हैमर थ्रोवर सुकन्या ने दी कानपुर को खेलों में अंतरराष्ट्रीय पहचान

रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड हासिल सुकन्या बेटे वीवान को बनाएंगी थ्रोवर

श्रीप्रकाश शुक्ला

कानपुर। अगर बेटों में दम है तो बेटियां भी किसी से कम नहीं हैं। इस बात को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खेलपटल पर सही साबित किया है कानपुर की जांबाज खिलाड़ी बेटियों ने। कानपुर ने खेलजगत को कई बेहतरीन खिलाड़ी बेटियां दी हैं जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिन्दुस्तान का मान बढ़ाया है। इन्हीं दबंग बेटियों में शामिल हैं रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड हासिल सेण्ट्रल रेलवे पुणे में कार्यरत अंतरराष्ट्रीय हैमर थ्रोवर सुकन्या मिश्रा।

सुकन्या मिश्रा के खेलजीवन को नया आयाम देने में दो महिलाओं का विशेष योगदान है। कानपुर के के.के. कालेज में शिक्षक प्रतिभा मिश्रा ने ही बेटी सुकन्या को खेलों की तरफ प्रेरित किया। खिलाड़ी मां की प्रेरणा और प्रोत्साहन पाकर सुकन्या अपने समय में खेलों को पूरी तरह से समर्पित रहीं इंदू मैडम के सान्निध्य में पहुंचीं और उन्हीं से हैमर थ्रो के गुर सीखे। के.के. कालेज में स्पोर्ट्स टीचर इंदू मैडम खुद भी आला दर्जे की थ्रोवर रही हैं। उन्होंने वेटरंस इंटरनेशनल प्रतियोगिताओं में देश का प्रतिनिधित्व भी किया था।

सुकन्या बताती हैं कि के.के. कालेज ने भारत को कई इंटरनेशनल प्लेयर दिए हैं। सरबजीत कौर, हैमर थ्रोवर शिल्पा, टेबल टेनिस खिलाड़ी विनीता सिंह, क्रिकेटर अल्का सिंह, हैमर थ्रोवर स्वाती आदि के.के. कालेज की ही देन हैं। सुकन्या मिश्रा एक बेजोड़ खिलाड़ी ही नहीं खेलों का स्वयं एक अध्याय हैं। इनके मन में उत्तर प्रदेश की प्रतिभाओं को खेल के क्षेत्र में प्रोत्साहन और प्रशिक्षण देने का सपना आज भी जिन्दा है। सुकन्या कहती हैं कि उत्तर प्रदेश प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की खान है, यदि यहां के बच्चों को उचित परवरिश और प्रोत्साहन मिले तो वे खेलों में देश का मान बढ़ा सकते हैं।

हैमर थ्रो में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी शक्ति और कौशल का नायाब उदाहरण पेश कर चुकीं सुकन्या मिश्रा बीपीएड, एमपीएड डिग्री हासिल करने के साथ ही पटियाला से डिप्लोमा इन स्पोर्ट्स कोचिंग, पी.जी.डी.एस.एम. की तालीम भी हासिल कर चुकी हैं। सुकन्या मिश्रा को उत्तर प्रदेश खेल मंत्रालय द्वारा क्रीड़ाधिकारी पद का आफर भी मिल चुका है। सुकन्या जब 18 साल की भी नहीं हुई थीं तभी उनकी प्रतिभा को देखते हुए भारतीय रेलवे के तीन-तीन मण्डलों से नौकरी के आफर मिले थे, लेकिन 2005 में इन्होंने वेस्टर्न रेलवे अहमदाबाद से नौकरी का शुभारम्भ किया। नौकरी मिलने के बाद प्रायः खिलाड़ियों का खेलों से मोहभंग हो जाता है लेकिन सुकन्या ने खेल जारी रखा। खेलों के प्रति इनके अगाध समर्पण तथा प्रतिभा को देखते हुए इनका चयन भारतीय एथलेटिक्स प्रशिक्षण शिविर के लिए हुआ।

सुकन्या की खेल उपलब्धियों पर नजर डालें तो इन्होंने 2009 में चेन्नई में हुई 49वीं नेशनल इंटर स्टेट सीनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में स्वर्ण, भोपाल में हुई 49वीं ओपेन नेशनल एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में स्वर्ण, 2008 में भोपाल में हुए 14वें फेडरेशन कप नेशनल सीनियर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में स्वर्ण तो 2005 में नई दिल्ली में हुई एटीई सलवान नेशनल मीट में थ्रो और पोलवाल्ट में स्वर्ण पदक जीतकर राष्ट्रीय पहचान बनाई थी। सुकन्या मिश्रा ने 2009 में ग्वांगझू (चीन) में हुई 18वीं एशियन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में प्रतिभागिता करते हुए छठवां स्थान हासिल किया था। सुकन्या ने 2009 में पुणे में हुई 74वीं आल इंडिया इंटर रेलवे एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में हैमर थ्रो का स्वर्ण पदक जीतकर अपनी बादशाहत कायम की थी। सुकन्या मिश्रा हैमर थ्रो में वेस्टर्न रेलवे और उत्तर प्रदेश की कीर्तिमानधारी हैं। सुकन्या 2008-09 में भारत की चैम्पियन एथलीट तो 2009 में यूपी एथलेटिक्स एसोसिएशन की तरफ से सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुनी गईं। इन्हें 2009 में कानपुर विश्वविद्यालय का भी सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुना गया। सुकन्या को 2008 में जहां डिवीजनल रेलवे मैनेजर अवार्ड मिला वहीं 2011 में इनकी शानदार खेल उपलब्धियों को देखते हुए उत्तर प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ प्रतिष्ठित रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड से नवाजा गया।

इच्छा बेटा वीवान शाटपुटर या फिर डिस्कस थ्रोवर बने

खेलपथ से बातचीत करते हुए सुकन्या मिश्रा ने बताया कि मेरे पति आयकर अधिकारी अविनाश वशिष्ठ इंटरनेशनल गोलाफेंक खिलाड़ी हैं। हम दोनों पांच साल के अपने बेटे वीवान वशिष्ठ को पढ़ाई के साथ खेलों के लिए प्रेरित करते हैं। वीवान अभी छोटा है भविष्य में उसकी क्या रुचि होगी, यह हम नहीं जानते लेकिन हम चाहेंगे कि मेरा बेटा शाटपुटर या फिर डिस्कस थ्रोवर बनकर भारत का नाम जरूर रोशन करे। सुकन्या मिश्रा को 2009 में डोपिंग मामले में दो साल के प्रतिबंध का दंश भी झेलना पड़ा है। उस समय को याद कर सुकन्या दुखी हो जाती हैं और कहती हैं कि फूड सप्लीमेंट में क्या मिला होता था इस बात की उन्हें कतई जानकारी नहीं थी। वह दौर मेरे जीवन का सबसे बुरा वक्त था जिसे मैं कभी भी याद नहीं रखना चाहती।

 

 

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