मुख्यमंत्री जी! दर्पण स्टेडियम में उड़ रही धूल फिर भी खिल रहे फूल

प्रदेश के सबसे सफल हॉकी फीडर सेण्टर की दुर्दशा पर कब पड़ेगी खेल मंत्री की नजर?
श्रीप्रकाश शुक्ला
ग्वालियर। उड़ रही धूल फिर भी खिल रहे फूल। यह बात पढ़ने में अजीब लग रही होगी लेकिन यदि इस बात की सच्चाई से रूबरू होना है तो आपको सिर्फ एक बार ग्वालियर के उस दर्पण मिनी स्टेडियम जरूर जाना चाहिए जिसने देश और प्रदेश को हॉकी में दर्जनों नायाब हीरे तो कुछ अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भी दिए हैं।
मध्य प्रदेश में जब शिवराज सिंह का राज था, उस समय पुश्तैनी खेल हॉकी को जिन्दा करने के लिए दो हॉकी एकेडमी (महिला और पुरुष) खोली गईं। इन एकेडमियों में एमपी की ही अधिकाधिक प्रतिभाएं प्रवेश पाएं इसके लिए कुछ साल बाद प्रदेश भर में हॉकी के 35 फीडर सेण्टर खोले गए। तब मुख्यमंत्री की इस महत्वाकांक्षी योजना को लेकर कहा गया था कि इन सेण्टरों में हॉकी का ककहरा सीखने वाली प्रतिभाओं को इस खेल की सम्पूर्ण सामग्री ही नहीं जल-जलपान के लिए चना-चिरौंजी की भी व्यवस्था होगी। चना-चिरौंजी तो भाड़ में जाए, इन फीडर सेण्टरों में नौनिहालों को सिर्फ प्रशिक्षकों के हवाले छोड़ दिया गया।
मध्य प्रदेश सरकार ने पिछले 19 वर्षों में हॉकी के उत्थान पर करोड़ों रुपये खर्च किए हैं। उड़ीसा के बाद मध्य प्रदेश देश में दूसरा ऐसा राज्य है, जहां सबसे अधिक कृत्रिम हॉकी मैदान हैं। लेकिन दुख और अफसोस की बात यह है कि प्रदेश का सबसे सफल फीडर सेण्टर आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। ऊबड़-खाबड़ मैदान और उसमें उड़ती धूल होनहार प्रतिभाओं की आंखें ही नहीं उनके शरीर को भी चोटिल कर रहा है। आज ग्वालियर शहर महिला हॉकी का गढ़ बन चुका है, यहां की बेटियां दूर देश में तिरंगा लहरा-फहरा रही हैं लेकिन दर्पण मिनी स्टेडियम की दुर्दशा देखकर नहीं लगता कि खेल संगठनों में काबिज मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव और खेल मंत्री विश्वास सारंग को इससे कोई लेना-देना है।
ग्वालियर में सुबह-शाम कुछ ही जगहों पर प्रतिभाओं को नियमित रूप से हॉकी का प्रशिक्षण मिलता है। मध्य प्रदेश राज्य महिला हॉकी एकेडमी के पास तीन कृत्रिम हॉकी मैदान हैं। यहां की प्रतिभाओं को अमूमन हर वह सुविधा मिलती है, जोकि किसी खिलाड़ी के लिए जरूरी है। खिलाड़ियों को सुविधाएं मिलनी भी चाहिए लेकिन जब भेदभाव होता है तो न केवल वेदना होती है बल्कि सरकार की घटिया सोच पर क्रोध भी आता है। ग्वालियर के राजमाता विजया राजे सिंधिया खेल परिसर कम्पू में जहां अंतरराष्ट्रीय सुविधाओं के बीच कृत्रिम हॉकी मैदानों में प्रतिभाएं निखारी जाती हैं वहीं दूसरी तरफ दर्पण हॉकी फीडर सेण्टर की उड़ती धूल में प्रशिक्षकद्वय अविनाश भटनागर और संगीता दीक्षित हॉकी के फूल खिलाते देखे जाते हैं। जिस दर्पण हॉकी फीडर सेण्टर ने मध्य प्रदेश राज्य महिला हॉकी एकेडमी ग्वालियर को लगभग दो दर्जन तथा राज्य पुरुष हॉकी एकेडमी भोपाल को डेढ़ दर्जन उत्कृष्ट प्रतिभाएं दी हों, उसकी नाकद्री मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार पर प्रश्नचिह्न भी लगाती है।
प्रदेश के इस सबसे सफल हॉकी फीडर सेण्टर ने मध्य प्रदेश की हॉकी एकेडमियों ही नहीं दूसरे राज्यों में संचालित एकेडमियों को भी उत्कृष्ट प्रतिभाएं दी हैं। प्रशंसा करनी होगी हॉकी प्रशिक्षक अविनाश भटनागर और संगीता दीक्षित की जिन्होंने बदहाल क्रीड़ांगन से देश और प्रदेश को हॉकी के बेमिसाल हीरे तराश कर दिए। मध्य प्रदेश में संचालित 35 हॉकी फीडर सेण्टरों में सिर्फ दर्पण हॉकी फीडर सेण्टर के परिणाम ही ताली पीटने वाले कहे जा सकते हैं। दर्पण मिनी स्टेडियम में प्रतिदिन सुबह-शाम निखारी जाती हॉकी प्रतिभाओं पर बहुत कुछ लिखा जा सकता है लेकिन उससे भी कुम्भकर्णी नींद में सोए खेल एवं युवा कल्याण विभाग के जवाबदेह अधिकारियों तथा खेल मंत्री विश्वास सारंग को जगाना बहुत मुश्किल काम है।
विश्वस्त सूत्रों की कही सच मानें तो ग्वालियर के क्रीड़ा अधिकारी जोसेफ बक्सला ने संचालनालय खेल भोपाल को दर्पण मिनी स्टेडियम की बदहाली दूर करने को कई पत्र लिख चुके हैं लेकिन भोपाल के कमीशनखोर अधिकारियों ने पत्रों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया है। कहने को इस क्रीड़ांगन की दुर्दशा संचालक खेल भी देख चुके हैं। इस मैदान की बदहाली दूर करने का उन्होंने भरोसा भी दिया था लेकिन भोपाल पहुंचने के बाद टूटे-फूटे दर्पण की सुध उन्हें नहीं आई।
अब सवाल यह उठता है कि जिस दर्पण हॉकी फीडर सेण्टर ने देश को तीन अंतरराष्ट्रीय तो दर्जनों राष्ट्रीय हॉकी सितारे दिए हों, उसके साथ क्यों और किसकी शह पर भेदभाव हो रहा है। अपने पाठकों को बता दें अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी करिश्मा यादव, इशिका चौधरी तथा अंकित पाल जैसे हॉकी सितारे इसी दर्पण का दर्पण हैं। बदहाल दर्पण मिनी स्टेडियम के आधा दर्जन से अधिक खिलाड़ियों को प्रदेश के प्रतिष्ठित विक्रम और एकलव्य अवॉर्ड मिलना, इस बात का सूचक है कि यहां तैनात प्रशिक्षक जमीनी स्तर पर काम तो कर रहे हैं लेकिन ईनाम दूसरों को दिया जा रहा है।