मुश्किलों को पार कर बनीं ये भारतीय बेटियां सबके लिए प्रेरणा

भारत की इन युवा खिलाड़ी बेटियों को मिला यूनिसेफ का साथ
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
भारत की बेटियां कई क्षेत्रों में अपना परचम लहरा रही हैं। कई महिलाएं खेल जगत से जुड़ी हैं तो कुछ भारतीय राजनीति और व्यापार क्षेत्र से ताल्लुक रखती हैं। इन्हीं महिलाओं को आदर्श मानते हुए कई ऐसी किशोरियां या युवा लड़कियां भी हैं जो अपने करियर को लेकर बड़े सपने देखने लगती हैं। हालांकि उन सपनों को पूरा करने के लिए लड़कियों को कड़ा संघर्ष करना होता है। 
उनकी आर्थिक, पारिवारिक और सामाजिक स्थिति विपरीत होती है। सपने देखना आसान है लेकिन उन्हें पूरा करना मुश्किल होता है। हालांकि जब इन संघर्षों का सामना करते हुए कोई अपने करियर में परचम लहराता है, तो वह भी हर एक शख्स के लिए प्रेरणा बन जाता है। ऐसी ही कुछ युवा महिला खिलाड़ी हैं, जिनका जीवन संघर्षों को पार करते हुए आज सफलता को छू रहा है। 
बिहार की अमृता राजः बिहार के पटना जिले की रहने वाली अमृता राज महज 20 वर्ष की है। वह एक एथलीट हैं और कराटे करती हैं। माना जाता है कि इस तरह के खेल लड़कियों के लिए नहीं होते लेकिन अमृता ने कराटे का प्रशिक्षण लिया और फिर इस क्षेत्र में ही अपना करियर बनाकर प्रसिद्धि पाई। आज वह बच्चों को कराटे सिखाती हैं और कई लड़कियों के लिए प्रेरणा बन गई हैं। उनके लिए कराटे को करियर बनाना आसान नहीं था लेकिन बिहार की किलकारी योजना और यूनिसेफ की मदद से अमृता एक सशक्त किशोरी बनकर उभरीं।
बिहार की पिंकी कुमारीः बिहार राज्य की पिंकी कुमारी महज 17 वर्ष की आयु में बैडमिंटन चैम्पियन बन गई हैं। कड़े परिश्रम, यूनिसेफ और किलकारी की मदद से वह न केवल अपने परिवार, शहर का बल्कि पूरे बिहार का नाम रोशन कर रही हैं। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और कई मेडल भी हासिल किए।
भागलपुर की कोमल कुमारीः कुश्ती जैसे खेलों में अब देश की बेटियां भी शामिल हो रही हैं। बिहार के भागलपुर की रहने वाली कोमल कुमारी एक कुश्ती खिलाड़ी हैं। वह उस समाज से आती हैं, जहां लड़कियों को कुश्ती खेलने की अनुमति नहीं होती। हालांकि कोमल ने इस अपना करियर बनाया। कोमल के परिवार व यूनिसेफ और किलकारी योजना ने इस प्रयास में उनकी सहायता की।
बैडमिंटन खिलाड़ी चाँदनी खातूनः बिहार की चांदनी खातून ने अपने सपने को पूरा करने के लिए कई मुश्किलों का सामना किया। महज 18 वर्ष की चांदनी बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। वह किलकारी के लिए बैडमिंटन मैच खेलती हैं। शुरुआत में चांदनी की मां नहीं चाहती थीं कि चांदनी बाहर जाकर खेलें, लेकिन किलकारी और यूनिसेफ की मदद से चांदनी कई मेडल जीते और मां का गर्व महसूस कराया।
17 वर्षीय पूजा कुमारीः किलकारी और यूनिसेफ ने बिहार की एक और बेटी का भविष्य संवार दिया। पटना की रहने वाली 17 साल की पूजा कुमारी बाल बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। जब उन्होंने बैडमिंटन खेलना शुरू किया तो उनके माता पिता और समाज के लोगों ने उन्हें मना किया। लेकिन पूजा के बुलंद हौसलों के सामने हर किसी की हार हुई। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर खेला और खूब तारीफ बटोरी। उन्हें बैडमिंटन में राष्ट्रीय स्तर पर तीसरा पुरस्कार मिला।
कोरोनाकाल में ओडिशा की चैम्पियन बनीं ये दो लड़कियां
ओडिशा की रहने वाली मिनी और इतिश्री इस महामारी के खिलाफ लड़ाई में शामिल हुईं। इतिश्री और मिनी दोनों 19 वर्षों से दोस्त हैं। ओडिशा सरकार ने होम क्वारंटाइन में रह रहे लोगों को ट्रैक करने के लिए काॅल सेंटर स्थापित किए तो इन दोनों लड़कियों ने इन कोविड काॅल सेंटर में काम किया।
इतिश्री और मिनी का बचपन कष्ट में गुजरा। दोनों बिना परिवार के बड़ी हुईं। कई साल बाल देखभाल संस्थान में रहीं और वहीं से उन्होंने स्कूली शिक्षा पूरी की। मिनी के माता पिता एक दूसरे से अलग हो चुके थे। उन्हें सेंटर में छोड़ दिया और कभी मिलने तक नहीं आए। दोनों लड़कियों से यूथ काउंसिल फॉर डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स के सहयोग से यूनिसेफ द्वारा चलाई जा रही 'आफ्टर केयर' पहल का लाभ उठाया ताकि सेंटर से बाहर के जीवन के लिए तैयार हो सकें। यहां मिनी को आतिथ्य प्रशिक्षण प्राप्त करने में मदद मिली और इतिश्री ने ग्राफिक डिजाइनर का कोर्स किया।

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