सोनभद्र के रामबाबू ने राष्ट्रीय खेलों में बनाया रिकॉर्ड

मनरेगा में मजदूरी करने वाला उत्तर प्रदेश का जांबाज 
35 किलोमीटर पैदल चाल में जीता स्वर्ण
मां आज भी चार किलोमीटर पैदल चलकर पानी लेने जाती है
खेलपथ संवाद
अहमदाबाद।
प्रतिभा किसी भी घर में जन्म ले सकती है। वह गरीब-अमीर नहीं देखती। कुछ ऐसा ही देखने को मिला गुजरात में चल रहे राष्ट्रीय खेलों के दौरान। जनसंख्या की दृष्टि से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के सोनभद्र निवासी रामबाबू ने 35 किलोमीटर पैदल चाल में राष्ट्रीय रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक जीता। इस एथलीट को प्रदेश सरकार की तरफ से कभी कोई मदद नहीं मिली और इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उसे मनरेगा में मजदूरी भी करनी पड़ी।
रामबाबू ने पुरुषों की 35 किलोमीटर पैदल चाल में स्वर्ण पदक जीतकर एक नया राष्ट्रीय रिकॉर्ड कायम कर दिया है। रामबाबू ने इस रेस को दो घंटे 36 मिनट और 34 सेकेंड में पूरा किया, ये एक नया रिकॉर्ड है। इस श्रेणी में पिछला रिकॉर्ड हरियाणा के जुनैद खान के नाम दर्ज था, उन्होंने दो घंटे 40 मिनट और 16 सेकेंड में 35 किलोमीटर रेस-वॉक पूरी की थी। मंगलवार को जुनैद ने भी इस प्रतिस्पर्धा में भाग लिया, लेकिन वे दूसरे स्थान पर रहे। उन्होंने दो घंटे 40 मिनट और 51 सेकेंड का समय लेते हुए रजत पदक जीता।
इसी साल अप्रैल में रामबाबू को राष्ट्रीय प्रतियोगिता में जुनैद के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा था। तब उस प्रतियोगिता में जुनैद ने दो घंटे 40 मिनट और 16 सेकेंड का समय लेकर राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था। रामबाबू उस मुकाबले में दो घंटे 41 मिनट और 30 सेकेंड के समय के साथ दूसरे स्थान पर रहे थे। अब उन्होंने छह महीने बाद ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया।
रामबाबू ने खिताब जीतने के बाद कहा, "मैं अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी ऐसे प्रदर्शन को दोहराने के लिए कड़ी मेहनत करता रहूंगा। अच्छा लगता है जब एक खिलाड़ी के रूप में आपको इतना सम्मान मिलता है और जब लोग आपको प्रोत्साहित करते हैं।" उन्होंने आगे कहा, "मैं ओलम्पिक और एशियाई खेलों के लिए क्वालीफाई करना चाहता हूं।सफलता पाने के लिए आपको खुद पर विश्वास होना चाहिए। हर महत्वाकांक्षा की एक कीमत होती है।"
ऐसा नहीं है कि 23 साल के रामबाबू को ये सफलता रातों-रात मिली है, इसके पीछे उनका कठिन संघर्ष छुपा है। आर्थिक तंगी के कारण उन्हें वेटर से लेकर मनरेगा मजदूर के रूप में काम करना पड़ा। वे अपने वेटर के काम को अपने जीवन का काला अध्याय मानते हैं। उनके अनुसार, इस काम के दौरान लोग उनका काफी अपमान करते थे।
रामबाबू के अनुसार, उनकी मां आज भी चार किलोमीटर पैदल चलकर पानी लेने जाती हैं।

 

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