कानपुर में एथलेटिक्स के भीष्म पितामह हैं डा. नंदलाल सिंह

मान्या और वैभवी भी बाबा के पदचिह्नों पर चलने को तैयार

श्रीप्रकाश शुक्ला

कानपुर। जीवन में हर इंसान कामयाबी के सपने देखता है लेकिन सफलता उसे ही मिलती है जिसमें लक्ष्य हासिल करने की अदम्य इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत करने का हौसला हो। ऐसे ही हौसलेबाज हैं कानपुर के सेवानिवृत्त उप-अधीक्षक पुलिस डा. नंदलाल सिंह। गुरबत के दौर से गुजर कर इन्होंने कड़ी मेहनत और लगन से एथलेटिक्स में ऐसी पटकथा लिखी है जोकि आज की युवा पीढ़ी के लिए एक नजीर है। इन्होंने डिस्कस और हैमर थ्रो में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दर्जनों मेडल जीतकर उत्तर प्रदेश ही नहीं भारत को दुनिया में गौरवान्वित किया है। उम्र के अंतिम पड़ाव में होने के बावजूद नंदलाल जी की खेल-इच्छाशक्ति कम नहीं हुई है। सच कहें तो कानपुर में एथलेटिक्स के भीष्म पितामह नंदलाल का पूरा परिवार ही खेलों को समर्पित है। इस परिवार की तीसरी पीढ़ी भी मादरेवतन का मान बढ़ाने को मैदानों में उतर चुकी है। नंदलाल सिंह की दो पोतियां मान्या और वैभवी भी स्कूल स्तर पर एथलेटिक्स में धूम मचाने लगी हैं।

नंदलाल सिंह का बाल्यकाल कठिन परिस्थितियों में बीतने के बावजूद वह कभी हिम्मत नहीं हारे। इन्होंने न केवल स्वयं के लक्ष्य तय किए बल्कि उन्हें हासिल करने के लिए जीतोड़ मेहनत भी की। प्रायः नौकरी मिल जाने के बाद खिलाड़ियों की खेल-इच्छाशक्ति मर सी जाती है लेकिन नंदलाल के मन में न केवल खेलों के प्रति समर्पण रहा बल्कि इन्होंने दुनिया भर में अपने खेल कौशल की धूम भी मचाई। नंदलाल ने 1977 में पुलिस खेलों में उत्तर प्रदेश की तरफ से खेलते हुए डिस्कस और हैमर थ्रो में न केवल स्वर्णिम सफलताएं हासिल कीं बल्कि इन विधाओं में नए कीर्तिमान भी रच डाले।

नंदलाल की नायाब सफलताएं सिर्फ राष्ट्रीय स्तर ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी खेलप्रेमियों को देखने को खूब मिलीं। देश से बाहर नंदलाल को पहली सफलता 1980 में सिंगापुर में मिली उसके 10 साल बाद  1990 में इन्होंने मलेशिया के क्वालालम्पुर में हैमर थ्रो में नया एशियाई कीर्तिमान बनाया तो 1992 में सिंगापुर, 1994 में इंडोनेशिया के जकार्ता तो 1996 में कोरिया के सियोल में अपने पराक्रमी खेल कौशल से भारत को गौरवान्वित किया। नंदलाल ने 1991 में फिनलैण्ड, 1993 में जापान, 1995 में अमेरिका, 1998 में दक्षिण अफ्रीका के डरबन, 1998 ओकिनावा जापान, 2000 बेंगलूरु (भारत), 2004 थाइलैण्ड तथा 2010 में मलेशिया के क्वालालम्पुर में अपने शानदार खेल कौशल और दमखम के बूते भारतीय तिरंगा फहराया।

ज्ञातव्य है कि नंदलाल सिंह 1998 और 1999 में भारतीय एथलेटिक्स टीम के कप्तान भी रहे। इन्होंने छह बार विश्व मास्टर्स एथलेटिक्स तो 10 बार एशियन मास्टर्स खेलकूद प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और दो दर्जन से अधिक गोल्ड और सिल्वर मेडल जीतकर भारत के गौरव को चार चांद लगाए। इस खेल शख्सियत ने 1980 में रिवाल्वर और स्टेन गन शूटिंग में भी नया कीर्तिमान सृजित किया था। इंटरनेशनल एथलीट डा. नंदलाल सिंह आज भी खेलों से जुड़े हुए हैं। वर्तमान समय में वह अमेजिंग सिक्योरिटी सर्विसेज प्रा.लि. के महानिदेशक, सिक्योरिटी एसोसिएशन कानपुर के अध्यक्ष, मास्टर्स एथलेटिक्स एसोसिएशन उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष, पुलिस पेंशनर्स कल्याण संस्थान, कानपुर के अध्यक्ष तथा पी.पी.एस. एसोसिएशन कानपुर जोन के जोनल अधिकारी जैसे पदों को सुशोभित कर रहे हैं।

बाबा की प्रेरणा से पोतियां भी बनीं खिलाड़ी

कानपुर की नायाब खेल शख्सियत डा. नंदलाल सिंह के लिए यह खुशी की बात है कि उनकी दो पोतियां मान्या और वैभवी भी स्कूल स्तर पर एथलेटिक्स में अपनी प्रतिभा की धूम मचा रही हैं। नंदलाल सिंह की बेटी की बेटी स्वाती सिंह भी नाना को अपना आदर्श मानते हुए हैमर थ्रो में कई मीट रिकार्ड बना चुकी हैं। स्वाती अब एमिटी इंटरनेशनल स्कूल लखनऊ में बतौर स्पोर्ट्स टीचर युवा पीढ़ी को खेलों की तरफ प्रेरित कर रही हैं। नंदलाल सिंह की पोतियां मान्या सिंह 100 और 200 मीटर दौड़ तो वैभवी सिंह डिस्कस थ्रो में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने को बेताब हैं। नंदलाल जी के भाई की बेटी मीतू सिंह भी नेशनल वेटलिफ्टर होने के साथ कबड्डी की शानदार खिलाड़ी रही हैं। मीतू सिंह बेंगलूर से एनआईएस करने के बाद आजकल सैफई के साई सेण्टर में बतौर प्रशिक्षक कबड्डी खिलाड़ियों की प्रतिभा को निखार रही हैं। खेलों को समर्पित नंदलाल सिंह के परिवार से खेलों को समय की बर्बादी मानने वाले हमारे समाज को कुछ सीख लेनी चाहिए। सच कहें तो बेटे ही नहीं बेटियां ही भारत का असली भाग्य विधाता हैं।             

      

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