दुनिया को दिखाएंगे हम हैं हिन्दुस्तानी

पैरालम्पिक में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को तैयार हरियाणा के जांबाज
खेलपथ संवाद
ग्वालियर।
पैरालम्पिक खेलों का आगाज होने ही वाला है। हमारे 54 हिन्दुस्तानी पैरा खिलाड़ी भी दुनिया को अपने हौसले का जलवा दिखाने को तैयार हैं। उम्मीद है कि इस बार न केवल भारत अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करेगा बल्कि कई गुमनाम खिलाड़ी सुर्खियां बटोरेंगे। तो आओ देखें कि भारत के किस-किस खिलाड़ी से खेलप्रेमियों को मेडल की उम्मीद है।
सुमित अंतिल जेवलिन थ्रो
फार्म में चल रहे सुमित अंतिल को इस बार जेवलिन थ्रो की एफ-64 श्रेणी में मेडल का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। रियो पैरालम्पिक में मेडल से चूके अमित सरोहा शिष्य धर्मबीर के साथ मेडल की उम्मीद से मैदान में उतरेंगे। तीनों खिलाड़ी टोक्यो पैरालम्पिक में देश का प्रतिनिधित्व करेंगे, मगर उनका सफर आसान नहीं रहा है। इसके पीछे उनकी संघर्ष भरी कहानी छुपी है।
सोनीपत के गांव खेवड़ा निवासी सुमित अंतिल 12वीं क्लास में पढ़ाई के दौरान भारतीय खेल प्राधिकरण सेंटर, बहालगढ़ में पहलवानी के दांव पेंच सीख रहे थे। साल 2015 में अभ्यास के बाद घर लौटते समय सड़क हादसे में पहलवान सुमित अंतिल को पैर गंवाना पड़ा। अखाड़े में वर्षाें तक जोर करने के वाले सुमित को यह हादसा भी खेल मैदान से दूर नहीं रख सका। 
सालों बाद मैदान में उतरे सुमित ने पहलवानी छोड़कर जेवलिन थाम ली। उन्होंने जेवलिन की एफ-64 श्रेणी में खास पहचान बनाई। विश्व स्तर पर कई मेडल जीते। सुमित बताते हैं कि उनका लक्ष्य पैरालम्पिक में देश के लिए गोल्ड मेडल जीतना है। उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 66.90 मीटर है, लेकिन यह प्रतियोगिता रजिस्टर्ड नहीं थी। उनके नाम 56.18 मीटर का रिकॉर्ड है। अभ्यास के दौरान 70 मीटर से अधिक दूरी तक जेवलिन फेंक रहे हैं। अगर सब ठीक रहा तो उनका मेडल तय माना जा रहा है।
अमित सरोहा क्लब थ्रो
दो बार के पैरालम्पियन अनुभवी एथलीट अमित सरोहा टोक्यो पैरालम्पिक में क्लब थ्रो और एफ-51 में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। सोनीपत से सटे गांव बैंयापुर निवासी अमित 22 साल की आयु में कार दुर्घटना का शिकार हो गए थे। इस हादसे में उनकी दोनों पैर खराब हो गए और वह व्हीलचेयर पर आ गए। मगर उनके अंदर एक खिलाड़ी था, जो हार मानने को तैयार नहीं था। 
कुछ वर्षाें के कड़े अभ्यास के बाद क्लब थ्रो में देश के नामचीन खिलाड़ियों में शुमार हो गए। इनके नाम पैरा एशियन गेम्स 2010 में सिल्वर और विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में दो सिल्वर मेडल अपने नाम किए। उन्हें 2013 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। अमित सरोहा रियो पैरालम्पिक-2016 में 0.19 मीटर से ब्रांज से चूक गए थे। इस बार उन्होंने तैयारियों के अलावा पिछली कमियों को दूर करते हुए मैदान में उतरेंगे। देश को उनसे मेडल की काफी उम्मीदें हैं।
धर्मबीर नैन क्लब थ्रो
पैरा एथलीट धर्मबीर लगातार दूसरी बार अपने गुरु अमित सरोहा के साथ पैरालम्पिक खेलों में क्लब थ्रो एफ-51 स्पर्धा में मेडल जीतने के इरादे से मैदान में उतरेंगे। सोनीपत के गांव भदाना निवासी धर्मबीर साल 2012 में मास्टर डिग्री कर रहे थे। एक दिन साथियों के कहने बाद उनके साथ बड़वासनी की नहर में नहाने पहुंच गए। उन्होंने पुल से छलांग लगाई तो वहां पानी कम था, इससे उनकी रीढ़ की हड्डी चोटिल हो गई और वे लकवे का शिकार हो गए। वर्ष 2013 में एक साथी के माध्यम से पैरा एथलीट अमित सरोहा से मुलाकात हुई तो उसके बाद इन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 
2016 रियो पैरालम्पिक में देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 2017 और 2019 विश्व चैम्पियनशिप में खेल चुके हैं। इस बार अपने गुरु अमित सरोहा के साथ इस बार उन्होंने जोरदार तैयारियां की हैं। उन्हें विश्वास ही नहीं बल्कि पूरा भरोसा है कि इस बार देश के लिए मेडल जीतने में कामयाब होंगे। पिछले कुछ दिनों से वे 30 मीटर से ज्यादा थ्रो कर रहे हैं, अगर वे अपना बेस्ट दोहरा पाए तो उनका मेडल पक्का माना जा रहा है।
हरविंद्र कड़ी मेहनत लाई रंग
लगातार चार साल तक कड़ी मेहनत करने के बाद भारतीय टीम में चयन न होने से निराश हरविंद्र ने खेल छोड़ने की तैयारी कर ली थी, लेकिन उनके कोच जीवन जोत ने उन्हें राह दिखाई और अब उन्हें टोक्यो पैरालम्पिक में गोल्ड मेडल का दावेदार माना जा रहा है। कैथल के तारावाली गांव के पास अजीत नगर के हरविंद्र किसान परमजीत के घर जन्मे। वे अर्थशास्त्र में पीएचडी कर रहे हैं। उनके पिता परमजीत सिंह ने बताया कि हरविंद्र पैरा आर्चरी में रिकर्व इवेंट में खेलने वाले हरियाणा के एकमात्र खिलाड़ी हैं। बचपन में गलत इंजेक्शन से हरविंद्र के एक पैर की ग्रोथ रुक गई। पंजाबी विश्वविद्यालय पटियाला में उन्होंने तीरंदाजी में हाथ आजमाया और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
एकता भ्याण सड़क हादसे के बाद बदली जिंदगी
क्लब थ्रो इवेंट की श्रेणी एफ-51 में टोक्यो पैरालम्पिक खेलों में दम दिखाने गई एशियाई पैरा गेम्स की स्वर्ण पदक विजेता हिसार की एकता भ्याण का खिलाड़ी बनने का सफर फिल्मी कहानी जैसा है। एकता डॉक्टर बनना चाहती थीं। दिल्ली में कोचिंग शुरू की। 4 अगस्त 2003 को एक ट्रक उनकी कैब पर पलट गया, जिसने उनके जीवन की दिशा बदल दी। हादसे में 6 छात्राओं की कुचलने से मौत हो गई थी, जबकि रीढ़ की हड्डी पर चोट से एकता व्हीलचेयर पर आ गईं, लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं खोई। 
वे एचसीएस पास कर हिसार में सहायक रोजगार अधिकारी बन गईं। उनके पिता बागवानी विशेषज्ञ डॉ. बलजीत सिंह एकता के फैसले के साथ खड़े रहे, जब उन्होंने खेलों का रुख किया। पैरा एथलीट, कोच अमित सरोहा के निर्देशन में अभ्यास शुरू किया। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीते। अब वे टोक्यो में दमखम दिखाएंगी।
तरुण ढिल्लो : बैडमिंटन
अधिकतर युवाओं की तरह तरुण ढिल्लो का सपना भी क्रिकेटर बनना था, लेकिन 10 साल की उम्र में एक हादसे ने उनके सारे सपने तोड़ दिए। बावजूद इसके तरुण ने हार नहीं मानी और उन्होंने बेहतरीन बैडमिंटन खिलाड़ी बनकर दिखाया। सातरोड कलां गांव निवासी तीन बहनों के भाई तरुण पुरुषों के एकल स्टैंडिंग लोअर (एसएल4) में दुनिया में दूसरे स्थान पर हैं और टोक्यो पैरालम्पिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उन्होंने विश्व स्तर पर कई मेडल जीते हैं।
10 वर्ष की उम्र में ऊंचाई से गिरने के कारण तरुण को चोट लग गई। तरुण ठीक तो हो गए, लेकिन दाहिना पांव विकृत हो गया। वे लम्बे समय तक बिस्तर पर रहे, लेकिन हौसला नहीं हारा। तरुण ने कहा कि उन्होंने कभी भी विकलांग की तरह महसूस नहीं किया। उन्होंने कहा कि मैं मेरे जैसे लोगों की मदद करना चाहता हूं।
फरीदाबाद के तीन लाल भी मैदान में
पैरालम्पिक में फरीदाबाद के तीन खिलाड़ियों शूटर सिंहराज अधाना, मनीष नरवाल और रंजीत सिंह भाटी से पदक की उम्मीदें हैं। मनीष व सिंहराज 10 व 50 मीटर पिस्टल इवेंट में, जबकि रंजीत सिंह भाटी का भाला फेंक में हिस्सा लेंगे। मनीष नरवाल जन्म से ही दाएं हाथ से दिव्यांग हैं और उनके पिता दिलबाग सिंह भविष्य को चिंतित रहते थे। दिलबाग के मित्र ने मनीष को शूटिंग प्रशिक्षण दिलाने की सलाह दी। यहां से मनीष की किस्मत ने करवट ली और शूटिंग में अपनी अलग पहचान बनाई।
भाला फेंक एथलीट रंजीत सिंह भाटी वर्ष 2013 में यमुना एक्सप्रेस-वे पर एक सड़क हादसे ने उनका जीवन बदल दिया। इस हादसे में रंजीत बाएं पैर से दिव्यांग हो गए। उनके पिता रामबीर सिंह उनके भविष्य को लेकर चिंतित रहते थे। लेकिन रंजीत ने हार नहीं मानी उन्होंने तमाम संघर्षों के बावजूद भाला फेंकना जारी रखा और अब वे टोक्यो पैरालम्पिक में अपना जौहर दिखाएंगे। 
तिगांव निवासी सिंहराज अधाना दोनों पैरों से दिव्यांग हैंं। एक समय ऐसा था सिंहराज घुटनों पर चलते थे। 5 वर्ष पहले हुए आपरेशन के बाद अपने पैरों पर खड़े हो पाए, लेकिन पैरों में वह ताकत नहीं थी। इसके बाद सिंहराज ने निशानेबाजी में हाथ आजमाए। अब वे पैरालम्पिक में मेडल पर निशाना साधेंगे।
अरुणा 47 वर्ष बाद जगाई देश की उम्मीद
टोक्यों में पैरा ओलम्पिक में पहुंची देश की पहली ताईक्वांडो खिलाड़ी अरुणा तंवर भिवानी जिले के गांव दिनोद की बेटी हैं। 47 साल के इंतजार के बाद अब देश को उनसे ताईक्वांडो में पहले मेडल की उम्मीद है। वे 49 किलोग्राम भार वर्ग में देश का प्रतिनिधित्व करेंगी। अरुणा राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीत चुकी हैं। अरुणा के पिता नरेश कुमार व मां सोनिया ने बताया कि अरुणा ने 2016 में ताईक्वांडो खेल को अपनाया। इससे पहले वे सामान्य वर्ग में खेलती रहीं। मां और पिता को उम्मीद है कि उनकी बेटी मेडल लेकर लौटेगी। उनके पिता ड्राइवर हैं तथा मां गृहणी हैं। उन्होंने आभूषण गिरवी रखकर अरुणा को खेलों की तैयारी करवाई।
नवदीप ने मां से किया गोल्ड का वादा
देश के लिये गोल्ड जीतने वाले नीरज चोपड़ा के बाद अब पैरालम्पिक में पानीपत के गांव बुवाना लाखु के नवदीप पर जेवलिन थ्रो में गोल्ड जीतने की उम्मीदें हैं। नवदीप का वर्ल्ड रैंकिंग के हिसाब से टोक्यो पैरालम्पिक के लिये चयन हुआ है। वे 28 अगस्त को टोक्यो रवाना होंगे। उन्होंने अपनी मां से गोल्ड मेडल जीतने का वादा किया है।
योगेश को मां की प्रेरणा से मिला हौसला
झज्जर जिले के बहादुरगढ़ की राधा कॉलोनी में रहने वाले योगेश ने मां की प्रेरणा से डिस्कस थ्रो का अभ्यास शुरू किया था। लेकिन अब वे टोक्यो में पैरालम्पिक में अपना दम दिखाएंगे। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीत चुके हैं। योगेश ने बताया कि उनके पिता ज्ञानचंद ने भी उनका अभ्यास कराने के लिए पूरा समर्थन किया। योगेश का कहना है कि वह टोक्यो में पैरालम्पिक में दमखम के साथ उतरेंगे और प्रयास करेंगे कि देश के लिए बेहतरीन खेल खेल सकूं। उधर, झज्जर के ही गांव माछरौली के रामपाल हाई जंप में देश का प्रतिनिधित्व करेंगे। वे पिछले 7-8 साल से अभ्यास कर रहे हैं। चारे की मशीन में हाथ कटने के बाद रामपाल ने हाईजंप में ऐसा कमाल किया कि अब उनसे मेडल की उम्मीदें हैं।
राहुल जाखड़ निशाने पर गोल्ड
झज्जर के गांव अकेहड़ी मदनपुर के राहुल जाखड़ की, जिसने पोलियो से ग्रसित होने के बावजूद हार नहीं मानी । मेहनत,लगन के बूते राहुल पैरालम्पिक में दम दिखाने को तैयार हैं। राहुल का चयन 24 अगस्त से जापान के टोक्यो में शुरू हो रही पैरालम्पिक शूटिंग प्रतियोगिता के लिए हुआ है। वह बचपन में पोलियो ग्रस्त हो गए व पांव में दिक्कत है। राहुल ने पढ़ाई कर ड्राइंग टीचर की नौकरी ज्वाइन की लेकिन सपना देश के लिए खेलना था। करीब 5 साल पहले पड़ोस के युवक के साथ शूटिंग शुरू की। उन्होंने कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मेडल जीते। अब राहुल पैरालम्पिक में गोल्ड मेडल के लिए निशाना लगाएगा।
दीपक सैनी अभिनव से प्रेरणा ले उतरे शूटिंग में
अंबाला के 39 वर्षीय दिव्यांग निशानेबाज दीपक सैनी से टोक्यो पैरालम्पिक में निशानेबाजी में पदक की उम्मीद है। उनका जन्म 8 मई, 1982 को अम्बाला के गांव शाहपुर में हुआ। वह जन्म के बाद पोलियो की चपेट में आ गये। एक शूटिंग रेंज की आकस्मिक यात्रा ने एक स्पोर्ट्स शूटर को जन्म दिया। प्रशिक्षण विद्यालय कुरुक्षेत्र शूटिंग रेंज में प्रवेश मिला। 29 साल की उम्र में शूटिंग में दिलचस्पी ली। राइफल शूटर अभिनव बिंद्रा से प्रेरित थे। गुरुकुल कुरुक्षेत्र नवीन जिंदल शूटिंग रेंज के कोच बलबीर सिंह का मार्गदर्शन मिला। चार वर्षों से इस आयोजन के लिए मेहनत कर रहे थे।
विनाेद मलिक रोजाना आठ घंटे अभ्यास
रोहतक के शास्त्री नगर के रहने वाले 52 वर्षीय विनोद मलिक ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई प्रतियोगिताओं में अपनी पहचान बनाई है और अब टोक्यो पैरालम्पिक में डिस्कस थ्रो में देश का प्रतिनिधित्व करेंगे। राजीव गांधी स्टेडिय में रोजना 8 घंटे प्रैक्टिस की। विनोद का कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि टोक्यो में वे गोल्ड जीतेंगे। उन्होंने कोच अमरजीत के पास खेल की शुरुआत की थी। उधर, रोहतक के ही गांव बैयापुर लाढौत निवासी जयदीप का बचपन में बुखार में गलत इंजेक्शन से उसका एक पैर कमजोर हो गया था। लेकिन जयदीप ने हार नहीं मानी और चक्का फेंकने का अभ्यास शुरू किया। उनके परिजनों को उम्मीद है कि उनका बेटा पावरलिफ्टिंग में गोल्ड लेकर लौटेगा।
टेकचंद रीढ़ की हड्डी टूटी, अब दिखाएंगे हौसला
हौंसले बुलंद हों तो हर कठिनाई व बाधा अपना रुख मोड़ लेती है। यह बात बावल के मोहल्ला जटवाड़ा निवासी 35 वर्षीय टेकचंद पर फिट बैठती है। दिव्यांग टेकचंद महलावत टोक्यो पैरालम्पिक खेलों में भाग लेने जा चुका है। टेकचंद इन खेलों के लिए चयनित देश के 25 एथलेटिक्स खिलाडि़यों का प्रतिनिधित्व करेंगे। वर्ष 2005 में सड़क हादसे में उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गयी, लेकिन टेकचंद निराश नहीं हुए। उन्होंने गोला फेंक में अभ्यास किया और पैरा-एशियार्ड में कांस्य पदक जीता। अब वे 3 सितंबर को टोक्यो पैरालम्पिक में दम दिखाएंगे।

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