महेन्द्र प्रताप सिंह का सपना खुद की हो एथलेटिक्स एकेडमी

अपने समय के शानदार डिस्कस थ्रोवर ने सुनाई आपबीती
नूतन शुक्ला
कानपुर। मुझे एथलेटिक्स से बेइंतिहा प्यार है। मुझे इस बात का भी मलाल है कि बेहतर प्रशिक्षण और सुविधाएं न मिलने से मैं तिरंगे का मान नहीं बढ़ा सका। अब मेरा सपना एक सर्वसुविधायुक्त एथलेटिक्स एकेडमी खोलकर अपने अधूरे सपने को पूरा करना है। मैं चाहता हूं कि भारतीय एथलीट ओलम्पिक में पोडियम तक पहुंचें। यह कहना है अपने समय के श्रेष्ठ डिस्कस थ्रोवर महेन्द्र प्रताप सिंह का।
मूलतः वाराणसी के रहने वाले महेन्द्र प्रताप सिंह अब कानपुर को ही अपना सब कुछ मान चुके हैं। वह कहते हैं कि इस शहर ने मुझे मान-सम्मान सहित बहुत कुछ दिया है। मेरी इच्छा है कि इस शहर को जीते-जी एक सर्वसुविधायुक्त एथलेटिक्स एकेडमी दे सकूं। महेन्द्र प्रताप बताते हैं कि 1989 में पिता सत्येन्द्र कुमार सिंह जी की पोस्टिंग कानपुर होने के बाद मैं भी यहां आ गया। मुझे एथलेटिक्स का इस कदर जुनून सवार था कि मैं हर पल एक योग्य प्रशिक्षक ही खोजता रहता। आखिरकार मेरी मुलाकात दिनेश सिंह भदौरिया सर से हुई और उन्होंने ही मुझे इस खेल की बारीकियों से रूबरू कराया।
महेन्द्र प्रताप सिंह खेलपथ से बातचीत करते हुए बताते हैं कि मेरे खेल जीवन की शुरुआत 1989 में प्रशिक्षक दिनेश सिंह भदौरिया की देखरेख में हुई। श्री भदौरिया के प्रशिक्षण की बदौलत ही मैं 1996 में जूनियर नेशनल मीट में रजत पदक जीत सका तो 1997 में हुई नेशनल मीट में मुझे कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा। इसी साल मैं डिस्कस थ्रो में उत्तर प्रदेश स्टेट रिकार्ड बनाने में सफल रहा। इस सफलता के बाद महेन्द्र प्रताप सिंह ने नार्थ जोन मीट में कई मेडल जीते और प्रदेश भर में खेलप्रेमियों की वाहवाही लूटी। महेन्द्र प्रताप बताते हैं कि 1993 में पिताजी का तबादला वाराणसी हो गया और मेरा परिवार वहीं सिफ्ट हो गया। मुझे चूंकि खेलों और भदौरिया सर से लगाव था सो मैं यहीं रुक गया।
महेन्द्र प्रताप सिंह बताते हैं कि मैं 1989 से 1996 तक कानपुर में ही रहा। यहीं से मेरा चयन नेशनल कैम्प पटियाला, दिल्ली और जमशेदपुर के लिए हुआ। यह मेरी बदकिस्मती थी कि मैं भारतीय एथलेटिक्स टीम का प्रतिनिधित्व नहीं कर सका। महेन्द्र प्रताप सिंह कहते हैं कि जिसकी विल पावर मजबूत होती है, जिसमें कुछ करने का जुनून होता है, इरादा मजबूत होता है, वह जमीन से उठकर आसमान तक पहुंच जाता है। मुझे लगता है कि कहीं न कहीं मुझसे चूक जरूर हुई है वरना मुझे देश के लिए खेलना चाहिए था। खैर, मैं अतीत को भूलकर अब स्वयं की एक एथलेटिक्स एकेडमी खोलने का सपना देखता हूं जिसमें हर उस बच्चे को प्रवेश मिले जोकि एथलेटिक्स में देश को पदक देने का सपना देखता हो। काश महेन्द्र प्रताप सिंह का यह सपना जरूर पूरा हो।