सबका प्यारा, सबसे न्यारा नीरज हमारा

पानीपत के लाल का हंगरी में कमाल
ओलम्पिक के बाद अब बना विश्व चैम्पियन
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
आज खेल दिवस की औपचारिता मनाने में देश मशगूल है लेकिन समूची दुनिया में इस वक्त हिन्दुस्तान के लाल नीरज चोपड़ा की ही बातें हो रही हैं। ओलम्पिक के बाद विश्व चैम्पियन बन नीरज चोपड़ा ने खेलों के कई मिथक तोड़ दिए हैं। पानीपत के लाल नीरज ने देश को जो इज्जत दिलाई है, वह अप्रतिम है।
राग-रागनियों और पहलवानों के हरियाणा से अब भारत को दुनिया में सबसे सधा भाला फेंकने वाला नीरज चोपड़ा भी मिल गया है। टोक्यो ओलम्पिक में एथलेटिक्स में पहला सोने का तमगा दिलाने वाले नीरज ने फिर इतिहास रचा है। अब उसने रविवार को हंगरी में आयोजित वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में सोना जीता है। पिछले साल विश्व स्पर्धा में नीरज ने रजत जीता था। 
दुनिया की सभी मुख्य स्पर्धाओं में वह स्वर्ण पदक जीत चुका है। सबसे खास बात यह है कि नीरज कभी हार नहीं मानते और अपनी उपलब्धि को अंतिम मानकर संतुष्ट नहीं होते। यही वजह है कि उन्होंने अपने ओलम्पिक रिकॉर्ड से ज्यादा दूर भाला फेंककर सोने का तमगा जीता है। हालांकि, यह उनके श्रेष्ठ प्रदर्शनों में शामिल नहीं है। देश के लिये सबसे बड़ी खुशखबरी यह भी है कि नीरज ने नई पीढ़ी के खिलाड़ियों को भी प्रेरित किया है, यही वजह है कि पहली बार विश्व स्पर्धा के फाइनल में नीरज समेत तीन खिलाड़ी पहुंचे, जिसमें कृष्णा जेना व डीपी मोनू भी शामिल रहे। 
नीरज जब मैदान में उतरते हैं, आत्मविश्वास से भरे नजर आते हैं। वे कई चोटों से उबरे और फिर अपना सर्वश्रेष्ठ देते चले गये। उनके जीवन की सहजता उनकी ऊर्जा है। जीतने के बाद बोले- ‘मेरा वर्ल्ड चैम्पियन होना बताता है कि हम भारतीय कुछ भी कर सकते हैं, जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में।’ उनके आत्मविश्वास का ये आलम है कि वे जब भी मैदान में उतरते हैं तो उनके प्रशंसक मानकर चलते हैं कि वे सोना ही लाएंगे। इसकी मूल वजह उनके हर बार बेहतर प्रदर्शन की ललक और हर प्रतियोगिता में बेहतर करने का जुनून। 
बहरहाल, वर्ल्ड एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में वर्ष 2003 में अंजू जॉर्ज ने कांस्य पदक जीतकर जो शुरुआत की थी, उसे सोने में बदलने में करीब दो दशक लगे, जिसे नीरज ने सम्भव बनाया। ये नीरज के लिये गौरव की बात है कि भारत में 7 अगस्त को उस दिन नेशनल जैवलियन डे मनाया जाता है, जिस दिन नीरज ने ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता था। बहरहाल, हरियाणा का यह खिलाड़ी सोशल मीडिया का नया सितारा है। उनके लम्बे बाल व फुर्तीलेपन की वजह से उनकी तुलना ‘द जंगल बुक’ के नायक ‘मोगली’ से की जाती है। 
निस्संदेह, वे राष्ट्रीय हीरो हैं। कड़े अभ्यास व मेहनत से आज नीरज के खाते में अंडर-20, एशियन गेम्स, राष्ट्रमंडल खेल, डायमंड लीग व ओलंपिक के सुनहरे तमगे हैं और अब निगाहें पेरिस ओलंपिक पर हैं। जिस तरह उन्होंने अपने प्रदर्शन में हर बार लगातार सुधार किया, उससे उम्मीदें बढ़ी हैं। पानीपत के एक गांव से जीवन की शुरुआत करने वाले नीरज ने कभी नहीं सोचा था कि वह दुनिया का नम्बर एक भाला फेंकने वाला बनेगा। कभी कुर्ता-पायजामा पहने अस्सी किलो वजनी नीरज को मित्रमंडली सरपंच जी कहकर सम्बोधित करती थी। फिर फिटनेस की फिक्र हुई। तब पानीपत के स्टेडियम जाने का सिलसिला शुरू हुआ। 
पहले वॉलीबाल खेलना शुरू किया। बाद में दोस्तों के कहने पर जैवलियन थ्रो में हाथ आजमाया।ख ेल में जुनून पैदा हुआ तो बेहतर सुविधाओं के लिये पंचकूला जाना अच्छा समझा। धीरे-धीरे देश के चोटी के खिलाड़ियों से सीखने को मिला और प्रतिस्पर्धा भी शुरू हई। अच्छी सुविधाएं मिलने लगीं। अच्छी गुणवत्ता वाला जैवलियन रास आने लगा। भाले की धार की मार दूर तक होने लगी। साल 2016 आते-आते पता चलने लगा कि भारत के एथलेक्टिस के आकाश में एक ध्रुव तारे का उदय होने वाला है। दरअसल, इसी साल नीरज ने पोलैंड में अंडर ट्वेंटी वर्ग में आयोजित विश्व चैम्पियनशिप में सोने का तमगा जीता। 
निस्संदेह, नीरज की कामयाबी में उन्हें मिली सुविधाओं का भी योगदान है। उन्हें विदेशी कोच मिले। बायोमैकेनिकल विशेषज्ञ मिले। दूर तक भाला फेंकने की सामर्थ्य बढ़ाने वाली जर्मनी की महंगी मशीनें उपलब्ध हुईं। किसी खिलाड़ी को स्वर्णिम लक्ष्य के लिये तपस्या से गुजरना पड़ता है। बहरहाल, भारत को ट्रैक एंड फील्ड स्पर्धाओं के लिये नया चैंपियन मिल गया है। जो लगातार प्रदर्शन में सुधार करके नयी उपलब्धियां हासिल करते जा रहे हैं।   

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