कबड्डी में प्रिया का जवाब नहीं

प्रदीप नरवाल को मानती हैं अपना आदर्श

श्रीप्रकाश शुक्ला

शाहजहांपुर। बेटियां आज हर क्षेत्र में अपने बुद्धि, कौशल और पराक्रम से नई पटकथा लिख रही हैं। पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से खिलाड़ी बेटियों ने खेल के क्षेत्र में भारत का गौरव बढ़ाया है उससे उम्मीद की एक किरण जगी है। बेटियों को खेल के क्षेत्र में अभी और प्रोत्साहन की दरकार है। कबड्डी खिलाड़ी प्रिया श्रीवास्तव जैसी बेटियों को यदि सरकारी मदद मिले तो यह उत्तर प्रदेश ही नहीं हिन्दुस्तान का गौरव बढ़ाने का माद्दा रखती हैं। प्रदीप नरवाल को अपना आदर्श मानने वाली प्रिया श्रीवास्तव कबड्डी में जिला, मण्डल, राज्य, जूनियर नेशनल, सीनियर नेशनल, यूनिवर्सिटी तथा शाहजहांपुर महोत्सव में अपने शानदार खेल का प्रदर्शन कर चुकी हैं।  

प्रिया श्रीवास्तव को बचपन से ही शिक्षा के साथ खेलों से लगाव रहा है। शाहजहांपुर की होनहार खिलाड़ी बेटी प्रिया ने रोहेलखण्ड से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद कानपुर से बीपीएड किया है। प्रिया कबड्डी की राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं लेकिन उन्हें आज तक किसी तरह का प्रोत्साहन न मिलने से वह निराश हैं। प्रिया को विश्वास है कि बेटियां खेल के क्षेत्र में न केवल चमत्कारिक प्रदर्शन कर सकती हैं बल्कि इसमें अपना करियर भी संवार सकती हैं। प्रिया श्रीवास्तव कहती हैं कि मुझे बचपन से खेलों में शौक रहा है। मुझे खुशी है कि मेरे माता-पिता ने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया और खेलने से कभी नहीं रोका। प्रिया कहती हैं कि जब मैं कक्षा आठ में पढ़ती थी उसी समय मैंने कबड्डी खेलना शुरू कर दिया था। प्रिया कहती हैं कि जब मैंने इस खेल को खेलना शुरू किया था उस समय इसके बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं थी। मुझे इस खेल को सिखाने वाला भी कोई नहीं था। धीरे-धीरे मैंने इस खेल की बारीकियों को जाना और खेलना जारी रखा।

प्रिया बताती हैं कि सर्वप्रथम मैंने 2009 में 55वीं प्रदेशीय कबड्डी प्रतियोगिता में प्रतिभाग किया। इसके बाद 2010 में प्रादेशिक विद्यालय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में प्रतिभाग किया। 2011 में मुझे प्रादेशिक कबड्डी टीम का हिस्सा बनने का गौरव हासिल हुआ। 2012 में भी मैंने प्रादेशिक कबड्डी प्रतियोगिता में शिरकत कर अपने अच्छे खेल से सबकी वाहवाही लूटी। प्रिया कहती हैं कि कबड्डी खेल भारत का ग्रामीण स्तर का नहीं बल्कि प्रो कबड्डी की शुरुआत से यह विश्व के लोकप्रिय खेलों में शुमार हो गया है। प्रिया कहती हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खेलो इंडिया के माध्यम से युवा पीढ़ी को खेलों से जोड़ने का जरूर अच्छा प्रयास किया है लेकिन खिलाड़ियों को अभी भी मदद की दरकार है।

प्रिया कहती हैं कि बड़ा दुःख होता है जब माता-पिता बच्चों की खेल में रुचि होने के बाद भी चाहते हैं कि उनका बेटा-बेटी बड़ा होकर डाक्टर बने, इंजीनियर बने या उसे कोई अच्छी सी नौकरी मिले। मैं समाज का आह्वान करती हूं कि वह अपनी सोच और नजरिया दोनों बदले क्योंकि खेलों से बच्चे न केवल स्वस्थ रहते हैं बल्कि उनका मानसिक विकास भी होता है। खेलों से इंसान में कठिन परिस्थितियों से निपटने की शक्ति आती है लिहाजा हर अभिभावक को अपने बेटे और बेटियों को खेलों में समान मौके देना चाहिये।

प्रिया कहती हैं कि वर्तमान समय इस बात का गवाह है कि खेल अब सिर्फ मनोरंजन का साधन ही नहीं शानदार करियर भी हैं। भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता चरम पर होने में कोई शक नहीं है, लेकिन टेनिस, कुश्ती, चेस, बैडमिंटन, मुक्केबाजी, निशानेबाजी, तीरंदाजी, हाकी, कबड्डी समेत कई और खेलों में भी भारत का दबदबा लगातार बढ़ रहा है। खेलों में मान-सम्मान ही नहीं पैसा और शोहरत भी है। खेलों में देश का गौरव बढ़ाने वाले खिलाड़ियों के लिए देश की जनता ने भी अब पलक पांवड़े बिछाकर स्वागत करना सीख लिया है लिहाजा युवा पीढ़ी को खेलों में रुचि लेनी चाहिए इससे न केवल करियर संवरेगा बल्कि किस्मत भी बदल सकती है।

प्रिया कहती हैं कि खेलों में सफलता हासिल करना आसान नहीं है लेकिन मेहनत और लगन से सब कुछ हासिल किया जा सकता है। दर्द का नियम बिल्कुल गणित के नियमों की तरह होता है। यदि आप नियम को अच्छी तरह समझ कर उसका अभ्यास करते रहते हैं तो आप उसमें पारंगत हो जाते हैं। दर्द का नियम है कि ‘हर दर्द विकास की ओर ले जाता है, आपका परिचय आपसे कराता है और मंजिल तक पहुंचाता है।’

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