पिता ने लगाए सुनीता के सपनों को पंख

लांग और त्रिपल जम्प में बनाई राष्ट्रीय पहचान

मनीषा शुक्ला

कानपुर। उपेक्षा, दर्द और दंश झेलने के बावजूद बेटियों ने अपने हिस्से और हक को जमाने पर न्योछावर करते हुए फर्ज और वफादारी की सदियां दी हैं। अपने समय में लम्बी और तिहरी कूद की राष्ट्रीय आला एथलीट रहीं कानपुर की सुनीता यादव फिलवक्त भारत के श्रेष्ठ लड़कियों के मोदी बोर्डिंग स्कूल लक्ष्मणगढ़, राजस्थान में पीजीटी फिजिकल एज्यूकेशन के क्षेत्र में अपनी काबिलियत का परिचय दे रही हैं। सुनीता आज भी प्रतिस्पर्धी खेलों में न केवल शिरकत करती हैं बल्कि सफलताएं भी हासिल कर रही हैं।

बचपन से खेलों को बेशुमार मोहब्बत करने वाली सुनीता यादव ने अपने पिता शिवराज सिंह यादव के प्रोत्साहन और प्रशिक्षण से पहले जिला फिर राज्य और बाद में राष्ट्रीय खेल क्षितिज पर लम्बी और तिहरी कूद में शोहरत हासिल की। सुनीता कहती हैं कि एक तरफ जहां हमारा समाज बेटियों को खेलने से रोकता है वहीं हमारे पिता ने खेल क्षितिज पर उड़ने को मुझे पंख दिए हैं। मैं आज जो भी हूं उसमें पिताजी का ही बहुमूल्य योगदान है। वही मेरे पहले प्रशिक्षक भी हैं।

कुछ माह पूर्व मास्टर्स एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में लांगजम्प और त्रिपल-जम्प में रजत और कांस्य पदक जीतने वाली कानपुर की सुनीता यादव कहती हैं कि खेल मेरे जीवन का हिस्सा हैं। मैं ताउम्र खेलते रहना चाहती हूं। सुनीता ने खेलों के साथ ही शारीरिक शिक्षा की तालीम भी हासिल की है। इन्होंने बुंदेलखण्ड विश्वविद्यालय झांसी से बीपीएड तथा एसडी कालेज से एमपीएड किया है। सुनीता ने लांगजम्प और त्रिपल-जम्प में विशेषज्ञता भी हासिल कर रखी है। राष्ट्रीय एथलीट सुनीता छात्राओं को शारीरिक शिक्षा देने के साथ स्कूल परिसर में नियमित रूप से उन्हें एथलेटिक्स के गुर भी सिखाती हैं।  

सुनीता कहती हैं कि बेटियां आज हर क्षेत्र में दस्तक दे रही हैं। वह अपनी लगन, परिश्रम और साहस से विविध क्षेत्रों में सबकुछ भूलकर उपलब्धियों की नई दास्तां लिख रही हैं। बेटियों की राह में तरह-तरह की दिक्कतें भी आती हैं लेकिन वे मुश्किलों से घबराने की बजाय उनका डटकर मुकाबला कर रही हैं। सुनीता कहती हैं कि मुझे भी खेलों में दिक्कतों का सामना करना पड़ा लेकिन पिता के प्रोत्साहन और प्रशिक्षण से मैं आगे ही बढ़ती गई। आज मैं यदि अपने पैरों पर खड़ी हूं तो उसमें खेलों का ही प्रमुख योगदान है। सुनीता कहती हैं कि क्षेत्र कोई भी हो सफलता के लिए संघर्ष तो करना ही होगा। खेलों में आज प्रतिस्पर्धा है तो शानदार करियर भी है।

खेलपथ से बातचीत करते हुए सुनीता कहती हैं कि कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के साथ की गई एक अच्छी कोशिश आपको कहीं भी ले जा सकती है। वह कहती हैं कि अक्सर लोग  एक नए कार्य को बड़े उत्साह के साथ शुरू तो करते हैं लेकिन वे ज्यादा देर तक चुनौतियों और असफलताओं का सामना नहीं कर पाते और अपनी हार मान लेते हैं। सुनीता कहती हैं कि मुझे पराजय से सख्त नफरत है। मुझे लगता है कि दुनिया में हिम्मत, लगन और मेहनत से हर लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। मैं खेलपथ समाचार-पत्र की शुक्रगुजार हूं कि उसने मेरी उपलब्धियों और विचारों को खेलप्रेमियों तक पहुंचाने का एक नेक कार्य किया है।  

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