जानिए ऊंची कूद में नेशनल चैम्पियन कैसे बनी पूजा सिंह

पिता मजदूर, फटे जूतों और घास के बोरों से किया अभ्यास

खेलपथ संवाद

नई दिल्ली। जब एथलीट पूजा सिंह ने दक्षिण कोरिया के गामी में 2025 एशियाई एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में ऊंची कूद में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता, तो पूरी दुनिया देखती रह गई। प्रतियोगिता के इतिहास में महिलाओं की ऊंची कूद में भारत का यह दूसरा पदक था।

उनसे पहले, बॉबी एलॉयसियस एशियाई चैम्पियनशिप में ऊंची कूद में पदक जीतने वाली एकमात्र भारतीय महिला थीं। यह जीत इसलिए भी खास है कि भारत का 25 साल का इंतजार खत्म हो गया। साथ ही पूजा एशियाई ऊंची कूद का खिताब जीतने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय बन गईं। पूजा सिंह की स्वर्णिम छलांग इस बात का शानदार उदाहरण है कि दृढ़ संकल्प, परिवार व कोच का साथ किस तरह से जीवन में बदलाव ला सकता है। हरियाणा के एक छोटे से गांव से एशियाई पोडियम (पदक तालिका में शीर्ष तीन स्थान) के शीर्ष तक की उनकी यात्रा कड़ी मेहनत का प्रतीक है।

पूजा सिंह हरियाणा के बोस्ती गांव के साधारण परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनका जन्म एक ऐसी जगह पर हुआ, जहां महिला होना आसान नहीं है, लेकिन पूजा को माता-पिता का साथ मिला। उनके पिता हंसराज भी एक कबड्डी खिलाड़ी बनना चाहते थे, लेकिन परिवार का भरण-पोषण करने के लिए परिस्थितियों ने उन्हें राजमिस्त्री बनने पर मजबूर कर दिया। शुरुआत में वह योग और जिमनास्टिक के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहती थीं, इसके लिए दो साल तक ट्रेनिंग भी ली। लेकिन वर्ष 2018 में एक स्थानीय योग शिविर में कोच बलवान सिंह पात्रा से उनकी मुलाकात हुई और उन्होंने ही पूजा को ऊंची कूद में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।

गंभीर चोट के कारण पूजा को पंद्रह महीने तक खेल से दूर रहना पड़ा। लेकिन उनका समर्पण अटूट था, इस परिस्थिति में भी उन्होंने अपना हौसला बनाए रखा और ठीक होकर फिर से अभ्यास करने लगीं। इस परिस्थिति ने उन्हें और मजबूत बनाया। उसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय अंडर-16 रिकॉर्ड बनाया और लगातार उनकी रैंकिंग में सुधार होता गया। आखिरकार उन्होंने एशियाई अंडर-18 चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता और गुमी में 1.89 मीटर की छलांग के साथ अपना खुद का अंडर-20 का रिकॉर्ड तोड़ दिया।

कोच बलवंत ने पूजा सिंह की एथलेटिक क्षमता और काबिलियत को पहचानते हुए, पूजा को एक हाई जंपर के रूप में प्रशिक्षित करना शुरू किया, लेकिन उनके सामने समस्या यह थी कि जिस अकादमी में पूजा प्रशिक्षण ले रही थीं, वहां खेल की सुविधाएं तो दूर, जम्पिंग मैट तक नहीं था। इसकी कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने पराली जैसे कृषि अपशिष्ट व घास की बोरियों का इस्तेमाल किया। क्रॉसबार की जगह धूल भरे मैदानों में बांस के खंभों का उपयोग तथा एक रबर टायर को स्प्रिंगबोर्ड के रूप में इस्तेमाल कर अभ्यास करती रहीं। दो से तीन साल तक अभ्यास करने के बाद उन्हें एक पुराना मैट मिला।

18 वर्षीय हाई जम्पर पूजा सिंह जब दक्षिण कोरिया में एशियाई एथलेटिक्स चैम्पियनशिप-2025 में हिस्सा लेने वाली थीं, तो अभ्यास सत्र के दौरान उनके बाएं पैर के जूते में लगा स्पाइक टूट गया। इससे उनका जूता फट गया और जमीन पर सही से पकड़ भी नहीं बन पा रही थी। उनके पास एक जोड़ा स्पाइक और था, लेकिन जब उन्होंने उस स्पाइक्स को पहना तो उन्हें लगा कि यह अपनी छलांग को नियंत्रित नहीं कर सकती। लेकिन जमीन से जुड़ी हुई पूजा सिंह के लिए कभी भी कोई परिस्थिति ऐसी नहीं रही, जो उन्हें कमजोर कर सके। उन्होंने फटे हुए स्पाइक्स को काइनेसियोलॉजी टेप से चिपका कर खेलने का फैसला किया।

पूजा 2023 से ही भारतीय ट्रैक और फील्ड में अपना नाम बना रही थीं जब 16 साल की उम्र में उन्होंने 1.82 मीटर के तत्कालीन युद्ध राष्ट्रीय रिकॉर्ड के साथ एशियाई अंडर 18 चैम्पियनशिप 2023, ताशकंद में स्वर्ग पदक जीता था। उन्होंने एशियाई अण्डर-20 चैम्पियनशिप 2023, येचेओन में रजत पदक प्राप्त किया। इतना ही नहीं पूजा ने राष्ट्रमंडल युवा खेल 2023, त्रिनिदाद और टोबैगों में कांस्य पदक भी जीता है।

युवाओं को सीखः कड़ी मेहनत अनुशासन और समर्पण से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। जिंदगी में ऐसी कोई चुनौती नहीं है, जो आपको आपके सपनों को हासिल करने से रोक सके। तब तक मेहनत करें, जब तक आप अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लें। सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता है। खुद पर भरोसा रख मेहनत करते रहें, एक दिन कामयाबी जरूर मिलेगी।

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