सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया लाखों कर्मचारियों के हित का फैसला

सरकारें अस्थिर रोजगार व्यवस्थाओं का संचालन नहीं करें
अंशकालिक, संविदा, अतिथि कर्मचारियों को नियमितीकरण का अधिकार 
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
सर्वोच्च न्यायालय के 20 दिसम्बर को सुनाए गए एक ऐतिहासिक फैसले से विभिन्न राज्यों के लाखों कर्मचारियों के नियमितीकरण की आस जाग गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारों को निर्देश दिए कि वह संविदा, अंशकालिक, अस्थाई, दैनिक वेतनभोगी, अतिथि इत्यादि सभी प्रकार के अस्थाई कर्मचारियों के हित का ख्याल रखें तथा अस्थिर रोजगार व्यवस्थाओं का संचालन नहीं करें।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा है कि एक ही पद पर लम्बे समय तक काम करने वाले कर्मचारियों को नियमितीकरण का अधिकार है। सरकार उसके पद नाम के आधार पर अपने निर्धारित कर्तव्य का पालन करने से इनकार नहीं कर सकती है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने संविदा, अंशकालिक इत्यादि सभी प्रकार के अस्थाई कर्मचारियों से संबंधित मामले का फैसला 20 दिसम्बर 2024 को सुनाया है। 
केंद्रीय जल आयोग  में कार्यरत सफाई और बागवानी कर्मचारियों द्वारा दाखिल अपीलों पर सभी पक्षों के तर्कों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और पी.बी. वरले की पीठ ने कहा कि, सरकार देश के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है। उसे प्राइवेट सेक्टर की तरह "अस्थिर रोजगार व्यवस्थाओं" का संचालन नहीं करना चाहिए। 
अदालत ने कहा कि गिग इकोनॉमी के कारण प्राइवेट सेक्टर अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा है, परंतु सरकार उसका अनुसरण नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, गिग इकोनॉमी के कारण ही अस्थिर रोजगार व्यवस्था में वृद्धि हुई है। इसके कारण भारत में लेबर स्टैंडर्ड कमजोर हो गया है और नौकरी के नाम पर लोगों का शोषण किया जा रहा है। 
सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस प्रकार की व्यवस्था के खिलाफ अपनी भूमिका निभाए। न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने अपने फैसले में लिखा है कि सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं द्वारा संविदा कर्मचारियों की नियुक्ति और श्रम कानून के खिलाफ उनका शोषण करना चिंता पैदा करता है। 
हम आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में अपील से पहले सभी चतुर्थ श्रेणी संविदा कर्मचारियों के मामले में केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण और दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि वह केवल अंशकालिक कर्मचारी हैं और पार्ट टाइम वर्कर्स को नियमितीकरण का अधिकार नहीं होता है। यह भी कहा गया था कि ऐसे कर्मचारी नियमितीकरण की मांग करने का अधिकार नहीं रखते और सभी कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने सभी कर्मचारियों का टर्मिनेशन रद्द करते हुए आदेश दिया है कि उन्हें तुरंत नियमित किया जाए और सेवा में वापस लिया जाए। 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायालय को भी रोजगार की वास्तविकता को देखना चाहिए। मामलों की सुनवाई के दौरान दीर्घकालिक सेवा, अपरिहार्य कर्तव्य और अवैध पर ध्यान देना चाहिए। बड़े सरकारी संस्थानों में कर्मचारियों के प्रति जिम्मेदारी से बचने के लिए, संस्थान को मुनाफा में दिखाने के लिए और कर्मचारियों पर दबाव बनाए रखने के लिए अस्थाई कर्मचारी अथवा किसी ठेकेदार के माध्यम से आउटसोर्स कर्मचारी को नियुक्त करने की प्रवृत्ति अपनाई गई है। 
सुप्रीम कोर्ट का या फैसला रेखांकित करता है कि कर्मचारियों को दिए गए लेबल (संविदा, अंशकालिक, दैनिक वेतन भोगी, अस्थाई, अतिथि इत्यादि) को नहीं बल्कि उसके द्वारा किए जा रहे काम की प्रकृति पर ध्यान दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में, अमेरिका की कोर्ट ऑफ अपील्स के मामले में विज़कैनो बनाम माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पोरेशन का संदर्भ दिया। 
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि भारत, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के संस्थापक सदस्यों में से एक देश है। यह दुनिया के उन देशों में शामिल है जो रोजगार की स्थिरता और श्रमिकों के साथ निष्पक्ष व्यवहार की वकालत करते हैं। इस प्रकार की सेवा समाप्ति का विरोध करते हैं जो दीर्घकालिक बेरोजगारी को बढ़ावा देती है। 
जब कर्मचारियों की भूमिका विभाग अथवा संगठन के काम में अनिवार्य हो जाती है तो उसे अस्थाई आधार पर काम पर रखना, अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों का उल्लंघन है। ऐसे विभाग अथवा संगठन को कर्मचारियों के मनोबल को कमजोर करने वाला अपराधी माना जाता है। यदि सरकार निष्पक्ष रोजगार प्रथाओं का पालन सुनिश्चित करती है तो अनावश्यक मुकदमों के बोझ से बचा जा सकता है। 

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