों में रहा है। डोपिंग के बढ़ते मामलों के कारण ही रूस पर ओलम्पिक में हिस्सा लेने पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया। 2019 में रूस सबसे ज्यादा डोपिंग के मामलों में तीसरे स्थान पर रहा। भारत के लिए इस साल परेशानियां कम होती नहीं दिख रही हैं क्योंकि कई डोपिंग केसों की सुनवाई चल रही है, ऐसे में मुमकिन है कि पॉजिटिव केसों की संख्या बढ़ेगी। पिछला एक साल कोरोना संक्रमण में चला गया बावजूद एडीआरवी की सूची में भारत टॉप पर है। इससे पहले भारत 2013, 2014, 2015 में तीसरे, 2016 में छठे और 2017 में सातवें स्थान पर रहा था। आंकड़े बताते हैं कि भारतीय खिलाड़ी नाम और शोहरत के लिए मुल्क की अस्मिता से खिलवाड़ कर रहे हैं। जानकार कहते हैं कि प्रतिस्पर्धा जितनी बढ़ेगी, डोपिंग के मामले भी उतने ही बढ़ेंगे। अगर इस पर कंट्रोल करना है तो वाडा को निष्पक्ष होकर कड़ाई से अपने नियमों का पालन करवाना होगा।
क्या कहते हैं खेल मंत्री किरेन रिजिजू
खेल मंत्री किरेन रिजिजू भी देश में डोपिंग के मामले बढ़ने से परेशान हैं। उन्होंने कहा था कि ये मामले ‘काफी परेशान’ करने वाले हैं और देश में स्वच्छ खेल संस्कृति का विकास करने की जरूरत है ताकि विदेश में ऐसे मामलों में पकड़े जाने के बाद हमारी छवि खराब न हो। उन्होंने कहा कि भारत को एक स्वच्छ खेल राष्ट्र बनने के लिए ऐसे मामलों में शामिल होने वालों को पकड़ना चाहिए और अज्ञानता के कारण इसमें फंसने वालों को शिक्षित करने के भी प्रयास होने चाहिए।
विश्व डोपिंग विरोधी संस्था (वाडा) का काम
विश्व डोपिंग विरोधी संस्था (वाडा) अंतरराष्ट्रीय खेलों में ड्रग्स के बढ़ते चलन को रोकने हेतु बनाई गयी एक विश्वस्तरीय स्वतंत्र संस्था है। अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति द्वारा वाडा की स्थापना 10 नवम्बर, 1999 को स्विट्जरलैंड के लुसाने शहर में की गई थीष वर्तमान में वाडा का मुख्यालय कनाडा के मॉन्ट्रियल शहर में है। यह संस्था विश्वभर में वैज्ञानिक शोध, एंटीडोपिंग के विकास की क्षमता में वृद्धि तथा दुनिया भर में विश्व एंटी डोपिंग कोड पर अपनी निगाह रखती है। वाडा प्रत्येक साल प्रतिबंधित दवाओं की सूची जारी करता है। विश्व के सभी देशों में खेलों के दौरान प्रतिबंधित दवा के प्रयोग पर रोक होती है। विश्व डोपिंग विरोधी कोड का अनुपालन पहली बार साल 2004 के एथेंस ओलम्पिक में किया गया था।