खेलों को समर्पित नायाब शख्सियत हैं सुबोध कुमार शुक्ल

उत्तर प्रदेश को हैण्डबाल और बास्केटबाल में दिए सैकड़ों खिलाड़ी

नूतन शुक्ला

कानपुर। खेलों के समुन्नत विकास में सबसे बड़ी भूमिका खेल अध्यापक और प्रशिक्षक की होती है। अधोसंरचना की दृष्टि से उत्तर प्रदेश में बेशक खेल मैदानों की कमी हो लेकिन यहां कर्मठ और योग्य खेल शिक्षकों व प्रशिक्षकों की कमी बिल्कुल नहीं है। सुबोध कुमार शुक्ल को ही लें इन्होंने अपने अथक प्रयासों से अब तक प्रदेश को हैण्डबाल और बास्केटबाल में सैकड़ों खिलाड़ी दिए हैं। कानपुर में हैण्डबाल और बास्केटबाल खेल की जब भी बात होती है सुबोध कुमार शुक्ल का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

प्रतिभाशाली खिलाड़ी छात्र-छात्राओं को हैण्डबाल और बास्केटबाल में नियमित प्रशिक्षण देने वाले सुबोध कुमार शुक्ल एमए, एमपीएड के साथ एनआईएस डिप्लोमा होल्डर हैं तथा बास्केटबाल फेडरेशन आफ इंडिया में रेफरी की भूमिका का भी निर्वहन करते रहते हैं। श्री शुक्ल से हैण्डबाल में प्रशिक्षण हासिल रजत दीक्षित और शकील नेशनल में अपनी प्रतिभा का जलवा दिखा चुके हैं तो बास्केटबाल में विनी सागर और शिखा गुप्ता जूनियर नेशनल में अपनी प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन कर चुकी हैं। करिश्मा अग्रवाल सब जूनियर नेशनल तो मेहविश मंजूर स्कूल नेशनल खेलों की बास्केटबाल प्रतियोगिता में अपना दमखम दिखा चुकी हैं। श्री शुक्ल का शिष्य रजत दीक्षित इस समय कानपुर ओलम्पिक संघ का सचिव है।

श्री शुक्ल से प्रशिक्षण हासिल सैकड़ों खिलाड़ी अब तक राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं में कानपुर का नाम रोशन कर चुके हैं। कानपुर नार्थ जोन आईसीएससी टीम राज्य स्तर पर एक बार चैम्पियन तो दो बार उप-विजेता रह चुकी है। जिलास्तर की बात की जाए तो श्री शुक्ल की बास्केटबाल टोली 2004 से 2007 तथा 2017 से 2019 तक विजेता और उप-विजेता रही है। श्री शुक्ल एक निपुण प्रशिक्षक ही नहीं स्कूल-कालेज के समय में वह बास्केटबाल और हैण्डबाल के नायाब खिलाड़ी भी रहे हैं। उन्होंने हैण्डबाल और बास्केटबाल में स्टेट तथा यूनिवर्सिटी स्तर पर अपनी प्रतिभा दिखाई तो हैण्डबाल में नेशनल तक खेले हैं।        

देखा जाए तो देश में खेल प्रशिक्षकों की कमी है, इस पर संसदीय स्थायी समिति गंभीर चिन्ता जता चुकी है लेकिन इस दिशा में अभी तक ठोस प्रयास होते नहीं दिखे। हाल के वर्षों में खेलों में सफलता प्राप्त करने वाले खिलाड़ियों के पीछे उनकी व्यक्तिगत पहल और प्रशिक्षकों का ही प्रमुख योगदान रहा है। हमारे देश में खेलों के लिए बुनियादी सुविधाएं बहुत संतोषजनक नहीं हैं बावजूद इसके सुबोध कुमार शुक्ल जैसे लोग प्राणपण से जुटे हुए हैं।

भारत में खेल संस्कृति और उसकी गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र काफी मुफीद साबित हो सकता है। खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल को अपनाया जा सकता है। खेल क्षेत्र में क्वालिटी को बढ़ाने, बेहतर प्रशिक्षण और हुनरमंद खिलाड़ियों की तलाश के लिए निजी खेल एकेडमियां मील का पत्थर साबित हो सकती हैं। देश में खेल प्रशिक्षकों की भारी कमी है। कुल स्वीकृत 1524  पदों में से लगभग एक चौथाई प्रशिक्षकों के पद रिक्त चल रहे हैं जोकि चिन्ता की बात है।

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