शिवांश सिंह की जांबाजी को सलाम

युद्ध और खेल दोनों में सिरमौर

खेलपथ प्रतिनिधि

कानपुर। कुछ लोग अपने जीवन में न केवल स्वयं सफलता हासिल करते हैं बल्कि दूसरों के लिए भी नजीर बन जाते हैं। ऐसे ही लोगों में कानपुर के जांबाज शिवांश सिंह चौहान का भी शुमार है। शिवांश ने अपने शानदार खेल-कौशल से जहां खेल के मैदानों में अपनी शोहरत के झंडे गाड़े वहीं कारगिल युद्ध में अपने साहस से पाकिस्तानियों के दांत खट्टे कर देश के गौरव को बढ़ाया है। शिवांश जैसे लोग वाकई हमारी युवा पीढ़ी के लिए उपयुक्त आदर्श हैं।

शिवांश सिंह चौहान ने अपने खेलों की शुरुआत 1990 के दशक में कानपुर से की। दिनेश भदौरिया की अगुआई में इन्होंने खेलों में देखते ही देखते जिलास्तर पर अपनी प्रतिभा और कौशल के झण्डे गाड़ दिए। शिवांश ने 400 सौ, 800 मीटर और 800 मीटर दौड़ों में जिलास्तर पर जहां दर्जनों मेडल जीते वहीं राज्यतरीय एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में भी लगभग एक दर्जन पदक जीतकर कानपुर के गौरव को चार चांद लगाए।

शिवांश चौहान ने हैदराबाद में हुई नेशनल एथलेटिक्स प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीतकर जता दिया कि वह किसी से कम नहीं हैं। खेलों में नायाब सफलताएं हासिल करने के बाद इनका चयन भारतीय सेना में हो गया। सेना में पहुंचने के बाद भी खेलों से इनका लगाव कम होने की बजाय बढ़ता ही गया। सेना की विभिन्न एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में भी शिवांश सिंह ने दर्जनों मेडल जीते। सर्विसेज की नेशनल प्रतियोगिता में इन्होंने कांस्य पदक जीतकर उत्तर प्रदेश को गौरवान्वित किया।

खेलों में नायाब उपलब्धियां हासिल करने के बाद शिवांश सिंह चौहान ने भारत की तरफ से कारगिल युद्ध में अपनी जांबाजी की जो पटकथा लिखी वह अपने आपमें एक नजीर है। ऑपरेशन विजय में अपना अमूल्य योगदान देने वाले शिवांश सिंह वाकई शेर हैं। ऐसे बिरले शेरों पर कानपुर ही नहीं समूचे देश को अभिमान होना चाहिए। खेलपथ शिवांश की शानदार उपलब्धियों को सलाम करते हुए युवाओं से आह्वान करता है कि वे ऐसे जांबाजों को अपना आदर्श मानते हुए खेलों में अपना करियर बनाएं।   

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