खेलों में बेटियों को भी मिलें समान अवसरः प्रिया सचान

समाज अपनी नजर और नजरिया बदले

खेलपथ संवाद (9627038004)

कानपुर। आज बेटियां हर क्षेत्र में अपनी बुद्धि, कौशल और पराक्रम से नई पटकथा लिख रही हैं। खेल के क्षेत्र में आज बेटियां राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शानदार प्रदर्शन कर जहां देश का मान बढ़ा रही हैं वहीं बड़े-बड़े पदों पर भी आसीन हो रही हैं। मैं एक खिलाड़ी और शारीरिक शिक्षक होने के नाते समाज तथा अभिभावकों से आग्रह करती हूं कि बेटों की तरह बेटियों को भी खेल के क्षेत्र में कौशल दिखाने के पर्याप्त अवसर मिलने चाहिए। बेटियां खेल के क्षेत्र में न केवल चमत्कारिक प्रदर्शन कर सकती हैं बल्कि इसमें अपना करियर भी संवार सकती हैं। यह कहना है स्वराज इंडिया पब्लिक स्कूल, काकादेव कानपुर की शारीरिक शिक्षक और खो-खो व क्रिकेट की प्रशिक्षक प्रिया सचान का।

प्रिया सचान खुद का उदाहरण देते हुए कहती हैं कि आज मैं जो कुछ भी हूं खेलों की बदौलत ही हूं। खेलों ने ही मेरे सपनों को पंख लगाए हैं। आज मैं अपने पैरों पर खड़ी हूं और हमारी कोशिश है कि आने वाली पीढ़ी को खेलों के लिए प्रोत्साहित करूं। शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में कदम रखने से पूर्व प्रिया सचान ने बीपीएड और एमपीएड की तालीम हासिल की तथा राज्यस्तर पर खो-खो व क्रिकेट में अपनी प्रतिभा का शानदार आगाज किया। बीपीएड और एमपीएड की तालीम हासिल करने के बाद प्रिया सचान बतौर स्पोर्ट्स टीचर चार साल तक केन्द्रीय विद्यालय अर्मापुर-1 में सेवारत रहीं। आज वह स्वराज इंडिया पब्लिक स्कूल, काकादेव कानपुर में शारीरिक शिक्षक हैं तथा खो-खो और क्रिकेट में युवाओं की प्रतिभा को निखार रही हैं। इनसे तालीम हासिल बच्चे खेल के क्षेत्र में लगातार कानपुर का गौरव बढ़ा रहे हैं।

प्रिया कहती हैं कि मैं के.के. स्कूल की इंदू मैडम और सुरेन्द्र रैयत सर की आभारी हूं जिन्होंने न केवल मेरे हौसले को बढ़ाया बल्कि हर पल मेरा मार्गदर्शन भी किया। प्रिया कहती हैं कि बड़ा दुःख होता है जब माता-पिता बच्चों की खेल में रुचि होने के बाद  भी चाहते हैं कि उनका बेटा-बेटी बड़ा होकर डाक्टर बने, इंजीनियर बने या उसे कोई अच्छी सी नौकरी मिले। मैं समाज का आह्वान करती हूं कि वह अपनी सोच और नजरिया दोनों बदले क्योंकि खेलों से बच्चे न केवल स्वस्थ रहते हैं बल्कि उनका मानसिक विकास भी होता है। खेलों से इंसान में कठिन परिस्थितियों से निपटने की शक्ति आती है लिहाजा हर अभिभावक को अपने बेटे और बेटियों को खेलों में समान मौके देना चाहिये। बेटे ही नहीं बेटियां भी मुश्किल घड़ी में अपने परिवार, समाज और देश की लाज बचा सकती हैं।

वर्तमान इस बात का गवाह है कि खेल अब सिर्फ मनोरंजन का साधन ही नहीं शानदार करियर भी हैं। भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता चरम पर होने में कोई शक नहीं है, लेकिन टेनिस, कुश्ती, चेस, बैडमिंटन, मुक्केबाजी, निशानेबाजी, तीरंदाजी, हाकी समेत कई और खेलों में भी भारत का दबदबा लगातार बढ़ रहा है। खेलों में मान-सम्मान ही नहीं पैसा और शोहरत भी है। खेलों में अपना करियर बनाने वालों के लिए न केवल केन्द्र सरकार  बल्कि राज्य सरकारें भी काफी सुविधाएं उपलब्ध करवाने लगी हैं। कॉर्पोरेट सेक्टर से भी खेलों में सफलता प्राप्त करने वाले खिलाड़ियों को पुरस्कार और नकद राशि दी जाने लगी है। खेलों में देश का गौरव बढ़ाने वाले खिलाड़ियों के लिए देश की जनता ने भी अब पलक पांवड़े बिछाकर स्वागत करना सीख लिया है लिहाजा युवा पीढ़ी को खेलों में रुचि लेनी चाहिए इससे न केवल करियर संवरेगा बल्कि किस्मत भी बदल सकती है। आओ खेलें और देश का मान बढ़ाएं।

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