भारतीय युवा स्वयं बनें अपना पथ प्रदर्शक

आत्म मूल्यांकन करें, कर्तव्य को समझें
योगेंद्र माथुर
देश-समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में युवाओं की अग्रणी भूमिका होती है। मौजूदा समय में निस्संदेह कुछ युवा सफलता की ओर अग्रसर हैं लेकिन काफी संख्या भटकाव और हताशा से भरे युवाओं की भी है। इस भ्रम के जिम्मेदार युवा स्वयं हैं और इसको दूर भी वे खुद ही कर सकते हैं। बस जरूरत है कि युवा जागें और अपनी क्षमताएं पहचान कर आगे बढ़ें।
युवा ऊर्जा से भरपूर होते हैं। उनमें परिवर्तन व नवनिर्माण की ताकत होती है। युवाओं में असीम संभावनाएं समाहित होती हैं। लेकिन क्या आज का युवा अपनी इस अदृश्य-अगोचर शक्ति के महत्व के प्रति जरा-सा भी जागृत है? यह विडंबना ही कही जायेगी कि आज का युवा स्वयं अपने आप से परिचित नहीं है। मौजूदा समय में आम युवा चरित्र का खाका खींचा जाए तो दो प्रकार के चित्र सामने आते हैं। पहला उस युवा का है जो नित नए सपने देख रहा है, सपने बुन रहा है। ऐसे युवाओं की आंखों में सफलता का ऊंचा शिखर दिखाई पड़ता है। उसमें शिखर पर पहुंचने की उत्कंठा है, उत्साह है, उमंग है, साहस है और वह लक्ष्य को पाने के लिए दिन-रात अथक व अटूट मेहनत कर रहा है, संघर्ष कर रहा है और जीवन के लगभग हर क्षेत्र में सफलता की पताका फहराकर देश, समाज व दुनिया में नाम रोशन कर रहा है।
लेकिन इससे उलट दूसरा एक चित्र है जो गुमराह, हताश, निराश व कुंठित युवा का है। यह चित्र पहले चित्र से बड़े कैनवास पर व अधिक उभार लिए नजर आता है। बड़े पैमाने पर युवा वर्ग में फैली यह निराशा, कुंठा निश्चय ही युवा शक्ति के भटकाव की परिचायक कही जायेगी। युवा चरित्र के स्तर की यह स्थिति उत्साहित तो नहीं करती बल्कि मन में एक तरह की ग्लानि का भाव और क्षोभ उत्पन्न करती है।
स्वाभाविक रूप से यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि युवा शक्ति की इस दिग्भ्रमित स्थिति के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? वर्तमान संदर्भ में युवाओं के परिवेश, रहन-सहन व परिस्थितियों का यदि निष्पक्ष आकलन किया जाए तो निष्कर्ष सामने आता है कि युवाओं की इस अवस्था के लिए अन्य तथ्यों से कहीं अधिक स्वयं युवा ही जिम्मेदार है। अतः प्रश्न यह खड़ा होता है कि युवा शक्ति के भटकाव की इस दिशा और दशा को परिवर्तित कैसे और कौन कर सकता है? तो हमें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि युवा शक्ति की इस धारा को रचनात्मक दिशा की ओर अग्रसर करने व सृजनात्मक कार्यों में प्रवाहित करने वाले पथ-प्रदर्शक की यह महती भूमिका स्वयं युवा ही बेहतर ढंग से निभा सकते हैं।
युवा चेतना के संवाहक स्वामी विवेकानंद ने भी युवाओं का आह्वान करते हुए कहा था, ‘उठो, साहसी बनो, शक्तिमान हो जाओ। सारा उत्तरदायित्व अपने कंधों पर ले लो और जान लो कि तुम्हीं अपने भाग्य के निर्माता हो। तुम्हें जो कुछ बल और सहायता चाहिए, सब तुम्हारे ही भीतर है। अतः अपना रास्ता चुनो और अपना भविष्य तुम स्वयं गढ़ो।’ स्वामी विवेकानंद के प्रेरक उद्बोधन के संदर्भ में भटके, भ्रमित, हताश, निराश व कुंठित युवाओं के लिए अब एक संदेश यही होना चाहिए कि वह समय आ गया है जब युवा आत्म-मूल्यांकन कर समाज व देश के प्रति अपने कर्तव्य व जिम्मेदारी को समझें और सर्वांगीण विकास की दिशा को नए आयाम- नई पहचान दें।
आज फिर जरूरत है कि सोयी हुई युवा शक्ति को झंझोड़ कर जगाया जाये। युवा शक्ति की सुप्त चेतना को जागृत करने के महाभियान की घोषणा व उसे अमलीजामा पहनाने की आवश्यकता है। अब जरूरत है कि युवाओं के आगे बढ़ने और देश व समाज में व्याप्त विसंगतियों से संघर्षरत अपने साथियों के कंधे से कंधा मिलाने की, उनसे प्रेरणा लेने की, उनसे हौंसला लेने की और साथ ही उनसे सहयोग लेकर सफलता की तरफ कदम बढ़ाने की।