अपने भ्रष्टाचार छिपाने निर्दोष हाकी प्रशिक्षक की छीन ली रोजी

दर-दर की ठोकरें खाने के बाद संजीव कुमार ने मांगी आत्महत्या की अनुमति

श्रीप्रकाश शुक्ला

कानपुर। उत्तर प्रदेश में खेलों की अजब लीला है। यहां भ्रष्टाचारियों की बल्ले-बल्ले तो कर्तव्य-निष्ठों की दुर्दशा के अनेकों प्रकरण आसानी से देखने को मिल जाते हैं। एक मामला लगभग साल भर पहले कन्नौज में भी देखने को मिला था, जब भ्रष्टाचार में आकंठ डूबे कुछ खेल अधिकारियों ने स्वयं को बचाने के लिए एक कर्तव्यनिष्ठ हाकी प्रशिक्षक को सेवा से पृथक करने का निन्दनीय कार्य किया था। पीड़ित हाकी प्रशिक्षक संजीव कुमार लगभग एक साल से न्याय के लिए हर उस चौखट पर जा चुका है जहां से उसे उम्मीद थी। अफसोस इस बावरे को क्या पता कि संचालनालय खेल उत्तर प्रदेश की हर साख पर उल्लुओं का कब्जा है। खैर, अब यह पीड़ित प्रशिक्षक संचालनालय खेल के आलाधिकारियों से आत्महत्या की अनुमति मांगकर प्रदेश में खेलों के स्याह सच को ही उजागर कर रहा है।  

पाठकों को हम बता दें कि उत्तर प्रदेश के शिकोहाबाद जिला फिरोजाबाद निवासी 35 वर्षीय संजीव कुमार को बचपन से ही पुश्तैनी खेल हाकी के गिरते स्तर को ऊंचा उठाने का जुनून सवार था सो इन्होंने एलएनआईपीई ग्वालियर से बीपीई तथा एमपीएड करने के बाद भारतीय महिला हाकी टीम के पूर्व प्रशिक्षक बासु थपियाल की देखरेख में बेंगलूर से एक साल का एनआईएस डिप्लोमा किया। हाकी प्रशिक्षण में उच्च तालीम हासिल करने के बाद संजीव ने 2010-11 में एलएनआईपीई ग्वालियर में हाकी का डिप्लोमा हासिल करने वाले छात्र-छात्राओं को हाकी के गुरु सिखाए। मध्य प्रदेश से अपने घर लौटने के बाद संजीव कुमार ने उत्तर प्रदेश खेल विभाग में नौकरी के प्रयास किए और उन्हें मैनपुरी में हाकी की प्रतिभाओं को निखारने का बतौर प्रशिक्षक मौका मिल गया। संजीव ने मैनपुरी, फिरोजाबाद के बाद अलीगढ़ में हाकी की नर्सरी तैयार की जिसमें दर्जनों ऐसे खिलाड़ी निकले जिन्होंने प्रदेश स्तर पर अलीगढ़ सम्भाग का प्रतिनिधित्व किया।

जब संजीव के जीवन में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था ऐसे समय में उन्हें वर्ष 2019 में कन्नौज जिले के सौरिख हरिभानपुर स्थित स्टेडियम में सेवा का अवसर मिला। यहां हाकी खेल की बात तो दूर लोगों ने कभी हाकी देखी भी नहीं थी। जमीन से जुड़े संजीव ने गांव-गांव जाकर न केवल हाकी की अलख जगाई बल्कि कई ऐसी प्रतिभाओं को खोज निकाला जिनमें हाकी सीखने की ललक थी। अपनी मेहनत और लगन से बहुत ही कम समय में संजीव ने लोगों के दिलों में जगह बना ली। 14 और 15 अगस्त को जिला क्रीड़ाधिकारी के मार्गदर्शन तथा जिलाधिकारी की उपस्थिति में संजीव कुमार द्वारा खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की गईं जिनकी हर किसी ने तारीफ की। दो अक्टूबर को उन्होंने पहली बार स्टेडियम में हाकी का मैच कराया तो दीपावली में अपने पैसे से क्रीड़ांगन को रोशन कर विशेष छाप छोड़ी। 17 अगस्त की सुबह संजीव ने स्टेडियम में प्रतिभाओं को हाकी के गुर सिखाए। इसी दिन दोपहर को तत्कालीन जिलाधिकारी रविन्द्र कुमार तथा पुलिस अधीक्षक अमरेंद्र सिंह द्वारा स्टेडियम का औचक निरीक्षण किया गया, जिसमें क्रीड़ा अधिकारी सहित सभी लोग अनुपस्थित पाए गए।

कहते हैं कभी-कभी जौ के साथ घुन भी पिस जाता है। 17 अगस्त को संजीव के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। दरअसल, जिलाधिकारी के निरीक्षण में मुद्दा अनुपस्थित कर्मचारियों का नहीं बल्कि स्पोर्ट्स स्टेडियम की दुर्दशा का था। गलतफहमी ही कहेंगे कि उस दिन जिलाधिकारी रविन्द्र कुमार ने क्रीड़ा अधिकारी रमेश पाल, हॉकी कोच संजीव कुमार, क्रिकेट कोच अमित कुमार के खिलाफ तत्काल कार्रवाई सुनिश्चित की जबकि हॉकी प्रशिक्षक संजीव सुबह के सत्र में ही बच्चों को प्रशिक्षण देकर घर जा चुके थे। देखा जाए तो प्रशिक्षकों का कार्य सुबह और शाम ही होता है, ऐसे में बेगुनाह संजीव को सेवा से पृथक किया जाना समझ से परे है।

हास्यास्पद बात तो यह है कि जिलाधिकारी का निरीक्षण 17 अगस्त को होने के बाद संजीव कुमार को ढाई माह बाद उप-क्रीड़ाधिकारी द्वारा सेवामुक्त किए जाने का परवाना थमाया गया, वह भी हस्तलिखित। हाकी प्रशिक्षक संजीव कुमार बेगुनाह हैं, इस बात की आवाज तिर्वा के भाजपा विधायक कैलाश सिंह राजपूत तथा गांव सौरिख हरिभानपुर स्थित स्पोर्ट्स स्टेडियम क्षेत्र के 50 से अधिक ग्रामीण जिलाधिकारी से कर चुके हैं। विधायक कैलाश सिंह राजपूत ने नौ दिसम्बर, 2019 को लिखे अपने पत्र में हाकी प्रशिक्षक संजीव को बेहद परिश्रमी, अनुशासित तथा नियमित प्रशिक्षण देने वाला बताया है।

विधायक राजपूत ने हाकी प्रशिक्षक के बचाव में एक पत्र राष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, खेलमंत्री, सांसद कन्नौज, निदेशक खेल तथा जिलाधिकारी कन्नौज को प्रेषित किया था। कन्नौज के तत्कालीन जिलाधिकारी रविन्द्र कुमार ने भी माना था कि हाकी प्रशिक्षक संजीव कुमार निर्दोष है, उसके साथ जो हुआ वह गलतफहमी में हुआ है। जिस शख्स को हर व्यक्ति ने बेगुनाह माना वही शख्स आज संचालनालय खेल से सीबीआई-ईडी जांच अथवा विवशतावश आत्महत्या की अनुमति राष्ट्रपति से क्यों मांग रहा है, यह समझ से परे है।  

संचालनालय खेल, उत्तर प्रदेश बहुत बड़ा जादूगर है। कन्नौज स्पोर्ट्स स्टेडियम भारतीय खेल मंत्रालय के अधीन आता है। जिलाधिकारी ने 17 अगस्त, 2019 की दोपहर कन्नौज स्पोर्ट्स स्टेडियम का निरीक्षण वहां की अनियमितताओं को लेकर किया था। किसी मैदान में हुई अनियमितता का प्रशिक्षक से कोई लेना-देना नहीं होता। ऐसे में हाकी प्रशिक्षक संजीव कुमार के प्रकरण की जांच करने की जवाबदेही उप-निरीक्षक थाना कोतवाली कानपुर नगर शिवकुमार शर्मा को सौंपा जाना बेवकूफी का सबसे चौंकाने वाला उदाहरण है। जांच को गए उप-निरीक्षक ने अपने पत्र में लिखा कि कन्नौज स्पोर्ट्स स्टेडियम चूंकि भारतीय खेल प्राधिकरण के मिल्कियत है सो इसकी जांच निर्माणित संस्था या फिर भारतीय खेल मंत्रालय द्वारा किया जाना न्यायोचित होगा।

हाकी प्रशिक्षक संजीव कुमार न्याय की गुहार राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के पोर्टलों पर भी लगा चुका है। प्रशिक्षक ने अपने पत्र में 17 अगस्त, 2019 की दोपहर में जिलाधिकारी द्वारा कन्नौज स्टेडियम में हुई धांधलियों की निरीक्षण कार्रवाई की वीडियो यू-ट्यूब के अनुसार स्टेडियम पवेलियन, हैण्डपम्प गड़बड़ी, धांधली, अनियमितता, अव्यवस्था, दुर्दशा आदि कमियों के दस्तावेज तथा अब तक की प्रमुख समस्त जांच आख्या रिपोर्टों की छाया-प्रतियां भी मांगी हैं ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। सुविज्ञ सूत्रों की कही सच मानें तो इस मामले को लखनऊ में बैठे आलाधिकारियों ने ही पेंचीदा बनाया है। लखनऊ में बैठे आलाधिकारियों ने क्रीड़ाधिकारी को बचाने के लिए ही हाकी प्रशिक्षक को बलि का बकरा बनाया है जबकि विभागीय नियमों पर गौर फरमाएं तो किसी खेल प्रशिक्षक की ड्यूटी दोपहर को नहीं होती।       

 

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