नहीं भर पेट खाना, बेटियों जीतो पदकों का खजाना

बदइंतजामी के साए में सीनियर महिला अंतर जिला हॉकी प्रतियोगिता

खेलपथ प्रतिनिधि

दमोह। खेल कोई भी हो हम अपने खिलाड़ियों से हमेशा स्वर्ण पदक की ही उम्मीद करते हैं। करना भी चाहिए लेकिन तब जब हम उन्हें बेहतर खेल माहौल, रहने को उचित जगह तथा भर पेट पौष्टिक आहार देने की क्षमता रखते हों। हॉकी मध्य प्रदेश की देखरेख में इन दिनों हॉकी दमोह द्वारा आयोजित सीनियर महिला अंतर जिला हॉकी प्रतियोगिता की बदइंतजामियां इस बात का संकेत हैं कि हम सिर्फ खानापूर्ति कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर रहे हैं।

मध्य प्रदेश बेशक खेलों की महाशक्ति न हो लेकिन एक अच्छा मेजबान हमेशा रहा है। दमोह में आयोजित सीनियर महिला अंतर जिला हॉकी प्रतियोगिता में पुश्तैनी खेल के साथ जो मजाक हो रहा है, उससे हॉकी मध्य प्रदेश पर भी उंगली उठ रही है। प्रतियोगिता शुभारम्भ के दिन से ही टीमों में बाहरी जिले की खिलाड़ियों के खेलने की आवाजें उठी हैं तो खिलाड़ी बेटियों की सुरक्षा और उनके खानपान को लेकर भी कनबतियां हो रही हैं। क्या हम वाकई निष्पक्ष और बेहतर आयोजन करने की सामर्थ्य खो चुके हैं या फिर हमें संगठन चलाने के तौर-तरीके नहीं पता।

धुंआ उठा है तो तय है कि आग लगी हुई है। इस प्रतियोगिता में विवादों की शुरुआत पहले ही दिन से हो गई थी, जब हॉकी बड़वानी ने हॉकी जबलपुर पर सात बाहरी खिलाड़ी खेलाने की शिकायत की थी। बड़वानी टीम के प्रमुख ने जबलपुर की सोनम, नेहा, रेनू, मीनू, यतिका, तान्या तथा मोना पर बाहरी होने की बात कही थी। यह दुख की बात है कि हम खिलाड़ी तैयार करने की बजाय बाहरी खिलाड़ियों से पाला फतह करने की निंदनीय कोशिश करते हैं।

दमोह में सीनियर महिला अंतर जिला हॉकी प्रतियोगिता में जो भी हो रहा है, वह ठीक नहीं है। पिछले डेढ़ दशक में मध्य प्रदेश में हॉकी के उत्थान के जो प्रयास किए गए हैं, वे प्रशंसनीय हैं। जबलपुर महिला हॉकी का गढ़ रहा है, संस्कारधानी ने देश को आधा दर्जन से अधिक अंतरराष्ट्रीय हॉकी बेटियां दी हैं। बाहरी खिलाड़ियों को प्रश्रय देने की बजाय बेहतर होता हॉकी के हुक्मरान प्रतिभाओं के प्रोत्साहन की फिक्र किए होते।

इस आयोजन में खिलाड़ियों के खानपान और उनके ठहरने के स्थान को लेकर भी शिकायतें सामने आई हैं। सूत्रों का कहना है कि इस प्रतियोगिता से एक लड़की दो दिन से गायब है। यदि ऐसा है तो वाकई बहुत चिन्ता की बात है। हॉकी के ठेकेदारों को इस बात का इल्म होना चाहिए कि खिलाड़ी से ही आप हैं। बिना खिलाड़ी कैसा संगठन और कैसा पदाधिकारी। तमाम बदइंतजामी के बाद भी यदि हम अपने आपको काबिल खेलनहार मानते हैं, तो लानत है ऐसी सोच को। सवाल अतीत का नहीं, सवाल खिलाड़ियों के पेट और सुरक्षा का है। हम यदि प्रतियोगिता के दौरान खिलाड़ियों को पौष्टिक और गुणवत्तापूर्ण भोजन भी नहीं दे सकते तो हमें खेलों की राजनीति करने की बजाय खेल संगठनों से किनारा कर लेना चाहिए।  

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