खेल शिखर पर नोएडा कॉलेज ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन की छात्रा मधु

राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कबड्डी में लगाई पदकों की झड़ी

शिवम शुक्ला

नोएडा। समय तेजी से बदल रहा है। बेटियां अब अबला नहीं बल्कि सबला हैं। जिन खेलों में कल तक पुरुष खिलाड़ियों का आधिपत्य माना जाता था उन खेलों में आज बेटियां अपने पराक्रम का जलवा दिखा रही हैं। नोएडा कॉलेज ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन की होनहार छात्रा मधु कबड्डी में आज भारत का गौरव है। मधु स्कूल नेशनल खेलों में जहां रजत और कांस्य पदक से अपना गला सजा चुकी है वहीं यह जांबाज बेटी 2018 में इंडोनेशिया के जकार्ता में हुए 18वें एशियन गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए चांदी का पदक जीतकर नारी शक्ति का नायाब नमूना पेश कर चुकी है।

दिल्ली के नजफगढ़ निवासी बिजेन्दर की बेटी मधु जब कक्षा सात की छात्रा थी उसी समय उस पर खेल जानकारों की नजर पड़ी। मधु ने कबड्डी में अपना करियर बनाने का न केवल निश्चय किया बल्कि सुबह-शाम जीतोड़ मेहनत भी की। कबड्डी टीम खेल है, 22 साल की मधु कार्नर पोजीशन पर अपनी चपलता और कौशल से अच्छे से अच्छे रेडर को अपने जाल में फंसाने की काबिलियत रखती है। अब तक के अपने 10 साल के कबड्डी करियर में मधु राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दर्जनों मेडल जीतकर अपनी प्रतिभा और पराक्रम का लोहा मनवा चुकी है। मधु की छोटी बहन भी कबड्डी की उभरती हुई खिलाड़ी है।  

1913-14 में मध्य प्रदेश के सतना में हुए 59वें नेशनल स्कूल गेम्स में मधु ने अपने कौशल से जहां दिल्ली टीम को कांस्य पदक दिलाया वहीं 2014-15 में मुक्तसर में हुए 60वें नेशनल स्कूल गेम्स में अपनी टीम को चांदी का पदक दिलाने में अहम योगदान दिया। मधु इस समय नोएडा कॉलेज ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन में बीपीएस की तालीम हासिल कर रही है। नोएडा कॉलेज ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन की जहां तक बात है इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य ही छात्र-छात्राओं को शारीरिक शिक्षा के साथ खेलों में उन्हें अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध कराना है।

नोएडा कॉलेज ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन के विभागाध्यक्ष डा. आशुतोष राय का कहना है कि इस संस्थान के निदेशक डा. सुशील कुमार राजपूत सिर्फ खेलों और खिलाड़ियों के समुन्नत विकास व उनके प्रोत्साहन का सपना देखते हैं। यही वजह है कि यहां से अब तक दर्जनों अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी शारीरिक शिक्षा की बेहतरीन तालीम हासिल कर देश के हर राज्य में युवा पीढ़ी को खेलों के महत्व से रूबरू करा रहे हैं। डा. राय बताते हैं कि शांत-सौम्य मधु में कबड्डी के प्रति न केवल समर्पण है बल्कि मैदान में इसकी बला सी तेजी प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ियों के छक्के छुड़ा देती है। मधु कबड्डी में जूनियर नेशनल, सीनियर नेशनल ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने शानदार खेल का प्रदर्शन कर चुकी है।

मधु का कहना है कि मुझे बचपन से ही खेलों का शौक रहा है। मेरे माता-पिता ने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया और खेलने से कभी नहीं रोका। मधु कहती है कि जब मैं कक्षा सात में पढ़ती थी उसी समय मैंने कबड्डी खेलना शुरू कर दिया था। मधु बताती हैं कि जब मैंने इस खेल को खेलना शुरू किया उस समय कबड्डी के बारे में मुझे कोई खास जानकारी नहीं थी लेकिन मेरे प्रशिक्षकों ने इस खेल की बारीकियां बताकर मुझमें विश्वास पैदा किया कि मैं देश के लिए खेलने का अपना सपना साकार कर सकती हूं।

मधु कबड्डी में अब तक 21 बार राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने पराक्रम का जलवा दिखा चुकी है। मधु राष्ट्रीय स्तर पर अपनी टीम को दो स्वर्ण, तीन रजत तथा आठ कांस्य पदक दिला चुकी है। मधु को 2018 में देश का प्रतिनिधित्व करने का न केवल सौभाग्य मिला बल्कि इस जांबाज बेटी ने अपने पहले ही प्रयास में भारत के भाल में चांदी का पदक डालकर अपनी प्रतिभा और पराक्रम का जलवा दिखाया। मधु नोएडा कॉलेज ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन संस्थान की तारीफ करते हुए कहती है कि यहां आने के बाद मुझे जो सपोर्ट और प्रोत्साहन मिला उसकी जितनी तारीफ की जाए वह कम है।  

मधु कहती हैं कि बड़ा दुःख होता है जब माता-पिता बच्चों की खेल में रुचि होने के बाद भी चाहते हैं कि उनका बेटा-बेटी बड़ा होकर डाक्टर बने, इंजीनियर बने या उसे कोई अच्छी सी नौकरी मिले। मैं समाज का आह्वान करती हूं कि वह अपनी सोच और नजरिया दोनों बदले क्योंकि खेलों से बच्चे न केवल स्वस्थ रहते हैं बल्कि उनका मानसिक विकास भी होता है। खेलों से इंसान में कठिन परिस्थितियों से निपटने की शक्ति आती है लिहाजा हर अभिभावक को अपने बेटे और बेटियों को खेलों में समान मौके देना चाहिये।

मधु कहती हैं कि वर्तमान समय इस बात का गवाह है कि खेल अब सिर्फ मनोरंजन का साधन ही नहीं शानदार करियर भी है। खेलों में मान-सम्मान ही नहीं पैसा और शोहरत भी है। खेलों में देश का गौरव बढ़ाने वाले खिलाड़ियों के लिए देश की जनता ने भी अब पलक पांवड़े बिछाकर स्वागत करना सीख लिया है लिहाजा युवा पीढ़ी को खेलों में रुचि लेनी चाहिए इससे न केवल करियर संवरेगा बल्कि किस्मत भी बदल सकती है। मधु कहती हैं कि खेलों में सफलता हासिल करना आसान नहीं है लेकिन मेहनत और लगन से सब कुछ हासिल किया जा सकता है। मधु कहती हैं कि खेलों में चोट लगती है और असहनीय दर्द भी होता है लेकिन इस दर्द का नियम बिल्कुल गणित के नियमों की तरह होता है। यदि आप नियम को अच्छी तरह समझ कर उसका अभ्यास करते रहते हैं तो आप उसमें पारंगत हो जाते हैं। दर्द का नियम है कि ‘हर दर्द विकास की ओर ले जाता है, आपका परिचय आपसे कराता है और मंजिल तक पहुंचाता है।’

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