एथलेटिक्स में कानपुर की पहचान हैं दिनेश भदौरिया

2010 राष्ट्रमण्डल खेलों में किया था भारत का प्रतिनिधित्व

नूतन शुक्ला

कानपुर। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत एथलेटिक्स में बेशक महाशक्ति न हो लेकिन यहां समय-समय पर कुछ ऐसे एथलीट और प्रशिक्षक जरूर हुए जिनका नाम आदर से लिया जा सकता है। उत्तर प्रदेश की जहां तक बात है यहां के कई एथलीट राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप छोड़ रहे हैं। कानपुर की बात करें तो इंटरनेशनल एथलीट और प्रशिक्षक दिनेश भदौरिया की उपलब्धियों को कमतर नहीं माना जा सकता। श्री भदौरिया छह बार उत्तर प्रदेश के सबसे तेज धावक रहे तो नौ बार उन्होंने सीनियर नेशनल में प्रतियोगिताओं में अपना कौशल दिखाया। श्री भदौरिया राष्ट्रमण्डल खेलों के अलावा एशियन गेम्स, साउथ एशियन गेम्स, लूसोफोनिया गेम्स में भी भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं।

श्री भदौरिया 2010 में उस समय सुर्खियों में आए जब उनका चयन दिल्ली में हुए राष्ट्रमण्डल खेलों के लिए भारतीय एथलेटिक्स टीम में हुआ। यद्यपि श्री भदौरिया के हाथ मेडल नहीं लगा लेकिन उन्होंने अपने प्रदर्शन से सभी को प्रभावित जरूर किया। दिनेश भदौरिया की जहां तक बात है वह राष्ट्रमण्डल खेलों के अलावा एशियन गेम्स, साउथ एशियन गेम्स, लूसोफोनिया गेम्स में स्टाटर के रूप में शिरकत कर चुके हैं। श्री भदौरिया की रग-रग में खेल समाए हुए हैं। उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक न जीत पाने का मलाल है लेकिन अब वह चाहते हैं कि कानपुर का ही कोई एथलीट उनके अधूरे सपने को पूरा करे। इसके लिए वह दिन-रात प्रतिभाओं के बीच अपना पसीना बहा रहे हैं।

प्रतिस्पर्धी खेलों से अवकाश लेने के बाद श्री भदौरिया ने कानपुर के एथलीटों को प्रशिक्षित करने का न केवल संकल्प लिया बल्कि कानपुर को कई ऐसे सितारा एथलीट दिए हैं जोकि भविष्य में उत्तर प्रदेश का नाम रोशन कर सकते हैं। श्री भदौरिया 1987 से 2017 तक खेल विभाग की तरफ से ग्रीनपार्क स्टेडियम में बतौर प्रशिक्षक अपनी भूमिका का पूरी प्रतिबद्धता के साथ निर्वहन कर चुके हैं। श्री भदौरिया से प्रशिक्षण हासिल करने के बाद जहां 16 एथलीट राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुके हैं वहीं दो खिलाड़ियों को मादरेवतन का मान बढ़ाने का मौका मिल चुका है। श्री भदौरिया का कहना है कि भारत में खेल संस्कृति और सुविधाओं का नितांत अभाव है। आज भी अभिभावक खेलों को समय की बर्बादी मानते हैं यही वजह है कि प्रतिभाएं खेलों में आने की बजाय शिक्षा पर अधिक फोकस करती हैं। श्री भदौरिया का कहना है कि भारत में एथलेटिक्स का इतिहास वैदिक काल से है लेकिन इसे प्रमुखता बौद्ध धर्म के अस्तित्व में आने के बाद ही मिली।

समय के साथ भारत में खेलों का स्वरूप बदला और मध्ययुगीन काल में  भारतीयों ने दौड़ना, कूदना और थ्रो गेम्स में हिस्सा लेना शुरू कर दिया।  इनमें से अधिकांश खेल वास्तव में आज के एथलेटिक्स के ट्रैक इवेंट और फील्ड इवेंट के पूर्वज माने जा सकते हैं। भारत में 1946 से संगठित तरीके से एथलेटिक्स  प्रतियोगिता प्रबंधित की जा रही हैं। 1940 और 1950 का दशक भारतीय एथलेटिक्स के इतिहास में सबसे उल्लेखनीय है, क्योंकि उस अवधि में कई एथलेटिक्स संघों ने भारत में अपनी यात्रा शुरू कर दी थी। 1946 में भारतीय एथलेटिक्स के प्रबंधन के लिए एमेच्योर एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (AAFI) की स्थापना की गई। भारतीय एथलेटिक्स के इतिहास के कुछ सबसे सफल एथलीटों में हम मिल्खा सिंह, टी.सी. योहानन, गुरबचन सिंह रंधावा, श्रीराम सिंह, पी.टी. ऊषा, अंजू बॉबी जॉर्ज, ज्योतिर्मयी सिकदर, सरस्वती साहा, सोमा विश्वास, कृष्णा पूनिया, सीमा पूनिया, सुधा सिंह, अनू रानी आदि का नाम शुमार कर सकते हैं। जो भी हो साधन-सुविधाओं के बिना दिनेश भदौरिया ने एथलेटिक्स में जो मुकाम हासिल किया है उसे हम असाधारण मान सकते हैं।   

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