शारीरिक शिक्षा की अलख जगातीं पूनम सिंह

खेलों के महत्व पर बिन्दास रखती हैं अपनी बात

नूतन शुक्ला

कानपुर। छात्र जीवन में शारीरिक शिक्षा का विशेष महत्व है। शारीरिक शिक्षा जहां छात्र-छात्राओं को धीरज रखना सिखाती वहीं उनका मन भी शांत करती है। शारीरिक शिक्षा से छात्र में अच्छे चरित्र का निर्माण होता है और उसे एक अच्छा नागरिक बनने में भी मदद मिलती है। इन्हीं सब खूबियों के मद्देनजर पूनम सिंह पिछले 25 साल से कानपुर के ख्यातिनाम यूनाइटेड पब्लिक स्कूल में खिलाड़ियों की प्रतिभा निखारने के साथ उन्हें शारीरिक शिक्षा के महत्व से लगातार रूबरू करा रही हैं।

पूनम सिंह की जहां तक बात है, इन्हें बचपन से ही खेलों से लगाव रहा है। अपने अध्ययनकाल में इन्होंने स्कूल-कालेज स्तर पर जहां खेलों में खूब शोहरत हासिल की वहीं स्नातक की पढ़ाई करने के बाद स्नातकोत्तर की शिक्षा हासिल करने की बजाय इन्होंने बीपीएड, एमपीएड तथा हैण्डबाल में गांधी नगर गुजरात से एनआईएस का डिप्लोमा हासिल किया। पूनम सिंह ने खेलों में प्रशिक्षण की शुरुआत 1995 में मदर इंडिया कान्वेंट स्कूल से की और अब वह यूनाइटेड पब्लिक स्कूल में बतौर शारीरिक शिक्षक सेवाएं दे रही हैं। पूनम सिंह खेलों की अच्छी समझ रखती हैं यही वजह है कि इनसे तालीम हासिल छात्र-छात्राएं लगातार यूनाइटेड पब्लिक स्कूल का गौरव बढ़ा रहे हैं।

नेशनल खिलाड़ी रहीं पूनम सिंह ने पांच नेशनल रेफरी क्लीनिक में सहभागिता करने के साथ ही नेशनल रेफरी होने का गौरव हासिल किया। इतना ही नहीं इन्होंने एनसीसी का सी सर्टीफिकेट कोर्स करने के साथ ही नई दिल्ली में आर.डी. कैम्प में रहकर खेलों की बारीकियों को भी आत्मसात किया। खेलों को समर्पित पूनम सिंह ने वर्ष 2012 में प्रशिक्षण के साथ शिक्षण के क्षेत्र में कदम रखा और शारीरिक शिक्षण में आईएससी की कक्षाएं लेना प्रारम्भ कर दिया। खेल प्रशिक्षण के क्षेत्र में कानपुर का गौरव पूनम सिंह आज शारीरिक शिक्षण के क्षेत्र में भी जाना-पहचाना नाम हैं। पूनम की उच्चकोटि की तालीम का ही कमाल है कि आज यूनाइटेड पब्लिक स्कूल के छात्र-छात्राएं 100 में से 100 अंक लाकर अपने स्कूल ही नहीं समूचे कानपुर जिले का नाम रोशन कर रहे हैं।

बकौल पूनम सिंह बच्चा अपने ज्ञान का मौलिक निर्माता होता है। शिक्षा के क्षेत्र में इस विचार को आज भी काफी महत्व दिया जाता है। एक बच्चा खुद से सीखता है, इस अवधारणा की स्वीकृति से ही शिक्षकों को एक सुगमकर्ता के रूप में देखने वाले नये नजरिये का निर्माता माना जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले प्रशिक्षणों में यह बात बार-बार दोहराई जाती है कि शिक्षक खुद को एक सुगमकर्ता के रूप में देखे और बच्चों को भी कक्षा में होने वाले संवाद में बराबर भागीदारी का मौका दे। कोई नया विचार धीरे-धीरे स्वीकृति पाता है। किसी काम को करने का सही तरीका सीखने के लिए कौशल विकास की जरूरत होती है। अगर किसी विचार को देखने का हमारा नजरिया शंका से भरा रहे तो शायद हम अपना सौ फीसदी नहीं दे सकते। शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले प्रशिक्षण इन समस्याओं का समाधान तलाशने की दिशा में काफी मददगार होते हैं।

उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि शिक्षा के क्षेत्र में प्रशिक्षण की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। अगर प्रशिक्षण के लिए आने वाले लोग एक तैयारी के साथ आएं तो प्रशिक्षण देने वाले संदर्भ व्यक्तियों (रिसोर्स पर्सन) पर एक सकारात्मक दबाव होता है कि वे अपनी तरफ से अच्छा प्रयास करें। इसके अभाव में दोनों तरफ से बस खानापूर्ति होती है। ऐसी खानापूर्ति समय की बर्बादी कही जा सकती है, जो प्रशिक्षणों के महत्व को कम करती है। पूनम सिंह प्रशिक्षण के महत्व को न केवल समझती हैं बल्कि कक्षा में छात्र-छात्राओं को भी हर पल इसकी गंभीरता व उपयोगिता से रूबरू कराती रहती हैं। सच कहें तो शारीरिक शिक्षा में आज पूनम सिंह जैसे कर्मठ और जुझारू लोगों की ही दरकार है।

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