खेलों की नायाब शख्सियत संजय को कानपुर का सलाम

हर पल खेलों को जीता जौनपुर का योद्धा

नूतन शुक्ला

कानपुर। मुसाफिर वह है जिसका हर कदम मंजिल की चाहत हो, मुसाफिर वह नहीं जो दो कदम चल करके थक जाए। जी हां संजय कुमार सिंह खेलों के कभी न थकने वाले नायाब योद्धा हैं। खेल इनकी रग-रग में समाये हुए हैं। ऐसा हो भी क्यों नहीं इन्हें खेल विरासत में जो मिले हुए हैं। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगभग एक सैकड़ा पदक जीत चुके संजय कुमार सिंह का खेलों से अभी भी मन भरा नहीं है। संजय कहते हैं कि मैं अंतिम सांस तक खेलों के लिए ही जियूंगा और मरूंगा। कानपुर में खेलों से जुड़ा हर व्यक्ति संजय कुमार सिंह को न केवल जानता है बल्कि इनके खेलप्रेम और सदाशयता की दिल खोलकर तारीफ भी करता है।  

मूलरूप से माधोपट्टी, जौनपुर निवासी संजय कुमार सिंह को खेल पैतृक विरासत में मिले हैं। इनके बाबा ठाकुर जवाहर सिंह जहां अपने समय के लाजवाब खिलाड़ी रहे वहीं इनके पिता उदयभान सिंह ने भी अपने समय में गोलाफेंक में खूब कमाया था। लोगों की कही सच मानें तो संजय के बाबा इतने बेहतरीन खिलाड़ी थे कि उनके खेल से खुश होकर अंग्रेजों ने उन्हें कोतवाली में दरोगा बना दिया था। यह जरूरी नहीं कि बाप-दादा की विरासत को हर कोई आगे बढ़ा पाता हो। यह जवाहर सिंह और उदयभान सिंह परिवार के लिए गौरव की बात है कि संजय कुमार सिंह ने अपनी लगन और मेहनत से खेलों में ऐसा मुकाम हासिल किया जोकि उनके परिवार के लिए ही नहीं बल्कि समूचे उत्तर प्रदेश के लिए गौरव की बात है।

कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। संजय कुमार सिंह का बचपन से ही खेलों की तरफ पूर्ण समर्पित होना तथा दिन-रात मेहनत करना ही इनकी सफलता का प्रमुख कारण है। संजय सिंह ने स्नातकोत्तर उपाधि के साथ कानून की तालीम हासिल की है। संजय ने खेलों की शुरुआत वर्ष 1973 में की और लगातार सफलता के चलते इन्हें 1980 में स्पो‌र्ट्स कोटे से भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के आयुध निर्माणी, शिक्षण संस्थान, कानपुर में सेवा का अवसर मिला। नौकरी मिलने के बाद प्रायः लोग खेल छोड़ देते हैं लेकिन अपनी धुन के पक्के संजय को तो कुछ और ही मंजूर था। इन्होंने आर्डिनेंस फैक्ट्री में ईमानदारी से काम करने के साथ ही अखिल भारतीय आयुध निर्माणी एवं आयुध उपस्कर द्वारा आयोजित प्रतियोगिताओं में भी लगातार शिरकत करते रहे। संजय ने एक-दो साल नहीं बल्कि 37 साल तक गोलाफेंक और डिस्कस थ्रो में स्वर्णिम सफलताएं हासिल कर सारे मुल्क में अपने पराक्रम का जलवा दिखाते हुए विभाग के गौरव में चार चांद लगाए।

संजय कुमार सिंह गोलाफेंक, डिस्कस थ्रो, भालाफेंक के अलावा क्रिकेट और वालीबाल में भी किसी से कम नहीं हैं। वर्ष 1976 में इन्होंने कोतायापल्लाई (केरल) में हुई राष्ट्रीय प्रतियोगिता की भालाफेंक और गोलाफेंक स्पर्धा में रजत पदक जीते तो जूनियर बालक वर्ग के डिस्कस थ्रो में कांस्य पदक जीतकर अपनी प्रतिभा का शानदार आगाज किया था। संजय के इसी चमकदार प्रदर्शन को देखते हुए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल एम. चेन्नारेड्डी द्वारा इन्हें लक्ष्मण अवार्ड से नवाजा गया था।

पूर्व उप-निदेशक संजय कुमार सिंह आल स्टार कैडर के खिलाड़ी रहे हैं। एथलेटिक्स के क्षेत्र में इनके नाम कई कीर्तिमान दर्ज हैं। इन्होंने 1979 में हैदराबाद में हुई 25वीं राष्ट्रीय प्रतियोगिता की गोलाफेंक स्पर्धा में स्वर्णिम सफलता के साथ जहां नेशनल रिकार्ड बनाया वहीं डिस्कस थ्रो में भी कांस्य पदक अपने नाम किया। संजय सिंह 37 साल तक ऑल इंडिया आर्डिनेंस एण्ड आर्डिनेंस इक्विपमेंट फैक्ट्रीज की एथलेटिक मीट में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले खिलाड़ी हैं। इन्होंने अपने करियर में 21 स्वर्ण पदक जीते। 37 साल तक गोलाफेंक और डिस्कस थ्रो में अपराजेय रहने के चलते संजय कुमार सिंह को डायरेक्टर जनरल और चेयरमैन आर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड द्वारा लाइफ टाइम अवार्ड से नवाजा गया।

आयुध निर्माणी के राष्ट्रीय खेलों में संजय कुमार सिंह की उपलब्धियां आने वाले एथलीटों के लिए न केवल चुनौती हैं बल्कि यह ऐसे कीर्तिमान हैं जिन्हें आसानी से तोड़ा जाना नामुमकिन प्रतीत होता है। संजय ने मास्टर्स एथलेटिक्स में भी शानदार सफलताएं हासिल की हैं। संजय सिंह ने राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपने दमखम का शानदार परिचय दिया है। इन्होंने 2016 में सिंगापुर में हुई एशियन मास्टर्स एथलेटिक्स प्रतियोगिता की गोलाफेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक तथा डिस्कस थ्रो में रजत पदक से अपना गला सजाया था। दिसम्बर 2017 में सेवानिवृत्ति के बाद भी संजय सिंह का मैदानों से लगाव बना हुआ है। हमेशा की तरह आज भी इन्हें सुबह-शाम खेल मैदानों में मशक्कत करते हुए देखा जा सकता है।

संजय कुमार सिंह खेलों के साथ सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। वर्ष 1990 से वह श्री श्री रामलीला समिति अर्मापुर इस्टेट कानपुर के महामंत्री हैं। यह कई वर्षों तक भारत सेवक शिक्षा समिति, अर्मापुर इस्टेट कानपुर के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। श्री सिंह डिजिटल इंडिया की जागरूकता के लिए आयुध निर्माण शिक्षण संस्थान, कानपुर में सेमिनार आयोजित कर चुके हैं तथा 10-ए के सदस्य भी हैं जोकि गरीबों की मदद करती है।

 

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