ग्वालियर का मोह नहीं छोड़ पा रहे डीएसओ आशीष पांडेय

14 सितम्बर को जबलपुर हो चुका है स्थानांतरण

पांडेय पर अनियमितताओं को लेकर गम्भीर आरोप

खेलपथ संवाद

ग्वालियर। जिला खेल एवं युवा कल्याण अधिकारी आशीष पांडेय का 14 सितम्बर को संचालनालय खेल भोपाल से जबलपुर के लिए स्थानांतरण हो चुका है लेकिन वह ग्वालियर का मोह नहीं छोड़ पा रहे और यहीं रुके हुए हैं। डीएसओ पांडेय पर अनियमितताओं को लेकर गम्भीर आरोप हैं, कहीं वह इन्हीं मामलों को सुलटाने या साक्ष्य मिटाने की वजह से ही तो नहीं रुके हुए हैं।

जो भी हो दिसम्बर 2000 में जिला खेल एवं युवा कल्याण अधिकारी ग्वालियर बनाए गए आशीष पांडेय एक साल भी जिला खेल परिसर कम्पू में नहीं रह सके। इनका नौ माह का कार्यकाल विवादों से भरा रहा है। इन पर कुछ अनियमितताओं सहित पुलिस अधीक्षक को गुमराह करने एवं दस्तावेजों में हेराफेरी करने के भी आरोप हैं। संचालनालय भोपाल द्वारा इनके स्थानांतरण के आदेश 14 सितम्बर को हो चुके हैं। अब इन्हें जबलपुर का कामकाज देखना है। ग्वालियर का कामकाज अब इंदौर में जिला खेल एवं युवा कल्याण अधिकारी रहे जोसेफ बक्सला को देखना है।

संचालक खेल के स्थानांतरण आदेश में पांडेय को तत्काल जबलपुर में ज्वाइनिंग देनी थी लेकिन आदेशों की परवाह किए बिना वह अभी भी ग्वालियर में ही डेरा जमाए हुए हैं। सूत्र बताते हैं कि डीएसओ पांडेय को भोपाल से ही शह मिली हुई है। पांडेय के खिलाफ ग्वालियर पुलिस अधीक्षक अमित सांघी ने उन्हें गुमराह करने की शिकायत संचालक खेल को भेजी है। पांडेय के खिलाफ पुलिस अधीक्षक द्वारा संचालक खेल को भेजे गए शिकायती पत्र में कहा गया है कि आशीष पांडेय के विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए।

दरअसल, मध्य प्रदेश में पुलिस अधीक्षक ही किसी जिले के खेलों का सर्वेसर्वा होता है लेकिन उनके पत्र पर संचालनालय द्वारा कोई कार्रवाई न किया जाना संदेह को जन्म देता है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर संचालनालय की क्या मजबूरी है और पांडेय जबलपुर जाने की बजाय ग्वालियर में ही क्यों रुके हुए हैं? डीएसओ आशीष पांडेय पर संविदा सुरक्षाकर्मी मुकेश दरोलिया की फर्जी मार्कशीट के मामले को छुपाकर उसकी संविदा अवधि बढ़ाने हेतु पुलिस अधीक्षक को गुमराह करने एवं मुकेश रंगोलिया को एक लाख रुपये का अनैतिक भुगतान कराने का मामला भी पुलिस अधीक्षक ग्वालियर एवं संचालनालय भोपाल के संज्ञान में है।

आशीष पांडेय जैसे नए डीएसओ को पहले ग्वालियर जैसे महत्वपूर्ण जिले की जवाबदेही सौंपना उसके बाद उन्हें जबलपुर जैसी खास जगह भेजना समझ से परे है। जिस डीएसओ के खिलाफ वित्तीय अनियमितता के आरोप हों, उसका तबादला करने की बजाय जांच होनी चाहिए तथा यदि वह कसूरवार है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन जब हमाम में सभी नंगे हों तो भला कौन किसकी जांच करेगा। भोपाल में बैठे लोग कौन से दूध के धुले हैं। इस मामले में संचालनालय खेल भोपाल में बैठे मठाधीश, हाल ही संचालक खेल बने रवी कुमार गुप्ता को भी गुमराह कर सकते हैं। कुल मिलाकर भोपाल में बैठे पदाधिकारी डीएसओ आशीष पांडेय को एन-केन-प्रकारेण बचाना चाहते हैं।     

 

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