तीरंदाजी कोच की करतूतों से पत्नी-बेटी का रो-रोकर बुरा हाल

तमाम सबूतों के बावजूद खेल विभाग मौन

दो साल से न्याय की गुहार लगा रही दुखियारी

बी.पी. श्रीवास्तव

भोपाल। रानीताल खेल परिसर जबलपुर में संचालित तीरंदाजी एकेडमी के मुख्य प्रशिक्षक रिछपाल सिंह सलारिया की करतूतों से न केवल खेल एवं युवा कल्याण विभाग की मुल्क में प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है बल्कि उसकी पत्नी और बच्ची के भविष्य पर भी संशय के बादल मंडरा रहे हैं। मोहनी सलारिया खेल एवं युवा कल्याण विभाग के प्रमुख अधिकारियों को अपने पति और उसकी शिष्या के बीच अनैतिक सम्बन्धों का खुलासा न केवल पत्र के माध्यम से कर चुकी है बल्कि भोपाल पहुंचकर भी वह संचालक खेल से अपना घर बचाने की मनुहार कर चुकी है। मोहनी की मान-मनुहार का असर न तो तीरंदाजी प्रशिक्षक को हुआ न ही खेल अधिकारियों ने आज तक कोई कार्रवाई की है।

शोहरत और दौलत किसी इंसान का मिजाज इतना खराब कर सकती है कि वह अपने परिवार (पत्नी-बच्चों) को छोड़ दे और उस स्थिति में जब 15 साल के दिव्यांग बेटे को इलाज,  सात साल की बेटी को शुरुआती शिक्षा और पत्नी को सहारे की जरूरत हो। हमारे मुल्क में गुरु-शिष्या के रिश्तों को सबसे पवित्र माना जाता है, इस पवित्र रिश्ते की मर्यादा से बेफिक्र तीरंदाजी प्रशिक्षक मध्य प्रदेश की खिलाड़ी हितैषी प्रतिष्ठा को राष्ट्रीय कैम्प तक में शर्मसार कर चुका है। पत्नी की तमाम शिकायतों के बावजूद करीब दो साल से खेल विभाग सुलह की नौटंकी का प्रपंच कर रहा है। इसका एक मंच 14 फरवरी, 2020 को खेल संचालनालय में भी सजा था।

जबलपुर स्थित मध्य प्रदेश राज्य तीरंदाजी अकादमी के तकनीकी सलाहकार- सह प्रशिक्षक रिछपाल सिंह सलारिया पर उसकी पत्नी मोहिनी सलारिया का इल्जाम है कि शिष्या से नाजायज सम्बन्धों के कारण मेरा परिवार तबाह को गया है। मुझे पहले जबलपुर से भगाया और बाद में घर (साबा, जम्मू) से निकाल बाहर किया गया। जिससे 15 साल के दिव्यांग बेटे का इलाज नहीं हो पा रहा, सात साल की बेटी का स्कूल छूट गया। आज मैं  मायके में रहकर किसी तरह गुजर-बसर कर रही हूं। जबलपुर में पुलिस और भोपाल में खेल संचालक को कई बार शिकायतें की हैं लेकिन हर बार झूठे आश्वासन ही मिले हैं। अब दर्द असहनीय हो गया है।

रिछपाल का चार साल का विभाग से अनुबंध फरवरी में समाप्त हो गया है, फिर भी वह जबलपुर में ही है। पिछले ढाई साल से उसकी अकादमी की एक खिलाड़ी से नजदीकियों की खबरें मध्य प्रदेश से लेकर तीरंदाजी के राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविर तक चर्चा में रही हैं। जबलपुर में तो गुरु-शिष्या की नजदीकियां लम्बे समय से कनबतियां बनी ही हैं। पिछले साल नेशनल कैंप (साई सोनीपत) से बिना परमीशन तीन दिन तक दोनों के गायब रहने की खबरें भी खूब सुर्खियां बनी थीं। इसी साल के शुरुआत में पत्नी को बच्ची के साथ अकादमी से जबरन भगाने पर हुए हंगामे और पुलिस के हस्तक्षेप पर भी अकादमी चर्चाओं में रही थी। इसके बाद जबलपुर पुलिस से लेकर तत्कालीन खेल संचालक एस.एल. थाउसेन तक की कोच और उसकी पत्नी को मिलाने की सारी कोशिशें नाकाम रहीं। इधर, रिछपाल पत्नी और विभाग के अफसरों को झांसा देता रहा और जम्मू कोर्ट में तलाक का आवेदन भी दे दिया। कोर्ट ने भी गुजारा बसर करने के लिए मा़त्र दस हजार रुपए मंजूर किए। महंगाई के इस दौर में इतने कम पैसों में बच्चों की परवरिश और घर खर्च कैसे सम्भव हो सकता है, समझ से परे है। यह सब तब हो रहा है जबकि रिछपाल को खेल विभाग से हर माह एक लाख रुपए मानदेय और 35 हजार रुपए भत्ता मिलता है। इसके अलावा आर्मी पेंशन के 20 हजार रुपए मासिक मिलते हों।

नोटरी मैं रखकर थोड़े ही घूमूंगा: पूर्व संचालक खेल

कोच रिछपाल सलारिया और उसकी पत्नी के बीच सुलह कराने 14 फरवरी को नोटरी कराई गई थी। जिसमें पत्नी को हर माह 25 हजार रुपए देने का जिक्र था और पत्नी द्वारा नोटरी की फोटो प्रति मांगने पर  तत्कालीन  संचालक एस.एल. थाउसेन ने (उसी दिन) विश्वास दिलाया, कहा- मुझ पर भरोसा नहीं क्या? बाद में नोटरी के अनुबंध को नहीं माना गया यानि अब तक एक बार भी पत्नी के अकाउंट में पैसे (25000 रु़पये) नहीं भेजे। इसके अलावा संचालक के चेम्बर में कोच और उसकी पत्नी की सुलह की नौटंकी भी हुई थी। अब थाउसेन की सफाई है कि मेरे तबादले को पांच माह हो गए नोटरी मैं साथ लेकर थोड़े ही आया हूं। विभाग में होगी। उन्हें विश्वासघात की याद दिलाई तो उन्होंने कहा मेरा विभाग में  लास्ट डे (14 फरवरी) था, अब मैं कैसे बताऊं। तीन साल से गुरु-शिष्या के बीच नजदीकियों से रिछपाल और पत्नी के झगड़े की शिकायतों पर कार्रवाई और मोहिनी का मोबाइल नम्बर ब्लॉक करने के सवाल पर वह सीधे कुछ नहीं बोले।

आरोपों को नकार रहा कोच

कोच रिछपाल सिंह ने कहा कि पत्नी के सारे आरोप गलत हैं। यह मेरा पारिवारिक मामला है। पत्नी की शिकायत पर कहा, मैं हर माह उसके अकाउंट में पैसा भेजता हूं। जबलपुर में झगड़ा और घर से भगाने की बात पर, उसका जवाब गोलमाल रहा। स्टूडेंट से नजदीकियों पर भी वह स्पष्ट कुछ नहीं बोला। नोटरी (शपथ-पत्र) के द्वारा 25 हजार रुपए हर माह भेजने के सवाल पर कहा, विभाग को ही मेरी सेलरी में से पैसा काट कर भेजना था, जब पैसा मिला ही नहीं तो कहां से भेजता।

आज मेरा पहला दिन था। फौरी तौर पर जानकारियां ली हैं। जिस मसले की आप बात कर रहे हैं, उसमें सारी जानकारी यदि सही होगी तो कार्रवाई अवश्य होगी। वो सारी चीजें रिकार्ड में होंगी, उन्हें मैं देखता हूं।

पवन जैन, संचालक, खेल एवं युवा कल्याण विभाग, भोपाल

 

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