शास्त्री-कोहली युग का अंत
ऐसे वक्त में जब रवि शास्त्री भारतीय क्रिकेट टीम के मुख्य कोच पद और विराट कोहली टी-20 प्रारूप के कप्तान पद से विदाई ले रहे हैं, टी-20 विश्वकप की नाकामी उन्हें जरूर खलेगी। हां, शास्त्री को इस बात का मलाल जरूर रहेगा कि उनके कोच के रूप में भारत को आईसीसी का कोई खिताब हासिल नहीं हुआ। भारत ने आखिरी बार वर्ष 2013 में आईसीसी खिताब जीता था।
इंग्लैंड में जब भारत ने चैंपियंस ट्राफी जीती थी, तब महेंद्र सिंह धोनी कप्तान थे। कोहली ने तीन प्रारूपों में चार आईसीसी टूर्नामेंटों में भारत का नेतृत्व किया, टीम को दो फाइनलों में पहुंचाया। यह विडंबना ही है कि मौजूदा टी-20 विश्वकप में भारत की विफलता ने लगातार छह बार आईसीसी टूर्नामेंटों के सेमीफाइनल तक पहुंचने की शृंखला को तोड़ दिया। इसके बावजूद टी-20 विश्वकप में भारत की विफलता के चलते शास्त्री-कोहली युग की उपलब्धियों को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भले ही टी-20 क्रिकेट दर्शकों को रोमांच देता हो, लेकिन प्रतिष्ठा के रूप में टेस्ट प्रारूप शिखर पर ही रहा है और शास्त्री के कोच के रूप में दायित्व संभालने के बाद विरोट कोहली के नेतृत्व में भारतीय टीम ने टेस्ट क्रिकेट में बेहतर प्रदर्शन किया है।
भारतीय क्रिकेट टीम इस समय टेस्ट क्रिकेट में नंबर दो पर है और आस्ट्रेलिया में पिछली दो टेस्ट सीरीज जीती हैं। निस्संदेह, तेज पिचों के चुनौतीपूर्ण माहौल में यह उपलब्धि किसी दूसरी एशियाई टीम ने हासिल नहीं की है। कोई भी एशियाई देश सीरीज नहीं जीत पाया। गत सितंबर में जब इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट शृंखला कोरोना संकट के कारण बाधित हुई तो भारत शास्त्री-कोहली के नेतृत्व में अच्छा प्रदर्शन करके 2-1 से आगे चल रहा था। इसी तरह इस साल टेस्ट क्रिकेट चैंपियनशिप के फाइनल में और वर्ष 2019 में पचास ओवर के विश्वकप फाइनल में भारत को सेमीफाइनल में ले जाने का श्रेय भी इस टीम को दिया जाना चाहिए।
निस्संदेह, शास्त्री व कोहली की जोड़ी की इन तमाम उपलब्धियों को मौजूदा टी-20 विश्वकप में पाक व न्यूजीलैंड के हाथों मिली हार के चलते नहीं नकारा जा सकता। वैसे भी इस विश्वकप में बड़े उलटफेर के कयास लगाये जा रहे हैं। निस्संदेह, टी-20 एक रोचक प्रारूप है, जो इसके अन्य दोनों प्रारूपों के मुकाबले तमाम तरह की अनिश्चितताओं से भरा हुआ होता है। इस प्रारूप की अनिश्चितताओं का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अब से पहले हुए छह टी-20 विश्वकप में पांच अलग-अलग टीमों ने जीत हासिल की है। वैसे भी टेस्ट व एक दिवसीय प्रारूप में कोहली की आतिशी बल्लेबाजी ने टीम को खासी प्रतिष्ठा दिलायी है। अत: एक विफलता से उनकी सफलताओं को नहीं नकारा जा सकता।
वैसे भारतीय टीम के कोच रवि शास्त्री की इस बात में भी दम है कि भारतीय खिलाड़ी शारीरिक और मानसिक रूप से थके हुए हैं और उन्हें आराम की जरूरत है। दरअसल, आईपीएल और टी-20 विश्वकप के बीच पर्याप्त समय न मिलने तथा लंबे समय तक बायो बबल में रहने से खिलाड़ी मानसिक रूप से प्रभावित हुए हैं। तभी अफगानिस्तान, स्काटलैंड व नामीबिया के खिलाफ शानदार जीत भी पिछली दो हारों का दाग नहीं धो पायी। दरअसल, पिछले ग्यारह महीनों में भारतीय टीम ने आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इंग्लैंड, श्रीलंका के साथ कई टूर्नामेंट खेले। वहीं कोरोना संक्रमण को देखते हुए टीम के खिलाड़ियों को बायो बबल में रखा जाता है ताकि वे सुरक्षित रह सकें। इसमें लोगों से मिलने-जुलने तथा यात्रा संबंधित कई तरह की बंदिशें होती हैं। करीब छह माह तक टीम बायो बबल में रही।
ऐसे में पंद्रह अक्तूबर को खत्म हुए आईपीएल के ठीक बाद टी-20 विश्वकप में खेलना थकाने वाला ही कहा जायेगा। उस पर पहला मैच पाकिस्तान से हुआ। जाहिरा तौर पर बड़े मैचों के साथ दबाव भी बढ़ जाता है और खिलाड़ी स्वाभाविक प्रदर्शन नहीं कर पाते। अब देखना होगा कि नये मुख्य कोच के रूप में भारतीय क्रिकेट में भरोसे की दीवार कहे जाने वाले राहुल द्रविड़ और टी-ट्वेंटी के नये कप्तान रोहित शर्मा टीम को किस ऊंचाई तक ले जाते हैं।