यूपी के खेल विकास में मैन पॉवर की कमी सबसे बड़ी बाधा

जनसंख्या की दृष्टि से पद बहुत कम, स्वीकृत पद भी वर्षों से खाली

खेलपथ संवाद

लखनऊ। प्रतिभाओं से आच्छादित उत्तर प्रदेश में खेल राम भरोसे चल रहे हैं। खेलों के विकास में धन की कमी नहीं बल्कि मैन पॉवर की कमी सबसे बड़ी बाधा है। दुखद तो यह कि यहां जनसंख्या के दृष्टिगत पद जहां बहुत कम हैं, वहीं जो पद स्वीकृत भी हैं, वे भी खेल निदेशालय की अनिच्छा से वर्षों से खाली हैं। राष्ट्रीय खेल मंचों पर खराब प्रदर्शन के बाद भी विभाग का मंत्री तथा शीर्ष खेल अधिकारी खुश हैं।

प्रदेश में खेलों का विकास नहीं बल्कि स्वांग हो रहा है। खेल बजट बचाकर मदारी और बंदर दोनों खुश हैं। प्रदेश में खेल विकास का स्याह सच यह है कि खेल निदेशालय पिछले आठ साल में जहां साढ़े चार सौ अंशकालिक प्रशिक्षकों के पद नहीं भर सका वहीं वर्षों पहले स्वीकृत 48 नियमित सहायक प्रशिक्षकों में से 44 पद आज भी खाली हैं। खेल निदेशालय के काम करने का इससे बेहतर उदाहरण और क्या हो सकता है कि जो 13 नियमित सहायक प्रशिक्षकों को 2016 में काम का अवसर मिल जाना चाहिए वे इस समय राजधानी लखनऊ में साक्षात्कार दे रहे हैं।

इस लेतलाली से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि खेल निदेशालय मैन पॉवर की लगातार अनदेखी करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को खेल विकास की गलत पटकथा सुना रहा है। खेल मंत्री खेल निदेशालय की इस खेल पटकथा पर क्यों नहीं ध्यान दे रहे, समझ से परे है। देखा जाए तो खेलों के विकास में प्रशिक्षक अहम कड़ी होते हैं लेकिन खेल निदेशालय ने सबसे अधिक प्रशिक्षकों को ही छला और मुश्किल में डाला है। पिछले आठ साल के आंकड़े बताते हैं कि खेल निदेशालय अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों के स्वीकृत 450 प्रशिक्षकों के पद ही नहीं भर सका। चौंकाने वाली बात तो यह कि प्रदेश में 44 नियमित सहायक प्रशिक्षक के पद भी बरसों से खाली हैं। देखा जाए तो मैन पॉवर की कमी से प्रदेश के हर जिले में प्रतिभाओं को कुछ ही खेलों में प्रशिक्षण मिल पा रहा है।

प्रशिक्षक ही नहीं उत्तर प्रदेश के कई जिलों में क्रीड़ाधिकारी ही नहीं हैं। प्रदेश में खेलों के बेहतर संचालन के लिए वर्षों पहले नियमित विभागीय जिला क्रीड़ाधिकारियों, उप-क्रीड़ाधिकारियों तथा सहायक प्रशिक्षकों के 209 पद स्वीकृत किए गए थे लेकिन 97 पद आज भी खाली हैं। इनमें क्रीड़ाधिकारी के 12, उप-क्रीड़ाधिकारी के 41 तथा सहायक प्रशिक्षकों के 44 पद रिक्‍त हैं। पाठकों को हम बता दें कि 48 नियमित सहायक प्रशिक्षकों में से सिर्फ चार प्रशिक्षक ही सेवाएं दे रहे हैं।

ध्यान देने की बात यह भी कि पिछले कुछ वर्षों में कई पदाधिकारी सेवानिवृत्त भी हुए लेकिन पद नहीं भरे गए लिहाजा साल दर साल विभागीय पदाधिकारियों की संख्‍या कम हुई। साल 2017-18 में 131 विभागीय खेलनहारों ने खेल सम्हाला, तो 2018-19 में यह संख्‍या 141 जा पहुंची। 2019-20 में भी यही संख्‍या रही। कोविड वर्ष 2020-21 में यह संख्‍या घटकर 139 हो गई। 2021-22 में 130, 2022-23 में 116 तो 2023-24 में खेलनहारों की संख्या 112 पहुंच गई। इस समय खेल विभाग में चार नियमित सहायक प्रशिक्षक तो लगभग चार सौ अंशकालिक खेल प्रशिक्षक प्रदेश की प्रतिभाओं का कौशल निखार रहे हैं। उत्तर प्रदेश में अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों के 450 पद स्वीकृत हैं। जोकि पिछले कुछ वर्षों में कभी पूरे नहीं भरे गए। फिलवक्त विभाग प्रशिक्षकों के मैन पॉवर की आपूर्ति मुम्बई की टीएण्डएम कंसल्टिंग कम्पनी से कर रहा है।

खेलों के सुविज्ञ बताते हैं कि प्रदेश में खेलों के विकास में आर्थिक तंगहाली कतई कोई कारण नहीं है। उत्तर प्रदेश खेल निदेशालय 2014-15 से 2022-23 के बीच प्रदेश सरकार से आवंटित खेल बजट ही पूरा खर्च नहीं कर सका जबकि बजट में साल दर साल इजाफा किया गया। वर्ष 2022-23 में 44498.68 लाख रुपए का बजट पास हुआ लेकिन खेल विभाग 17 फीसदी राशि ही खर्च पाया। उत्तर प्रदेश के 84 क्रीड़ांगन खेल निदेशालय के अधीन हैं। प्रदेश में तीरंदाजी और कराटे ऐसे खेल हैं जिनमें एक-एक प्रशिक्षक तो लॉन टेनिस, सॉफ्ट टेनिस, स्‍क्‍वैश, तैराकी में दो-दो प्रशिक्षक सेवाएं दे रहे हैं। यह सभी अंशकालिक हैं। मैन पॉवर की दृष्टि से देखें तो राजधानी लखनऊ के चार विभागीय क्रीड़ांगनों में लगभग 25 प्रशिक्षक प्रतिभाएं निखार रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में 13 तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की संसदीय सीट वाराणसी में 12 प्रशिक्षक विभिन्न खेलों में सेवाएं दे रहे हैं।

 

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