एसजीएफआई को खेल मंत्रालय से मान्यता नहीं
भारत में फर्जी खेल संगठनों का बोलबाला
तीन-तीन लाख रुपये लेकर बच्चों को भेज दिया बेलग्रेड
आगरा के राजेश मिश्रा पर पहले भी लगे हैं आरोप
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली। देश में फर्जी खेल संगठनों की बाढ़ सी आ गई है। ऐसे संगठन अपनी कमाई के लिए खिलाड़ियों से पैसे ऐंठ रहे हैं। खिलाड़ियों को ऐेसे फर्जी खेल संगठनों से सावधान रहने की जरूरत है। जो खेल खेल मंत्रालय की सूची में नहीं हैं ऐसे किसी भी खेल संगठन की कोई भी प्रतियोगिता वैध नहीं होती लिहाजा खिलाड़ी भ्रम में न पड़ें।
स्कूल गेम्स फेडरेशन आफ इंडिया (एसजीएफआई) को केंद्रीय खेल मंत्रालय से मान्यता नहीं है। इसके बावजूद उसके एक धड़े ने बिना अनुमति के सर्बिया के बेलग्रेड में अंडर-15 विश्व स्कूल गेम्स में खेलने के लिए भारत की टीम भेज दी। अब दूसरे धड़े ने इसकी शिकायत केंद्रीय खेल मंत्रालय से की है। शिकायत में प्रत्येक बच्चे से तीन-तीन लाख रुपये लेने का भी आरोप है।
भ्रष्टाचार और 2017 में आस्ट्रेलिया गई भारतीय टीम की एक बच्ची की डूबकर मौत के बाद एसजीएफआई की मान्यता रद्द है। पहले ओलम्पिक पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार इसके अध्यक्ष और राजेश मिश्रा महासचिव थे। सुशील और राजेश में भ्रष्टाचार को लेकर विवाद हुआ तो यह संघ दो टुकड़ों में बंट गया। सुशील फिलहाल हत्या के आरोप में जेल में हैं जबकि राजेश अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। सुशील के धड़े वाले एसजीएफआई के महासचिव विजय सांतेन ने 19 सितम्बर को केंद्रीय खेल मंत्रालय को पत्र लिखा, 'राजेश एसजीएफआई के नाम पर धोखाधड़ी कर रहे हैं। 2017 में आस्ट्रेलिया के एडिलेड में अनधिकृत दौरे को लेकर एसजीएफआई पर प्रतिबंध लगा दिया था।
उस दौरे में इन लोगों के कारण एक बच्ची निशा नेगी की मृत्यु हो गई थी। उस दौरे को लेकर खेल मंत्रालय से अनुमति नहीं ली गई थी। निशा की मृत्यु के बाद पांच एसजीएफआई अधिकारियों पर खेल मंत्रालय ने प्रतिबंध लगाया था। उस घटना के बाद राजेश मिश्रा ने फिर से एक टीम सर्बिया भेज दी और वह धोखाधड़ी के कार्यों से देश का नाम खराब कर रहे हैं। सर्बियाई दौरे के लिए उन्होंने या किसी भी खिलाड़ी ने खेल मंत्रालय से अनुमति नहीं ली। किसी भी अंतरराष्ट्रीय दौरे में हिस्सा लेने के टीम का चयन ट्रायल होता है लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने इन बच्चों से सिर्फ पैसे वसूले हैं। राजेश मिश्रा ने दो टीमें बास्केटबाल की भेजीं जो किसी तरह उचित नहीं है। बास्केटबाल टीम में कोच राजेश्वर राव भी शामिल थे। इसके अलावा राजेश्वर राव की पत्नी राधा राव को बास्केटबाल कोच बनाकर सर्बिया भेज दिया गया।
तैराकी टीम को बेंगलुरु की एक अकादमी द्वारा तैयार किया गया। राजीव डे असम में अपनी अकादमी चलाते हैं और वह भी इस मामले में शामिल हैं। एसजीएफआई सभी राज्यों के शिक्षा और खेल विभाग के साथ काम करता है। इन लोगों ने सर्बियाई दौरे को लेकर किसी भी राज्य के साथ बातचीत नहीं की है।' इस पत्र में आरोप लगाया गया है कि प्रत्येक बच्चे को भेजने के लिए उनके माता-पिता से तीन-तीन लाख रुपये लिए गए। इस मामले में भारतीय खेल मंत्रालय ने मान्यता को लेकर दोनों दलों के बीच वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये बातचीत भी की। इसमें भी एक तरफ से इन आरोपों को दोहराया गया। जब इस मामले में राजेश मिश्रा गुट वाले एसजीएफआई के महासचिव आलोक खरे से बात की गई तो उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्कूल फेडरेशन ने हमारे अध्यक्ष बी. रंजीत कुमार को आमंत्रण भेजा था इसलिए हमने टीम भेजी।
जब उनसे पूछा गया कि क्या आपने खेल मंत्रालय से अनुमति ली थी और क्या आप बिना मान्यता के भारत की टीम भेज सकते हैं तो उन्होंने सुर बदलते हुए कहा कि नहीं हमने टीम नहीं भेजी। स्कूलों ने सीधे अपनी टीम भेजी। जब उनसे पूछा गया कि क्या स्कूल सीधे अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में टीम भेज सकते हैं तो उन्होंने कहा कि अभी मुझे मीटिंग में जाना है, मैं ज्यादा बात नहीं कर सकता। वहीं राजेश मिश्रा से उनके तीन मोबाइल नंबरों पर बात करने की कोशिश की गई लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई।
भारतीय खेलों का नासूर है एसजीएफआईः राजेन्द्र सजवान
“यदि शासन, प्रशासन, पक्ष, विपक्ष, खिलाड़ी, अधिकारी, अविभावक, ओलम्पियन और तमाम चैम्पियन सचमुच खेलों का भला चाहते हैं तो आज और अभी भारतीय स्कूली खेल संघ(एसजी एफ आई) को भंग करें और ऐसे पुख्ता इंतजाम करें ताकि इस प्रकार की फर्जी संस्थाएं फिर कभी सिर न उठा सकें।
” एक जाने माने ओलंपियन की इस प्रतिक्रिया को भले ही देश के खेलों को खाने वाले गंभीरता से ना लें लेकिन वक्त का तकाजा यही है। भारत को 2028 में खेल महाशक्ति बनाने का दावा करने वाले और ओलंपिक पदक तालिका में पहले दस देशों में स्थान देने वाले कमअक्ल और खेल गणित में कमजोर अधिकारी चाहें तो शीघ्र अति शीघ्र ठोस कदम उठा सकते हैं।
कौन नहीं चाहता कि ओलंपिक गांव में बार बार और लगातार तिरंगा फहराए? कौन देशभक्त अपने खिलाड़ियों को विश्व मानचित्र पर उभरते नहीं देखना चाहता? लेकिन ऐसा तब ही संभव है जब हमारी बुनियाद मजबूत होगी, हमारे खिलाड़ियों को ग्रासरूट स्तर से प्रोमोशन मिलेगा और उनके साथ कोई छल कपट नहीं होगा! दुर्भाग्यवश, हमारे स्कूली खेल हमेशा के भ्र्ष्टाचार और लूटमार से पीड़ित रहे हैं। विश्वास न हो तो राष्ट्रीय स्तर पर एक सर्वे कर लिया जाए।
माता पिता, स्कूली खेल आयोजकों, खिलाड़ियों और अन्य जिम्मेदार लोगों से एसजीएफआई के बारे में पूछ लिया जाए। पिछले पैंतीस सालों के अनुभव के आधार पर यह कह सकता हूँ कि स्कूली खेल उभरती प्रतिभाओं की हत्या करने, उन्हें खेल विमुख करने और देश का खेल भविष्य बिगाड़ने का अखाड़ा हैं। कई पीड़ित खिलाड़ी, देश के जाने माने कोच और खिलाड़ी चाहते हैं कि एसजीएफआई को आज और अभी भंग कर दिया जाए।
भुक्तभोगी और स्कूली खेलों के रास्ते ओलम्पिक तक का सफर तय करने वाले खिलाड़ी और उनके गुरु खलीफा भी मानते हैं कि उम्र का फर्जीवाड़ा और अपनेअपनों को रेबड़ी बांटने वाले एसजीएफआई का अस्तित्व समाप्त नहीं किया गया तो भारत कभी भी खेल महाशक्ति नहीं बन पाएगा।
14,17 और 19 साल के आयुवर्ग में 18 से 25 साल तक के खिलाड़ियों की घुसपैठ कहाँ तक न्यायसंगत है? हैरानी वाली बात यह है कि खेल मंत्रालय को सैकड़ों शिकायतें भेजी जाती रही हैं लेकिन शायद ही कभी कोई कार्यवाही हुई हो। अब तो जाग जाओ भारत को खेल शक्ति बनाने का दावा करने वालों! अब तो मौका और दस्तूर भी है।