संजीव जौहरी के जौहर को कानपुर का सलाम

जौहरी ब्रदर्स ने खेलों में खूब कमाया नाम

नूतन शुक्ला

कानपुर। कहते हैं कि यदि इंसान में कुछ करने का जुनून और जज्बा हो तो वह कुछ भी कर सकता है। ऊपर वाला भी सिर्फ और सिर्फ हिम्मत वालों का ही साथ देता है। गुजरे जमाने के सदाबहार एथलीट रहे संजीव जौहरी ऐसे ही जुजूनी और जज्बे वाले एथलीट रहे हैं। वह बेशक खेल से दूर हैं लेकिन इनका मन पुराने पराक्रमी दिनों को याद कर आज भी बाग-बाग हो जाता है। गाहे-बगाहे ही सही जौहरी ब्रदर्स के प्रदर्शन को आज भी कनपुरिया लोग आदर से याद करते हैं। दो कम्पनियों का सफल संचालन कर रहे संजीव जौहरी कहते हैं कि उम्र के इस पड़ाव में भी मुझे खेलों से बेइंतिहा मोहब्बत है।

गुजरात के जामनगर में जन्में और कानपुर को अपनी कर्मस्थली मानने वाले जौहरी ब्रदर्स ने एथलेटिक्स में जो पटकथा लिखी है वह अपने आप में मिसाल है। संजीव जौहरी कई वर्षों तक 800 मीटर, 1500 मीटर दौड़ के अलावा क्रास कंट्री दौड़ व पांच तथा 10 किलोमीटर दौड़ों में अपनी दमखम से सुर्खियों में रहे। संजीव जौहरी के भाई अरविन्द जौहरी 100 और 200 मीटर दौड़ों के बेताज बादशाह थे। अरविन्द जौहरी ने दुर्गापुर नेशनल एथलेटिक्स मीट में 100 और 200 मीटर दौड़ों के स्वर्ण और रजत पदक जीते थे। जौहरी ब्रदर्स के नाम से विख्यात दो भाइयों की इस जोड़ी ने स्टेट और नेशनल एथलेटिक्स में भी शानदार सफलताएं हासिल की हैं।

जौहरी ब्रदर्स ने एथलेटिक्स में कानपुर के लिए जो शोहरत और कामयाबी हासिल की उसका दूसरा उदाहरण मिलना मुश्किल है। संजीव जौहरी बालक वर्ग में उत्तर प्रदेश एथलेटिक्स टीम के कप्तान भी रहे। इन्होंने उत्तर प्रदेश की एथलेटिक्स टीम का प्रतिनिधित्व करने के साथ यूनिवर्सिटी खेलों में भी अपनी बादशाहत कायम रखी। पांच सितम्बर, 1976 के दिन संजीव जौहरी ने कानपुर के ग्रीनपार्क काम्प्लेक्स में हुई जिलास्तरीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता की तीन स्पर्धाओं में स्वर्णिम सफलता हासिल कर अपने उज्ज्वल भविष्य के संकेत दे दिए थे।

जौहरी ब्रदर्स के हमउम्र मित्रों की कही सच मानें तो एथलेटिक्स में संजीव और अरविन्द ने अपने समय में कमाल का प्रदर्शन किया था। इन दो भाइयों ने सीमित संसाधनों के बावजूद अपने दमदार प्रदर्शन से हर किसी को खासा प्रभावित किया था। वह जिस भी प्रतियोगिता में उतरते कोई न कोई पदक जरूर जीतते। संजीव जौहरी खेलपथ को बताते हैं कि एथलेटिक्स हमारे लिए पैशन था। हमने अपनी जवानी मध्यम दूरी की दौड़ों को ही समर्पित कर दी थी। गुजरात से यहां आने के बाद हमने सपने भी नहीं सोचा था कि कानपुर में मुझे इतनी कामयाबी और सम्मान मिलेगा। सच कहें तो मुझे कानपुर में उम्मीद से कहीं अधिक शोहरत मिली है। मैं जब भी लोगों के बीच पहुंचता था खेलप्रेमी इज्जत की नजर से देखते थे। मुझे खेलों से प्यार था और आज भी है। श्री जौहरी बताते हैं कि मेरे समय में खेल सुविधाएं और काबिल प्रशिक्षक नहीं थे वरना मैं देश का भी प्रतिनिधित्व कर सकता था। श्री जौहरी कहते हैं कि कानपुर में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। यहां प्रतिभाएं अभी भी मौजूद हैं बस उन्हें निखारने की जरूरत है।

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