द्रोणाचार्य अवार्ड के हकदार हैं परमजीत सिंह बरार

मध्य प्रदेश राज्य महिला हाकी एकेडमी को बनाया सर्वश्रेष्ठ

श्रीप्रकाश शुक्ला

ग्वालियर। समय दिन-तारीख देखकर आगे नहीं बढ़ता। दो दशक पहले जिस मध्य प्रदेश में महिला हाकी खिलाड़ियों की संख्या गिनती की थी वहां आज प्रतिभाओं की भरमार है। प्रतिभाएं भी ऐसी जिन पर मध्य प्रदेश ही नहीं समूचा राष्ट्र गौरवान्वित महसूस कर सकता है। यह सब चमत्कार मध्य प्रदेश सरकार के प्रयासों और दी गई सुविधाओं के साथ परमजीत सिंह बरार जैसे हाकी प्रशिक्षकों की अथक मेहनत को जाता है। मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने इस बार परमजीत सिंह का नाम खेल मंत्रालय को द्रोणाचार्य अवार्ड के लिए अनुशंसित किया है। यदि खेल अवार्ड समिति द्वारा ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया गया तो परमजीत सिंह बरार को द्रोणाचार्य अवार्ड मिलना तय है।

जून, 2006 में ग्वालियर में संचालित राज्य महिला हाकी एकेडमी की प्रतिभाओं के कौशल को निखारने का जो दायित्व परमजीत सिंह बरार को सौंपा गया था, वह उसमें पूरी तरह से खरे उतरे हैं। मध्य प्रदेश राज्य महिला हाकी एकेडमी, ग्वालियर की कामयाबियां और यहां से निकलने वाली इंटरनेशनल खिलाड़ियों की संख्या परमजीत सिंह को द्रोणाचार्य अवार्ड का प्रमुख दावेदार साबित करती है। देखा जाए तो मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा प्रदेश के भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर में प्रमुख खेलों की लगभग डेढ़ दर्जन खेल एकेडमियां संचालित हैं लेकिन सभी एकेडमियों की सफलता का मूल्यांकन करें तो महिला हाकी एकेडमी के परिणाम सबसे बेहतर हैं।

डेढ़ दशक पहले जिस मध्य प्रदेश में महिला हाकी प्रतिभाओं का अकाल था, उस प्रदेश में आज हर आयु वर्ग की सशक्त टीमें हैं। एक समय था जब महिला हाकी एकेडमी के संचालन के लिए खेल विभाग हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम आदि राज्यों का मुंह ताकता था लेकिन आज मध्य प्रदेश की प्रतिभाएं राष्ट्रीय खेल क्षितिज पर अपने कौशल का नायाब उदाहरण पेश कर रही हैं। यह सब फीडर सेण्टरों के अस्तित्व में आने के बाद सम्भव हो सका है। सच कहें तो मध्य प्रदेश में संचालित लगभग तीन दर्जन फीडर सेण्टरों ने न केवल एकेडमी की खिलाड़ी जरूरतों का पूरा किया है बल्कि साई सेण्टरों के साथ दूसरे राज्यों को भी अपनी ओर आकर्षित किया है।

देखा जाए तो मध्य प्रदेश राज्य महिला हाकी एकेडमी में अब तक लगभग आधा दर्जन खेल प्रशिक्षकों की नियुक्ति हो चुकी है लेकिन परमजीत सिंह के कार्यकाल में हाकी बेटियों ने जो यशगाथा लिखी है वह हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों का गुरूर तोड़ने वाली है। यह एकेडमी आज नायाब सितारों की खान ही नहीं बेटियों के स्वावलम्बन की भी राह है। यह खुशी और गर्व की बात है कि यहां की लगभग 50 गरीब बेटियों को अब तक शासकीय सेवा मिल चुकी है तो लगभग तीन दर्जन बेटियां भारतीय तिरंगे की शान बन चुकी हैं। मुख्य प्रशिक्षक परमजीत सिंह और सहायक प्रशिक्षकों की मेहनत का ही सुफल है कि यहां से प्रतिवर्ष हाकी बेटियां भारतीय टीम का हिस्सा बन रही हैं। हाकी का शहर ग्वालियर भी गौरवान्वित हो सकता है क्योंकि उसकी बेटियां भी निरंतर अपने नायाब प्रदर्शन से भारतीय चौखट पर दस्तक दे रही हैं।

खेलपथ से बातचीत करते हुए परमजीत सिंह ने कहा कि उनका उद्देश्य मध्य प्रदेश राज्य एकेडमी को सर्वश्रेष्ठ बनाना है। मेरे लिए खुशी की बात है कि इस कार्य में खेल एवं युवा कल्याण विभाग सहित मुझे फीडर सेण्टरों के प्रशिक्षकों का भी भरपूर सहयोग मिल रहा है। परमजीत सिंह कहते हैं कि खेल विभाग द्वारा मेरा नाम द्रोणाचार्य अवार्ड के लिए अनुशंसित किया जाना प्रसन्नता की बात है।         

 

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