डॉ. बी.आर. यादव ने खो-खो खेल को दी देश में पहचान

संघर्ष और जज्बे से हासिल किया मुकाम

मनीषा शुक्ला

कानपुर। खेलों के विकास में खिलाड़ियों, खेल प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों के साथ ही खेल संगठन पदाधिकारियों की भी अहम भूमिका होती है। जिस संगठन के पदाधिकारी जितना सक्रिय होंगे उस खेल का उतना ही विकास होगा। 7 ब्लाक खो-खो एसोसिएशन आफ इंडिया के महासचिव डॉ. बी.आर. यादव ऐसी ही सक्रिय शख्सियतों में शुमार हैं। इनका उद्देश्य खो-खो खेल को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाना है।

डॉ. बी.आर. यादव की जहां तक बात है, बचपन से ही इनका खेलों से गहरा लगाव रहा है। यह अपने समय के शानदार एथलीट रहे हैं। 1981 से 1984 तक यह स्कूल गेम्स की पोलवाल्ट स्पर्धा के श्रेष्ठ खिलाड़ियों में शुमार रहे। 1985 से 1988 तक कानपुर यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व करने के साथ बी.आर. यादव ने तीन बार आल इंडिया यूनिवर्सिटी में भी प्रतिभागिता की। 1988 में इन्होंने यू.पी. यूनिवर्सिटी की पोलवाल्ट स्पर्धा में कीर्तिमान बनाते हुए स्वर्ण पदक जीतकर प्रदेश भर में कानपुर को गौरवान्वित किया था। बी.ए., बी.पीएड. की तालीम हासिल श्री यादव 7-ब्लाक खो-खो एसोसिएशन आफ इंडिया के महासचिव होने के साथ-साथ कई अन्य खेल संगठनों से भी जुड़े हुए हैं।

श्री यादव गाजीपुर एथलेटिक्स एसोसिएशन के सचिव, उत्तर प्रदेश स्पीड बाल एसोसिएशन के महासचिव, खो-खो एसोसिएशन कानपुर के पूर्व सचिव, कानपुर अट्या पट्या एसोसिएशन के अध्यक्ष पद पर आसीन हैं। खेल संगठनों में सक्रिय भूमिका का निर्वहन करने वाले श्री यादव खेलों के क्षेत्र में लगभग 100 राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी (सीबीएसई और एसजीएफई) को दे चुके हैं। इनमें सात राष्ट्रीय स्तर के एथलीट भी शामिल हैं। फिलवक्त डॉ. बी.आर. यादव 7-ब्लाक खो-खो एसोसिएशन आफ इंडिया के महासचिव पद पर रहते हुए इस खेल को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने को प्राणपण से जुटे हुए हैं।

खो-खो खेल के बारे में श्री यादव बताते हैं कि यह विशुद्ध रूप से भारतीय मैदानी खेल है जोकि प्रतिभाओं में जोश और जज्बा भरता है। श्री यादव ने खो-खो खेल को भारत में स्थापित करने में अपना अहम योगदान दिया है। वह कहते हैं कि इस खेल में मेरा कोई गुरू या मार्गदर्शक नहीं है। मैं बचपन से पचपन तक खो-खो खेला हूं और इस खेल की बेहतरी के ही सपने देखता हूं। मैं लोगों और छात्र-छात्राओं की उम्मीदों पर खरा उतरना चाहता हूँ। राज्यस्तर तक खो-खो खेलने वाले श्री यादव कहते हैं कि मुझे खेलों में परिवार से उम्मीद के मुताबिक सपोर्ट नहीं मिला जिसका मुझे हर पल अफसोस रहा। मैं अब अपने अधूरे सपनों को उत्तर प्रदेश के बच्चों से पूरा होते देखना चाहता हूं।

श्री यादव कहते हैं कि खेल कोई भी हो, उसके विकास के लिए धन की जरूरत होती है। वह बेबाकी से कहते हैं कि हमारे यहां लोग मंदिर और धर्म-अध्यात्म के लिए तो पैसा सहजता से दे देते हैं लेकिन खेलों के लिए कोई ढेला भी खर्च करने को तैयार नहीं होता। मैं शुक्रगुजार हूं अल्हू भैया मेमोरियल ट्रस्ट का जिसने खो-खो खेल को आगे बढ़ाने में हमारी मदद की। खो-खो खेल की लोकप्रियता जिस तरह से बढ़ रही है, उसे देखते हुए मुझे विश्वास है कि इस खेल के दिन भी बहुरेंगे और लोग खिलाड़ियों की मदद को आगे आएंगे।

श्री यादव कहते हैं कि हर युवा आज खेलों में अपना करियर बनाना चाहता है। कोई भी खेल हो, किसी भी खेल का खिलाड़ी हो,  हर कोई चाहता है कि वह पूरा समय देकर सफलता हासिल करे और उसे अच्छी सी जॉब मिले ताकि वह अपने परिवार की मदद कर सके। श्री यादव का मानना है कि हमारे देश में अभी खिलाड़ियों को उम्मीद के मुताबिक जॉब के अवसर नहीं हैं। एक उम्र के बाद खिलाड़ी को भुला दिया जाता है। श्री यादव युवा पीढ़ी को संदेश देते हुए कहते हैं कि खेलों को मनोरंजन ही नहीं अपना धर्म मानिए। मेहनत करिए एक न एक दिन सफलता जरूर मिलेगी। वह कहते हैं सच्चे मन से किया गया कार्य कभी व्यर्थ नहीं जाता।

खुद खेल को धर्म मानने वाले श्री यादव अभिभावकों का भी आह्वान करते हैं कि वे बच्चों को खेलों की तरफ प्रेरित करें। खेलों से शरीर स्वस्थ रहता है तथा खेल अच्छा इंसान बनने में भी मददगार हैं। श्री यादव अपने संगठन के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक विकास, युवा विकास, सामुदायिक संरचना का निर्माण, महिला सशक्तीकरण तथा स्वस्थ जीवनशैली के माध्यम से भारतीय खेलों के विकास में अपना योगदान सुनिश्चित करना चाहते हैं। श्री यादव देश में खेलों के स्तर को और ऊंचा उठाने के अपने प्रयासों को अंतिम सांस तक जारी रखने का जज्बा रखते हैं।

 

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