नाम के अनुरूप नूतन शुक्ला का काम

बहुमुखी प्रतिभा का नायाब उदाहरण

श्रीप्रकाश शुक्ला

प्रतिभा और गुण हर इंसान में होते हैं लेकिन उसका सही इस्तेमाल करने वाला ही विशेष होता है। तीन दशक से अधिक के खेल पत्रकारिता जीवन में सैकड़ों राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों से रू-ब-रू होने का मौका मिला है लेकिन जो बात नूतन शुक्ला में मैंने देखी है वह उन्हें सबसे अलग साबित करती है। खेलों को पूर्ण समर्पित नूतन बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। गीत-संगीत में रुचि के साथ इनका बेजोड़ लेखन और नाम के अनुरूप काम अपने आप में सभी के लिए उदाहरण है।

हमारे देश में बेटियों के लिए खेलना और खेल के क्षेत्र में करियर बनाना आसान बात नहीं है। जो बेटियां खेलना भी चाहती हैं उन्हें घर-परिवार और समाज की दकियानूसी परम्पराओं से हर पल जूझना होता है। जो बेटी अपने जुझारूपन से स्थितियों पर काबू पा लेती है, उसे ही सफलता नसीब होती है। सफलता के सौ बाप होते हैं लेकिन असफल इंसान को प्रोत्साहन देने वाले हमारे समाज में गिने-चुने लोग ही हैं।   नूतन शुक्ला को भी खेलों के क्षेत्र में अनगिनत परीक्षाएं देनी पड़ी हैं। इनका हार न मानने का जज्बा ही है जोकि इन्हें खेल के क्षेत्र में टिकाए हुए है।

दो साल पहले की बात है जब इन्होंने उत्तर प्रदेश एथलेटिक्स मास्टर मीट में दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीतकर कानपुर को गौरवान्वित किया था। यह कहानी है एक संघर्ष की, एक जिद की जिसने अपनी अधूरी ताबीर को पूरा करने के लिए अपना सब कुछ झोंका है। नूतन शुक्ला संगीत गायन में प्रभाकर हैं लेकिन इनके मन में दिन के हर पहर सिर्फ और सिर्फ खेलों के समुन्नत विकास की ही धुन सवार रहती है। 28 जुलाई, 1979 को वीरेन्द्र नाथ-शशिकला के घर जन्मी नूतन के मन में बचपन से ही  खेलों की ललक थी लेकिन हर भारतीय बेटी की तरह नूतन की राह भी आसान नहीं रही।

जब नूतन 14 साल की थीं तब विद्यालय की शिक्षिका रमाकांती तिवारी ने उनकी कद-काठी को देखते हुए खेलों में हाथ आजमाने को प्रोत्साहित किया था। यहां तक कि नूतन के माता-पिता से भी बेटी को खिलाड़ी बनाने की अनुमति मांगी लेकिन वीरेन्द्र नाथ शुक्ला को यह बात जरा भी नहीं जंची, उन्होंने साफ-साफ मना कर दिया कि हमारी बिटिया कतई नहीं खेलेगी। नूतन खेलना चाहती है, इस बात का पता जब मां को चला तो उन्होंने बेटी की पीठ ठोकते हुए कहा कि तू जरूर खेलेगी। मैं तेरा साया बनकर साथ दूंगी। ममतामयी मां ने जो कहा सो किया भी। मां के प्रोत्साहन से नूतन ने न केवल घर से मैदानों की तरफ रुख किया बल्कि देखते ही देखते सबकी आंखों का नूर बन गई। बेटी की सफलता ने पिता के विचारों को भी बदल दिया और वह हर किसी से बस एक ही बात कहते कि नूतन मेरी बेटी नहीं मेरा बेटा है। नूतन के बड़े भाई खेल की बजाय बतौर शिक्षक संगीत शिक्षा में बच्चों को पारंगत करते हैं।

मां से बढ़कर कभी कोई नहीं हो सकता। मां के प्रोत्साहन और सहयोग का ही कमाल था कि एथलेटिक्स में स्कूल से विश्वविद्यालय स्तर तक नूतन ने अपनी सफलता की शानदार पटकथा लिखी। उस दौर में नूतन जिस भी प्रतियोगिता में उतरीं, उसमें मेडल जरूर जीते। नूतन विश्वविद्यालय स्तर पर चैम्पियन आफ द चैम्पियन एथलीट रहीं तो अन्य प्रतियोगिताओं में भी इनके दमखम की जमकर तूती बोली। नूतन की पसंदीदा प्रतिस्पर्धाएं तो 400 मीटर दौड़ और 400 मीटर बाधा दौड़ थी लेकिन इस खिलाड़ी बेटी ने 200 और 800 मीटर दौड़ में भी अनगिनत सफलताएं अर्जित कीं। आल इंडिया यूनिवर्सिटी की बात हो या फिर अन्य राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की, नूतन जहां भी उतरीं अपनी सफलता से सभी को प्रभावित किया।

राष्ट्रीय स्तर पर दमदार प्रदर्शन करने वाली नूतन का अंतरराष्ट्रीय खेल मंचों में देश के लिए खेलना सपना ही रह गया। नूतन देश के लिए तो नहीं खेल सकीं लेकिन उन्होंने मिलिट्री साइंस से मास्टर डिग्री हासिल करने के साथ-साथ संगीत गायन में प्रभाकर की उपाधि हासिल की। अपनी मां और अपने अधूरे ख्वाबों को अंजाम तक पहुंचाने की खातिर नूतन ने भोपाल के बरकत उल्ला विश्वविद्यालय से बीपीएड की डिग्री हासिल की तथा खिलाड़ी प्रतिभाओं को निखारने का संकल्प लिया। नूतन दिल्ली में हुए राष्ट्रमण्डल खेलों सहित कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स स्पर्धाओं में तकनीकी अधिकारी के रूप में भी अपनी सेवाएं दे चुकी हैं।

नूतन ने खो-खो की ऐसी टीम तैयार की है जोकि पिछले पांच वर्षों से इंटर स्कूल चैम्पियन है। इनसे प्रशिक्षण हासिल तीन बच्चे पिछले साल आईसीएससी के नेशनल में खेले और जीत का परचम फहराया। इस साल इनकी जांबाज बेटियों की खो-खो टीम जिला, राज्य और नेशनल स्तर पर चैम्पियन रही। नूतन की काबिलियत को देखते हुए इन्हें स्कूल गेम्स फेडरेशन आफ इंडिया के खेलों में उत्तर प्रदेश टीम का कोच बनाया गया। नूतन सफलता और असफलता को समय का चक्र मानती हैं। वह फिलवक्त नामचीन हडर्ड हाईस्कूल कानपुर में बतौर स्पोर्ट्स टीचर सेवाएं दे रही हैं।

नूतन कहती हैं कि अंतरराष्ट्रीय एथलीट न बन पाने का मुझे मलाल तो है लेकिन मैं अभी भी हिम्मत नहीं हारी हूं। मुझमें अभी भी खेलने का जुनून है। नूतन के जुनून का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्होंने दो साल पहले उत्तर प्रदेश एथलेटिक्स मास्टर मीट में दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीतकर कानपुर सम्भाग को चैम्पियन बनाया था। नूतन ने शाटपुट और हैमर थ्रो में स्वर्ण तो डिस्कस थ्रो में चांदी का पदक जीता था। वह कहती हैं कि जब तक जीवन है खेलों से उनका नाता नहीं टूटेगा। काश ऐसा ही हो और वह अपने अधूरे सपनों को पूरा कर कानपुर सहित उत्तर प्रदेश को गौरवान्वित करें।

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