एथलीट विष्णु आर्थिक तंगहाली का शिकार

राजस्थान सरकार की उदासीनता से खिलाड़ी बेहाल
श्रीप्रकाश शुक्ला

जयपुर। किसी राज्य और राष्ट्र की प्रतिष्ठा खेलों में उसकी उत्कृष्टता का ही सूचक होती है। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलों में अच्छा प्रदर्शन केवल पदक जीतने तक सीमित नहीं होता बल्कि यह किसी राष्ट्र और राज्य के स्वास्थ्य, मानसिक अवस्था एवं लक्ष्य के प्रति सजगता को भी सूचित करता है। एक तरफ राजस्थान सरकार खेलों के विकास का दम्भ भरती है तो दूसरी तरफ उसके खिलाड़ी आर्थिक तंगहाली और नौकरी के अभाव में अपने सपने साकार करने से वंचित हो रहे हैं। 20 किलोमीटर पैदल चाल के उभरते सितारे 22 वर्षीय विष्णु शर्मा को ही लें वह राजस्थान और देश के लिए पदक जीतना चाहता है लेकिन वह दो जून की रोटी को मोहताज है। वह अपना खेल जारी रखने को सरकारी नुमाइंदों से मदद की गुहार लगा रहा है लेकिन किसी की कान पर जूं नहीं रेंग रही। सरकार का खेल बजट आखिर किस मद में खर्च हो रहा है इसका जवाब शायद किसी के पास नहीं है।
स्कूल स्तर पर दर्जनों मैडल जीतने वाला विष्णु शर्मा दुखी मन से सरकार की उदासीनता को कोस रहा है। अन्य खिलाड़ियों की तरह उसके भी सपने हैं लेकिन जिस खिलाड़ी को भर पेट भोजन और सुविधाएं ही मयस्सर नहीं होंगी, भला वह अपना खेल कैसे जारी रख पाएगा। जहाँ तक राजस्थान में खेलों में सुधार की बात है तो इसकी शुरुआत बहुत ही निचले स्तर से किए जाने की आवश्यकता है। राज्य में प्रतिभाएं तो हैं लेकिन उसका खेल ढांचा चरमरा चुका है। अफसोस की बात है कि राज्य में बहुत ही कम खिलाड़ियों के पास खेलने की सुविधाएं हैं। जो खिलाड़ी मेडल जीत भी रहे हैं वे अपने प्रयासों से। सरकार की उपेक्षा के चलते खिलाड़ियों में हताशा है। गुरमीत को अपना आदर्श मानने वाले किसान के बेटे जयपुर ग्रामीण निवासी विष्णु शर्मा अपने प्रशिक्षक अजय रत्थे के प्रयासों से 20 किलोमीटर पैदल चाल में कुछ करने का सपना देख रहा है लेकिन आर्थिक तंगहाली ने उसके पैरों पर बेढ़ियां डाल दी हैं।
देखा जाए तो राजस्थान में युवा जनसंख्या अपेक्षाकृत अधिक है। यहां के युवाओं में शक्ति एवं ऊर्जा की भी कोई कमी नहीं है। बिना भेदभाव एवं राजनीति के अगर युवाओं को खेल के अवसर मिलें तो यहां के खिलाड़ी बहुत कुछ कर सकते हैं। राजस्थान सरकार आर्थिक प्रगति का राग तो अलाप रही है लेकिन खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल सुविधाएं, खेल संबंधी दवाइयां एवं कोच न मिल पाना कई तरह के सवाल खड़े करता है। राजस्थान खेल तंत्र को यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि धन एवं सुविधाएं अपना काम तो करती हैं परंतु वे सफलता का पैमाना नहीं बन सकतीं। खेलों में उत्कृष्टता के लिए राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक प्रतिबद्धता अनिवार्य है। इसके लिए दूरगामी सोच, सक्रिय योजनायें एवं उनके क्रियान्वयन की आवश्यकता होती है। इन सरकारी प्रयासों के साथ खेलों के प्रति लोगों के दृष्टिकोण को बदलने एवं जागरूकता लाने की भी आवश्यकता है।
सरकार को चाहिए कि शिक्षा, स्वास्थ्य एवं सुविधाओं में धनराशि बढ़ाकर खेल की क्षमता का विकास करे। अगर चीन का उदाहरण लें तो हम देखते हैं कि 1952 के ओलम्पिक में उसने एक भी पदक नहीं जीता था। 32 वर्षों तक ओलम्पिक से दूर रहने के बाद 1984 में उसने 15 स्वर्ण पदक जीते। इसी प्रकार रियो में ग्रेट ब्रिटेन का प्रदर्शन आश्चर्य का विषय बना हुआ है। सन् 1996 में उसने 15 पदकों में मात्र एक ही स्वर्ण जीता था। इन देशों की सरकारों ने खेल को प्राथमिकता में शामिल कर अपनी नीतियों का निर्माण इस प्रकार लक्ष्य बनाकर किया कि वे लगातार पदक तालिका में आगे बढ़ते चले गए। अंतिम परंतु सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है खेल को राजनीति से दूर रखना। राजस्थान में खेल प्रतिभाएं हैं लेकिन उन पर किसी का ध्यान नहीं है। हाल ही सरकार ने खिलाड़ियों को नौकरी देने का ऐलान तो किया है लेकिन कितने खिलाड़ियों को नौकरी मिली यह सोचने की बात है। सरकार को सोचना चाहिए कि विष्णु शर्मा जैसे एथलीट आखिर कैसे अपना खेल जारी रखें। बेहतर होगा राजस्थान सरकार प्रत्येक खेल के लिए लक्ष्य निर्धारित कर उसके अनुरूप धनराशि खर्च कर खिलाड़ियों के मायूस चेहरों पर मुस्कान लौटाए।

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