अदालत की किक से उत्तर प्रदेश फुटबॉल संघ के आका हैरान

अदालत की शरण पहुंचे सुपर स्पोर्ट सोसायटी लखनऊ के अध्यक्ष

संगठन की अनियमितताओं पर हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान

खेलपथ संवाद

लखनऊ। दुनिया के नम्बर एक खेल फुटबॉल को उत्तर प्रदेश में ग्रहण लग गया है। लम्बे समय से यूपी में फुटबॉल संगठन एक ही परिवार की जागीर बना हुआ है। उसने खेल की बेहतरी के अलावा ऐसे तौर-तरीके अपनाए जिससे प्रदेश की फुटबॉल शर्मसार हुई। संगठन पदाधिकारियों के भ्रष्टाचार, व्यभिचार तथा अनगिनत अनियमितताओं में लिप्त होने की जानकारी के बाद खेलप्रेमी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दूध का दूध और पानी का पानी करने के आदेश दिए लेकिन जवाबदेह पदाधिकारों ने सांठगांठ कर दूध को ही दही बना दिया। मामला अदालत में पहुंचा और माननीय न्यायाधीश ने न केवल संज्ञान लिया बल्कि जवाबदेहों के साथ ही संगठन पदाधिकारियों की नींद उड़ा दी है।

उत्तर प्रदेश फुटबॉल संघ की करतूतों से वैसे तो सभी में लम्बे समय से नाखुशी है लेकिन अदालत तक जाने की हिम्मत सुपर स्पोर्ट सोसायटी लखनऊ के अध्यक्ष प्रभजोत सिंह नंदा ने दिखाई। उत्तर प्रदेश फुटबॉल संघ में व्याप्त भ्रष्टाचार के विरुद्ध दाखिल याचिका में याची की ओर से अधिवक्ता सुनील चौधरी ने माननीय न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय के समक्ष बहस में बताया कि उत्तर प्रदेश शासन के उप-सचिव ने 24 जनवरी, 2020 को जिलाधिकारी वाराणसी को आदेश दिया था कि प्रकरण अति संवेदनशील है, इस मामले में मुख्यमंत्री द्वारा प्रकरण की गहनतापूर्वक जांच कराकर दोषियों के विरुद्ध आवश्यक कार्यवाही कर 10 दिन में शासन को जांच रिपोर्ट उपलब्ध कराने का आदेश दिया था।

जिलाधिकारी वाराणसी ने अपर जिला मजिस्ट्रेट वाराणसी से उत्तर प्रदेश फुटबॉल संघ, 54 राजा बाजार वाराणसी की जांच सुपर स्पोर्ट सोसायटी लखनऊ के अध्यक्ष प्रभजोत सिंह नंदा व महासचिव उमेश गुप्ता की शिकायत पर कराई। शिकायत में बताया गया कि प्रदेश के महासचिव मोहम्मद शमसुद्दीन व उनके परिवार के लोग पिछले 16 वर्षों से संगठन में अवैधानिक एवं अलोकतांत्रिक तरीके से काबिज हैं। उत्तर प्रदेश फुटबॉल संघ लगभग 30-40 वर्षों से एक ही परिवार के कब्जे में है।

फुटबॉल में महिला खिलाड़ियों के यौन उत्पीड़न, मानसिक व शारीरिक शोषण पर निलम्बन की भी कार्रवाई की गई। यहां तक कि संस्था के महासचिव व अन्य दो के विरुद्ध वाराणसी थाना कैंट व हजरतगंज थाना, लखनऊ में धोखाधड़ी, फर्जीवाड़ा व अन्य धाराओं में एफआईआर दर्ज हुई। शिकायतें सही पाए जाने पर जिन्हें सजा मिलनी चाहिए, वे बेखौफ काम करते रहे। वजह उच्च अधिकारियों द्वारा जांच रिपोर्ट को ही दबा दिया जाना रहा।

संगठन पदाधिकारियों के खिलाफ असिस्टेंट रजिस्ट्रार वाराणसी ने अपनी जांच रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश फुटबॉल संघ के ऊपर लगे आरोपों को सही पाते हुए सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 25 (2 ) के प्रावधानों के अंतर्गत संस्था की प्रबंध समिति कालातीत घोषित करते हुए, प्रबंध समिति के नए सिरे से चुनाव कराए जाने के आदेश दिए थे। उत्तर प्रदेश फुटबॉल संघ द्वारा इस आदेश को हाईकोर्ट इलाहाबाद में चुनौती दिए जाने की याचिका 6 जनवरी, 2021 को खारिज कर दी गई थी। याची के अधिवक्ता सुनील चौधरी ने न्यायालय को बताया कि असिस्टेंट रजिस्ट्रार ने बिना उच्च अधिकारियों को सूचित व अनुमोदन के अपने ही आदेश को बिना जांच व मात्र नोटरी शपथ पत्र के आधार पर वापस ले लिया। सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले तत्कालीन सहायक निबन्धक वाराणसी योगेश चन्द्र त्रिपाठी ने अपने ही आदेश को वापस क्यों लिया जबकि उन्हें अपने ही आदेश को वापस लिए जाने का कोई अधिकार नहीं है। इस मामले को देखने से साफ साबित होता है कि सहायक निबन्धक और संगठन पदाधिकारियों के बीच कोई न कोई कमल खिचड़ी जरूर पकी थी।

सुपर स्पोर्ट सोसायटी लखनऊ द्वारा तत्कालीन सहायक निबंधक योगेश चन्द्र त्रिपाठी व अन्य के विरुद्ध कार्यवाही किये जाने, महिला खिलाड़ी वर्षा रानी के उत्पीड़कों पर कार्यवाही, सुप्रीम कोर्ट द्वारा आल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन बनाम राहुल मेहरा व अन्य में दिये गए गाइड लाइन के अनुसार वैध सदस्यों द्वारा अन्य विभाग के अधिकारियों के द्वारा चुनाव कराए जाने सहित कई मांगों को लेकर 4 अप्रैल, 2022 को पुनः प्रमुख सचिव, खेल सहित कई अधिकारियों को प्रत्यावेदन दिया जोकि विचाराधीन है।

उक्त तथ्यों को गम्भीरता से लेते हुए माननीय न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव खेल लखनऊ, जिलाधिकारी वाराणसी, सहायक निबन्धक वाराणसी, खेल निदेशक,लखनऊ व यू.पी.एफ.एस., वाराणसी से आठ सप्ताह में जवाब दाखिल करने व याची को दो सप्ताह में प्रतिउत्तर उपलब्ध कराने का आदेश दिया है। प्रतिउत्तर मिलने के बाद हाईकोर्ट रजिस्ट्रार को मुकदमे की फाइनल सुनवाई के लिए तारीख मुकर्रर करने का भी आदेश मिला है।

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