जूडोका सारिका की उपलब्धियों पर कानपुर को नाज

खेलो इंडिया यूथ गेम्स में जीता रजत पदक

मनीषा शुक्ला

कानपुर। बेटियां किसी भी क्षेत्र में बेटों से कम नहीं हैं। हर चुनौती को आगे बढ़कर स्वीकारने वाली बेटियां आज खेल के क्षेत्र में बेटों से भी आगे हैं। हो सकता है कि जनसंख्या की दृष्टि से उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े शहर कानपुर के खेलों से जुड़े लोगों और खेलप्रेमियों को हमारी बात नागवार गुजरे लेकिन इसी साल जनवरी महीने में असम के गुवाहाटी में हुए तीसरे खेलो इंडिया यूथ गेम्स में स्वाती और सारिका बेटियों ने ही शहर की इज्जत बचाई थी। स्वाती यादव ने भारोत्तोलन तो सारिका ने जूडो में चांदी के तमगों से न केवल अपने गले सजाए बल्कि कानपुर के गौरव को भी चार चांद लगा दिए।

गुवाहाटी में हुए तीसरे खेलो इंडिया यूथ गेम्स में जूडो के क्षेत्र में सारिका का शानदार प्रदर्शन तुक्का नहीं कहा जा सकता। बिना बाप की बेटी सारिका ने अब तक जो भी सफलताएं हासिल की हैं उसमें उसके जज्बे और कभी हार न मानने की इच्छाशक्ति को प्रमुख माना जा सकता है। अर्मापुर इस्टेट कानपुर निवासी सरोज-गुड्डू के घर जन्मी सारिका की अब तक की उपलब्धियां चींख-चींख कर बता रही हैं कि यह बेटी फौलाद की बनी है। यह जो भी संकल्प ले लेती है उसे पूरा करके ही दम लेती है। अपने शानदार प्रदर्शन से राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर आठ स्वर्ण, एक रजत और दो कांस्य पदक जीतकर कानपुर की सारिका बेटी ने समूचे उत्तर प्रदेश को गौरवान्वित किया है।

इस साल खेलो इंडिया यूथ गेम्स में चांदी का पदक जीतने वाली सारिका ने पिछले साल 65वें नेशनल स्कूल गेम्स में भी कांस्य पदक जीता था। सारिका की प्रतिभा को उसके प्रशिक्षक राजेश भारद्वाज ने निखारा है। सारिका एसएएफ स्पोर्ट्स पवेलियन अर्मापुर इस्टेट कानपुर में सुबह-शाम राजेश भारद्वाज से ही जूडो के गुर सीखती है। राजेश भारद्वाज की कही सच मानें तो सारिका में गजब का टैलेंट है। सारिका द्वारा अब तक जीते गए आठ स्वर्ण पदक इस बात का संकेत हैं कि इस बेटी को पराजय से सख्त नफरत है।

जूडो में सारिका ने राज्यस्तर पर जीत की शुरुआत 2015 में ही कर दी थी। 2015 में सारिका ने प्रदेश स्तरीय विद्यालयीन प्रतियोगिता में स्वर्णिम सफलता हासिल की थी तो मार्च महीने में कानपुर में हुई ओपन राज्य आमंत्रण प्रतियोगिता में भी स्वर्ण पदक जीत दिखाया था। इसी साल नवम्बर में सैफई में हुई राज्यस्तरीय जूनियर बालक-बालिका प्रतियोगिता में भी सारिका ने स्वर्णिम सफलता हासिल की थी। सारिका के लिए 2016 कुछ अच्छा नहीं रहा। इस वर्ष राज्यस्तर पर कुछ सफलताएं हासिल करने के बाद उसने नेशनल कैडेट एण्ड जूनियर जूडो चैम्पियनशिप के साथ 62वें नेशनल स्कूल खेलों में प्रतिभागिता की थी लेकिन कोई पदक नहीं जीत सकी थी।

2017 सारिका के लिए फिर खुशियों भरा साबित हुआ। फरवरी, 2017 में लखनऊ में हुई सीनियर राज्यस्तरीय जूडो चैम्पियनशिप में सारिका ने स्वर्ण पदक जीतकर अपने कौशल का नायाब उदाहरण पेश किया था। नवम्बर, 2018 में सहारनपुर में हुई पंडित दीन दयाल उपाध्याय राज्यस्तरीय जूडो चैम्पियनशिप में भी सारिका ने स्वर्णिम सफलता हासिल की थी। फरवरी, 2018 में दिल्ली में हुए पहले खेलो इंडिया स्कूल गेम्स में भी सारिका ने सहभागिता की थी लेकिन पदक जीतने से वंचित रह गई थी। सारिका ने जनवरी, 2018 में सहारनपुर में हुई राज्यस्तरीय जूनियर जूडो बालक एवं बालिका चैम्पियनशिप तो दिसम्बर, 2018 में कानपुर में हुई सीनियर राज्यस्तरीय जूडो चैम्पियनशिप में स्वर्णिम सफलताएं हासिल कर खेल क्षेत्र को नया पैगाम दिया।

सारिका ने 2019 में सीनियर नेशनल जूडो चैम्पियनशिप में सहभागिता करने के साथ नवम्बर में दिल्ली में हुए 65वें नेशनल स्कूल खेलों में कांस्य पदक जीतकर कानपुर को गौरवान्वित किया तो दिसम्बर, 2019 में लखनऊ में हुई नेशनल जूनियर जूडो चैम्पियनशिप में भी कांसे का तमगा हासिल कर दिखाया। गुवाहाटी में खेलो इंडिया यूथ गेम्स में चांदी का पदक जीतने वाली सरोज की बेटी सारिका ने फरवरी, 2020 में कानपुर में हुई जूनियर राज्यस्तरीय जूडो चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर यह साबित किया कि वह जूडो में कानपुर ही नहीं भारत का भविष्य है।

कानपुर की स्वाती और सारिका जैसी बेटियां खेल क्षेत्र में जिस तरह का अनूठा प्रदर्शन कर रही हैं उसे देखते हुए समाज द्वारा बेटियों को आगे बढ़ाने के साथ उन्हें सुरक्षित माहौल देने की दरकार है। बेटियों को लेकर हमारी कथनी और करनी में अंतर नहीं होना चाहिए। आओ हम खेलों में बेटियों को सुरक्षित माहौल दें ताकि वे निडर होकर अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ा सकें। सच कहें तो बेटियों को निरोगी रखकर ही हम स्वस्थ भारत के सपने को साकार कर सकते हैं।

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