हरफनमौला मोनिका सिंह का जवाब नहीं

के.के. इंटर कालेज में निखार रहीं प्रतिभाएं

मनीषा शुक्ला

कानपुर। के.के. इंटर कालेज किदवई नगर कानपुर का नाम आते ही खेलप्रेमियों के मन में अतीत की स्मृतियां अनायास ताजा हो जाती हैं। इस कालेज ने देश को ऐसी खिलाड़ी बेटियां दी हैं जिनके नायाब खेल प्रदर्शन ने कानपुर को अनगिनत बार पुलकित होने का अवसर दिया है। अतीत की जिस भी खिलाड़ी बेटी से बात करो वह कालजयी इंदू मैडम के खेल समर्पण को आज भी सलाम करता है। इस समय के.के. कालेज में शारीरिक शिक्षक के रूप में सेवाएं देने वाली हरफनमौला मोनिका सिंह वर्तमान को गौरवान्वित करने का दृढ़-संकल्प लिए हुए प्राणपण से छात्राओं को खेलों और शारीरिक शिक्षा के महत्व से अवगत करा रही हैं।

के.के. इंटर कालेज उत्तर प्रदेश में सिर्फ शिक्षा ही नहीं खेलों के क्षेत्र में भी अपनी अलग पहचान रखता है। इसका सारा श्रेय इस कालेज के प्रबंधन और कुशल शारीरिक शिक्षकों को जाता है। मोनिका सिंह जुहारी देवी बालिका पी.जी. कालेज की छात्रा रही हैं। मोनिका अपने पसंदीदा खेल वालीबाल में भारत का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सकीं लेकिन राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर अपने खेल का जादू जरूर बिखेरा है। मोनिका जब तक खेलीं खूब खेलीं। आज वह छात्राओं को शारीरिक शिक्षा के महत्व से अवगत कराने के साथ खेलों के आयोजनों में बतौर निर्णायक अपनी सेवाएं भी देती रहती हैं।

छत्रपति साहू जी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय से 2010 में स्नातकोत्तर करने के बाद मोनिका सिंह ने 2012 में अमरावती यूनिवर्सिटी महाराष्ट्र से बीपीएड किया है। मोनिका अपने समय में वालीबाल ही नहीं स्क्वैश और क्रिकेट की भी आला दर्जे की राष्ट्रीय खिलाड़ी रही हैं। इन्होंने कई प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा से कानपुर को गौरवान्वित किया है। सच्चाई यह है कि खिलाड़ियों का मर्म सिर्फ एक खिलाड़ी ही समझ सकता है। मोनिका सिंह खेलों की अच्छी समझ भी रखती हैं। इनकी समझ और सूझबूझ को देखते हुए ही इन्हें के.के. बालिका इंटर कालेज में बतौर शारीरिक शिक्षक सेवा का अवसर मिला है। खेलों में मोनिका की निष्ठा और ईमानदारी की हर कोई सराहना करता है।

खेलपथ से बातचीत करते हुए मोनिका सिंह कहती हैं कि समय तेजी से बदल रहा है। अब समाज भी खेलों के महत्व को न केवल स्वीकार रहा है बल्कि अभिभावक अपने बच्चों को मैदान तक ले जाने लगे हैं। वह कहती हैं कि शारीरिक शिक्षा सभी विषयों से अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे युवा पीढ़ी शारीरिक ही नहीं मानसिक रूप से मजबूत बनती है। खेलों से नेतृत्व के गुणों का विकास होता है तथा खेल इंसान को गिरकर उठना सिखाते हैं। खेलों से ही मनुष्य के सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास भी होता है।

मोनिका कहती हैं कि बेटियों को अपनी खुद की पहचान बनानी चाहिए क्योंकि खेलों से ही स्वस्थ राष्ट्र के संकल्प को पूरा किया जा सकता है। वह कहती हैं कि छात्र-छात्राओं को मोबाइल, जंकफूड एवं कम आयु में वाहन चलाने से परहेज करना चाहिए। इसके अलावा वह नशे की बुराई से भी बचें ताकि जीवन में एक नया मुकाम हासिल कर सकें। मोनिका अभिभावकों का आह्वान करते हुए कहती हैं कि वे बेटों की तरह अपनी बेटियों को भी खेलने के लिए प्रेरित करें। बेटियों को कमजोर न बनाकर उन्हें सशक्त बनाने का प्रयास करें ताकि बेटियां समाज और देश का गौरव बढ़ा सकें।

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