सुषमा सिंह लखनऊ में बहा रहीं खेलप्रेम और देशप्रेम की बयार

छात्र-छात्राओं में देशप्रेम का जज्बा भरने का कर रहीं अनूठा काम

नूतन शुक्ला

लखनऊ। भारतीय समाज बदल रहा है। बेटियों को लेकर उसकी सोच में आमूलचूल परिवर्तन देखा जा रहा है। यह परिवर्तन बेटियों के अदम्य साहस और कौशल से ही मुमकिन हो पा रहा है। इस महती कार्य में समाज से कहीं अधिक योगदान सुषमा सिंह जैसी कर्मठ और लगनशील महिला शक्ति का है। कानपुर की सुषमा सिंह फिलवक्त ख्यातिनाम लखनऊ पब्लिक कालेज में छात्र-छात्राओं को न केवल खेलों की तरफ प्रेरित कर रही हैं बल्कि एनसीसी के माध्यम से उनमें देशप्रेम का जज्बा भी पैदा कर रही हैं।

भारतीय नारी की दशा और दिशा में अभूतपूर्व परिवर्तन एक दिन की मशक्कत से नहीं हुआ बल्कि इसके लिए सुषमा सिंह जैसी बेटियों को बचपन से यौवन तक सामाजिक रूढ़िवादिता से जूझते हुए अनगिनत दिक्कतों के बाद हासिल हुआ है। सुषमा को बचपन से ही खेलों से लगाव रहा है। घर में सबसे छोटी होने के नाते इनके माता-पिता ने भी बेटी के अरमानों को पूरा करने के लिए तरह-तरह की दिक्कतें उठाईं। उसका हौसला बढ़ाया और उसकी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए खुद की जरूरतों का परित्याग भी किया।

अपनी प्रारम्भिक शिक्षा का श्रीगणेश सुभाष बालिका विद्यालय से करने वाली सुषमा सिंह की खेलों में अभिरुचि को देखते हुए इनके माता-पिता ने इनका दाखिला कानपुर में खेलों के सबसे अच्छे विद्यालयों में शुमार के.के. कालेज में करा दिया। के.के. कालेज में सुषमा सिंह की प्रतिभा को इंदू मैडम का सहारा मिला। इंदू मैडम के सान्निध्य में आते ही सुषमा के सपनों को पंख लग गए। इस बीच सुषमा को अपनी टेबल टेनिस की राष्ट्रीय खिलाड़ी मित्र भावना तिवारी का भरपूर सहयोग मिला। देखते ही देखते सुषमा हैण्डबाल, वालीबाल, कबड्डी, खो-खो, हाकी, एथलेटिक्स की बेहतरीन खिलाड़ियों में शुमार हो गईं। सुषमा ने इन खेलों में जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभागिता करते हुए दर्जनों मेडल जीतकर के.के. कालेज को गौरवान्वित किया।

सुषमा की खेलों में दिलचस्पी आगे भी बरकरार रही। स्नातक पाठ्यक्रम को जारी रखने के लिए इन्होंने डी.जी. कालेज में प्रवेश लिया और अपने महाविद्यालय को विभिन्न खेलों में शानदार सफलताएं दिलाईं। इस दौरान सुषमा ने नार्थ जोन इंटर यूनिवर्सिटी की हैण्डबाल, खो-खो, वालीबाल, हाकी एवं बास्केटबाल में प्रतिभाग किया। इसके उपरांत बीपीएड के लिए लखनऊ क्रिश्चियन कालेज में प्रवेश सुनिश्चित हो जाने का बाद भी रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर में पढ़ने का निश्चय किया। सुषमा को यहां कानपुर की सीनियर छात्राओं आराधना, सौम्या, रानी आदि का भरपूर सहयोग मिला। अपने कठिन परिश्रम और प्रशिक्षक अमिताभ के प्रोत्साहन से इन्होंने हाकी में आल इंडिया यूनिवर्सिटी और साउथ वेस्ट जोन से हैण्डबाल में भाग लेते हुए उप-विजेता होने का गौरव हासिल किया। एमपीएड के दौरान पैरों में इंजुरी के चलते सुषमा को खेल छोड़ना पड़ा लेकिन एक शिक्षक-प्रशिक्षक के तौर पर इन्होंने नई पारी की शुरुआत कर दी।

सुषमा सिंह एक साल तक केन्द्रीय विद्यालय-2 चकेरी कानपुर में बिताने के बाद 2003 से 2005 तक एसडीएम कालेज कायमगंज फर्रुखाबाद में बतौर स्पोर्ट्स टीचर वह काम किया जिसे उस दौर में उस क्षेत्र में अकल्पनीय माना जा रहा था। सुषमा ने वहां के लोगों की सोच, रूढ़िवादिता को बदलते हुए छात्राओं की ऐसी खो-खो टीम तैयार की जिसने कानपुर विश्वविद्यालय में चैम्पियन होने का गौरव हासिल किया। यह सब काबिल सुषमा के प्रशिक्षण और प्रेरणा से ही सम्भव हो सका। सुषमा सिंह ने कायमगंज में न केवल खेलों की अलख जगाई बल्कि छात्राओं को खेल शिक्षा के महत्व से भी रूबरू कराया। सुषमा के प्रयासों से शिल्पी मिश्रा ने बीपीएड करने के बाद उसी महाविद्यालय में स्पोर्ट्स टीचर का पद भी सम्हाला। शिल्पी मिश्रा वर्तमान एनसीसी सीनियर विंग की एएनओ भी हैं। यहां की कई छात्राएं देश की रक्षा सेनाओं में जहां अपना बहुमूल्य योगदान दे रही हैं वहीं कई छात्राएं एनसीसी साहसी बालिका नामक संस्था के बैनर तले समाज सेवा में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं।

कायमगंज में एक नई इबारत लिखने के बाद सुषमा सिंह 2005 में लखनऊ पब्लिक कालेज का हिस्सा बनीं। यहां इन्होंने एक से एक बेजोड़ एथलीट तैयार किए जिनके दम पर यह स्कूल 2016 से जिलास्तरीय क्लोजियर प्रतियोगिता में तीन बार विजेता तो एक बार उपविजेता रह चुका है। सुषमा बताती हैं इस विद्यालय की खेलों में अनेकों उपलब्धियां हैं लेकिन सबसे अधिक अविस्मरणीय स्टार स्पोर्ट्स द्वारा आयोजित केबीडी जूनियर कबड्डी प्रतियोगिता है, जिसमें लखनऊ लीग में लखनऊ पब्लिक कालेज का चैम्पियन बनना है। सुषमा सिंह की खेल सेवाओं को देखते हुए इन्हें चार बार श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। सुषमा सिंह एमपीएड की डिग्री हासिल करने के साथ एनसीसी से भी जुड़ गई हैं। चेन्नई में दो माह के कठिन प्रशिक्षण के बाद सुषमा सिंह आज एएनओ की भूमिका का भी शानदार निर्वहन करते हुए छात्र-छात्राओं में खेलप्रेम और देशप्रेम का जज्बा पैदा कर रही हैं।       

देखा जाए तो आज हर क्षेत्र में बेटियां कामयाबी की इबारत लिख रही हैं। लेकिन हमें इससे ही संतुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। यह ठीक है कि उनकी ये उपलब्धियां हमें गौरन्वावित करने वाली हैं लेकिन यह भी सच है कि महिलाओं के प्रोत्साहन की दिशा में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। आज यदि इतनी विषम परिस्थितियों में बेटियां कामयाबी की इबारत लिख रही हैं तो इसके पीछे कुछ हद तक उन परिवारों की संवेदनशीलता है जोकि उनकी इच्छा के अनुरूप, उनकी प्रतिभा के अनुरूप उन्हें शिक्षण-प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करते हैं। बेटियां ऊंची उड़ान भरें इसके लिए जरूरी है कि उन्हें घर-परिवार के साथ समाज का भी प्रोत्साहन मिले।

 

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