आनंदेश्वर पांडेय ने फर्जी हस्ताक्षरों से खेल मंत्रालय को लगाया चूना

हैंडबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया में भी जमकर हुई लूट

खेलपथ विशेष

लखनऊ। हम सब खेलप्रेमी देश में खेलों के पिछड़ेपन के लिए प्रायः सरकारों को ही कसूरवार मानते हैं लेकिन यह पूरी तरह से सही नहीं है। दरअसल, खेलों और खिलाड़ियों को सबसे अधिक नुकसान खेलनहारों यानि खेल संगठन पदाधिकारियों से हो रहा है। ऐसे पदाधिकारियों में भारतीय ओलम्पिक संघ के कोषाध्यक्ष और उत्तर प्रदेश ओलम्पिक संघ के सचिव आनंदेश्वर पांडेय जैसों का शुमार है। इन पर अनगिनत आरोप हैं लेकिन हमाम में जब सबरे नंगे हों तो भला कौन किसकी जांच ईमानदारी से कर सकता है।

आनंदेश्वर पांडेय जैसे लोग खेलों की मैली गंगोत्री को साफ करने के लिए प्रायः नैतिकता की दुहाई देते हैं लेकिन इन जैसे नटवरलालों से कोई यह नहीं पूछता कि गोया आप कितने नैतिक हैं। फर्जी हस्ताक्षरों से खेल मंत्रालय और हैंडबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया को लाखों की चपत लगाने के साथ ही खिलाड़ी बेटियों का यौनिक शोषण करना किस नैतिकता के तहत आता है। उत्तर प्रदेश में खेलों के सत्यानाशियों की संख्या वैसे तो दर्जनों में है लेकिन आनंदेश्वर पांडेय सर्वेसर्वा हैं। दुख और अफसोस की बात है कि इनकी अय्याशी छवि पर उंगली उठाने की भी किसी में हिम्मत नहीं क्योंकि ये खेलों के सरताज हैं, पलक झपकते ही किसी का भी बुरा कर सकते हैं।

इनका के.डी. सिंह बाबू स्टेडियम से याराना बहुत पुराना है, इतनी सरकारें आईं और चली गईं लेकिन किसी खेल मंत्री ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर उनका जब लखनऊ में मकान है तो वह वहां बसेरा किस हैसियत से जमाए हैं। दरअसल, ये बहुत बड़े बहुरुपिया हैं। इनको हर तरह के कृत्य करने की छूट है क्योंकि यह उत्तर प्रदेश ओलम्पिक संघ के सर्वेसर्वा हैं। इन्हें महफिलें सजाने का शौक है, एक बार भी जो इनकी महफिल में शामिल हुआ, बस समझो इन्हीं का होकर रह गया।  

खैर, कुछ माह पहले इनकी जालसाजी की शिकायतों के बाद भारतीय ओलम्पिक संघ के अध्यक्ष नरिन्दर ध्रुव बत्रा ने इन्हें नोटिस थमाकर इनकी मुश्किलें जरूर बढ़ा दी हैं। मामला हैंडबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया (एचआईएफ) में हुए बड़े गड़बड़झाले से सम्बद्ध है। कभी हैंडबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया के कोषाध्यक्ष रहे प्रीतपाल सिंह सलूजा ने तो आनंदेश्वर पांडेय के खिलाफ चारसौबीसी की शिकायत रोहतक (हरियाणा) के पुलिस अधीक्षक तक से की है। पांडेय का बालबांका इसलिए नहीं हो पा रहा क्योंकि एचआईएफ अध्यक्ष जगन मोहन राव भी इनकी जालसाजी में बराबर के सहभागी लगते हैं। राव का यह कहना कि आनंदेश्वर पांडेय खेल में उनके गॉडफादर हैं, यह साबित करता है कि वह अपने रसूख का इस्तेमाल कर न केवल खेलों का सत्यानाश कर रहे हैं बल्कि फर्जी हस्ताक्षरों से खेल मंत्रालय को भी चूना लगा चुके हैं।

पाठकों को बता दें कि आनंदेश्वर पाण्डेय उत्तर प्रदेश ओलम्पिक एसोसिएशन के सचिव होने के साथ ही भारतीय ओलम्पिक संघ में कोषाध्यक्ष हैं। इतना ही नहीं पांडेय भारतीय हैंडबॉल संघ पर भी अपना एकाधिकार रखते हैं। हैंडबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया में हुए अनियमितता के मामले में उन्हें भारतीय ओलम्पिक संघ के अध्यक्ष नरिन्दर ध्रुव बत्रा ने छह पेज का नोटिस थमाया था। पांडेय पर इससे पहले भी भ्रष्टाचार और जालसाजी के आरोप लगते रहे हैं। दुर्भाग्य की बात है संगठनों में चोर-चोर मौसेरे भाईयों की पैठ होने से वह अपने आपको निर्दोष साबित कर लेते हैं। खैर, इस मामले ने पांडेय की नींद जरूर हराम कर रखी है।

भ्रष्टाचार और जालसाजी के आरोपों को साबित करने की टोटा रटंत बातें इस बार पांडेय के लिए मुसीबत का सबब बन सकती हैं। सही जांच होने पर हैंडबॉल फेडरेशन ऑफ इंडिया की मान्यता भी खतरे में पड़ सकती है। आईओए अध्यक्ष बत्रा ने 16 अगस्त, 2021 को दिए नोटिस में पांडेय को बेगुनाही साबित करने को 15 दिन का समय दिया था। वास्तव में, आईओए ने एचएफआई में आनंदेश्वर पांडेय के कथित 'स्वयंभू' कामकाज और आईओए के निर्धारित संविधान, विशेष रूप से अनुच्छेद 27.1.3 के खिलाफ काम करने पर बहुत गंभीरता से ध्यान दिया है।

नोटिस वार्षिक लेखा खातों को प्रस्तुत न करने से संबंधित है, वार्षिक रिपोर्ट और आईओए को निर्धारित समय अवधि के साथ पदाधिकारियों की सूची एनएसएफ की अयोग्यता का आधार है। चूंकि, खातों और बैलेंस शीट के साथ-साथ आईओए को एचएफआई द्वारा प्रस्तुत अन्य ऐसे वित्तीय दस्तावेज तीन हस्ताक्षरकर्ताओं में से दो द्वारा हस्ताक्षर से इंकार करने के कारण प्रथम दृष्टया जाली हैं। एचएफआई द्वारा पिछले चार वर्षों का जो लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है, उसमें कोषाध्यक्ष की बजाय आनंदेश्वर पांडेय के ही हस्ताक्षर हैं, जोकि गलत है। पांडेय ने रियो ओलम्पिक के दौरान भी एचएफआई के खजाने को भारी क्षति पहुंचाई है।  

भारतीय ओलम्पिक संघ ने वर्तमान एचएफआई अध्यक्ष राव को भी पत्र लिखा, लेकिन ठोस जवाब नहीं दिया गया है। बकौल बत्रा, “मैंने एचएफआई के वर्तमान अध्यक्ष जगन मोहन राव को भी लिखा, पर उन्होंने लिखित में जवाब नहीं दिया, लेकिन टेलीफोन पर उन्होंने मुझे बताया कि पांडेय खेल में उनके गॉडफादर हैं क्योंकि उन्होंने (पांडेय) उन्हें चुना था। राव ने मुझसे अनुरोध किया कि मैं पिछले मुद्दों को नजरअंदाज कर दूं और भविष्य में ऐसा नहीं होगा। बकौल बत्रा, मैं राव के व्यवहार से असंतुष्ट था क्योंकि वह हस्ताक्षर और खातों की कथित जालसाजी पर पर्दा डालना चाहते थे।

यहां यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण है कि एचएफआई ने कथित रूप से जाली खाते और बैलेंस शीट जमा करके आईओए से अनुदान प्राप्त किया। इसके अलावा, तीन हस्ताक्षरकर्ताओं में से दो का हस्ताक्षर करने से इंकार किया जाना भी संदेह को बल देता है। आईओए की कार्रवाई एसोसिएशन के एसोसिएट कार्यकारी परिषद के सदस्य भोलानाथ सिंह द्वारा एचएफआई के कामकाज में विभिन्न आरोपों की ओर इशारा करने के बाद आई है। शिकायत अन्य अधिकारियों के बीच युवा मामले और खेल मंत्रालय (एमवाईएएस) के सचिव को भी भेजी गई थी।

एचएफआई के पूर्व अध्यक्ष, डॉ. एम. रामसुब्रमणि ने भी 18-09-2020  के एक पत्र के माध्यम से खाते के विवरण में हस्ताक्षर में जालसाजी के आरोपों की जांच की मांग की थी। भारतीय ओलम्पिक संघ के अध्यक्ष बत्रा ने इस मामले में खेल मंत्रालय को भी पत्र लिखा है। बकौल बत्रा, “मैं युवा मामले और खेल मंत्रालय को सूचित करने के लिए कर्तव्यबद्ध हूं क्योंकि एचएफआई को मंत्रालय से अनुदान प्राप्त हुआ है। मामला गम्भीर है लेकिन नटवरलाल आनंदेश्वर पांडेय जांच को प्रभावित करने के हर जतन कर रहे हैं।

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