कभी ढाबे में झाड़ू लगाती थी कविता

इंटरनेशनल कबड्डी खिलाड़ी की कहानी

खेलपथ संवाद

नई दिल्ली। कविता ठाकुर, एक ऐसा नाम जो अपने संघर्ष के लिए जानी जाती है। कविता ठाकुर भारतीय महिला कबड्डी टीम की खिलाड़ी हैं जो हिमाचल प्रदेश के मनाली से 6 किलोमीटर दूर एक गांव जगतसुख के एक ढाबे में रहती थी। 25 साल की इस खिलाड़ी ने साल 2014 में एशियाड में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीता था लेकिन कहते हैं न कि हौंसले बुलंद हों तो कोई भी चीज नामुमकिन नहीं लगती है। कविता का बचपन ज्यादातर समय बर्तन और ढाबे में झाड़ू लगाने में बीता। कविता जिस ढाबे में काम करती थी ये उनके माता पिता ही चलाते थे। पिता पृथ्वी सिंह और माता कृष्णा देवी उस ढाबे पर चाय बेचकर अपना गुजारा करते थे लेकिन तब उनके लिए इकलौती सहारा सिर्फ उनकी बेटी कविता ही थी।
कविता बताती हैं कि, ''मैं अपने माता- पिता के साथ ढाबे पर काम करती थी। बर्तन धोती थी, ढाबे में झाड़ू लगाती थी। मैंने अपने शुरुआती दिनों में काफी संघर्ष किया है। मेरा बचपन दूसरे बच्चों की तरह नहीं बीता। ठंड के दिनों में हम दुकान के पीछे सोते थे। मेरे लिए उस ठंड में सोना काफी मुश्किल होता था क्योंकि जिस जगह हम लोग सोते थे वो किसी बर्फ की सिल्ली की तरह ठंडा होता था। हमारे पास बिस्तर खरीदने के लिए पैसे नहीं होते थे। हम कभी कभार पैसे न होने के कारण भूखे ही सो जाते थे।
कबड्डी इसलिए चुना क्योंकि ये खेल महंगा नहीं है। साल 2014 में एशियाड में गोल्ड मेडल जीतने वाली कविता उस समय सुर्खियों में आईं जब सरकार ने उनकी आर्थिक रूप से मदद की। कविता के परिवार में उनके माता- पिता, बड़ी बहन और एक छोटा भाई अशोक सिंह है। सब परिवार अब मनाली शहर में रहता है। कविता बताती हैं कि, '' ये उनकी जिंदगी का सबसे सुनहरा पल था जब उन्होंने अपने माता- पिता को खुद का घर लेकर दिया। उन्होंने कहा कि मेरा छोटा भाई अब अच्छे स्कूल में पढ़ सकता है।
साल 2007 ये वो साल था जब कविता ने कबड्डी खेलना शुरू किया। कविता उस समय स्कूल में पढ़ती थी। वह बताती है कि मैंने कबड्डी इसलिए चुना क्योंकि ये खेल दूसरे खेलों के मुकाबले महंगा नहीं था हालांकि मेरी बड़ी बहन एक अच्छी कबड्डी खिलाड़ी है लेकिन उसे अपने सपनों से इसलिए मुंह मोड़ना पड़ा क्योंकि उस समय परिवार की हालात काफी खराब थी और जीवन जीने के लिए हमारे पास सिर्फ एक ही सहारा हमारा अपना ढाबा था।
दो साल की मेहनत के बाद साल 2009 में वो वक्त आ ही गया जब कविता को साई में प्रवेश मिला। साई में रहने के दौरान मैंने अपने खेल को काफी निखारा और मैं नेशनल टीम में सेलेक्ट हो गई। मेरे परिवार और मेरी बहन ने मेरा हमेशा साथ दिया। वो चाहते थे कि जो मेरी सपनों की उड़ान है मैं उसे आगे लेकर जाऊं। अगर वो मुझे हौंसला नहीं देते तो शायद आज मैं भारत के लिए कभी नहीं खेल पाती।
चुनौती और कमबैक
साल 2011 में कविता को 6 महीने के लिए खेल से बाहर रहना पड़ा क्योंकि उन्हें पाचन संबंधी कोई दिक्कत हो गई थी। इस बीमारी के कारण उसकी पाचन शक्ति बिल्कुल ही खत्म हो गई जिसके कारण उसे कई दिन तक अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। कविता ने कहा कि, '' उस समय उन्हें ऐसा लगा जैसे वो अब कभी भी कबड्डी नहीं खेल पाएगी और भारतीय टीम में वापसी नहीं कर पाएगी.''
लेकिन अगले साल ही कविता ने धमाकेदार वापसी की और 2012 एशियन कबड्डी चैंपियनशिप में भारत को गोल्ड मेडल दिलाया। कविता 9 सदस्यों वाली कबड्डी की टीम में एक डिफेंडर है। कविता बताती हैं कि मैं एक ऑलराउंडर थी लेकिन मेरे कोच ने मेरे खेल को पहचाना जिससे आज मैं अपनी टीम की एक फुल टाइम डिफेंडर हूं।

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