खुशी मिली इतनी कि मन में न समाय

खेलपथ संवाद
ग्वालियर।
महामारी से उदास देश को महिला हॉकी टीम ने एक उत्सव जैसी उमंग व उत्साह दे दिया। हाल ही में भारतीय पुरुष हॉकी टीम के सेमीफाइनल में पहुंचने और रविवार को पीवी सिंधु द्वारा कांस्य पदक जीतने से देश को जो खुशी मिली थी, इस जीत ने उसे दोगुना कर दिया। पूरा देश खुशी से झूम उठा। प्रधानमंत्री से लेकर संतरी तक ने अपनी-अपनी तरह से टीम को बधाई देकर उसका हौसला बढ़ाया। 
दरअसल, लगातार तीन मैच हारने के बाद लोग भूल ही गए थे कि भारतीय महिला हॉकी टीम टोक्यो में है भी। क्वॉर्टर फाइनल में पदक की दावेदार मानी जाने वाली आस्ट्रेलिया की टीम को हराकर भारतीय बेटियों ने पूरी दुनिया को चौंकाया ही है। भले ही ये जीत गुरजीत कौर के अकेले गोल से आयी, लेकिन पूरी टीम एक होकर खेली है। खासकर मैच जिताने के लिये सबसे ज्यादा तारीफ किसी की हो रही है तो हरियाणा की बेटी सविता पूनिया की, जिसने आस्ट्रेलिया के हमलों को भौंथरा कर दिया। सात पेनल्टी कॉर्नर बेकार करके हमारी गोलकीपर ने आस्ट्रेलियाई खिलाडि़यों का मनोबल बेदम कर दिया। इस जीत में डच कोच शॉर्ड मॉरिन की कोचिंग को भी श्रेय देना होगा, जिन्होंने पिछले दिनों नीदरलैंड से बुरी हार के बाद पूरी टीम की जमकर क्लास लगायी थी। 
ये मानना ही होगा कि मॉरिन ने भारतीय हॉकी टीम की मारक क्षमता को धारदार बनाया है। सही मायनों में भारतीय महिला टीम की इस बात के लिये तारीफ करनी होगी कि उसने लगातार नीदरलैंड, जर्मनी व ब्रिटेन से हारने के बाद हौसला नहीं खोया। फिर आयरलैंड व दक्षिण अफ्रीका को हराकर क्वॉर्टर फाइनल में जगह बनायी। ऐसे में इस अप्रत्याशित जीत ने जहां कुछ खेलप्रेमियों के रौंगटे खड़े कर दिये तो कुछ के आंखों में खुशी के आंसू भर दिये। लेकिन एक बात साफ हो गई कि भले ही देश क्रिकेट का दीवाना हो, लेकिन हॉकी से देश अपनी अस्मिता जोड़कर देखता है। उसमें हार-जीत से जुड़ता है। ये देश के हॉकी से जुड़ाव का ही नतीजा है कि देशवासियों ने क्वॉर्टर फाइनल की जीत को फाइनल की जीत की तरह से देखा। देश में मान्यता रही है कि हॉकी का विकास भारतीय परिवेश में हुआ। 
ओलंपिक में हॉकी में भारतीय खिलाड़ी तब से स्वर्ण पदक जीत रहे हैं, जब भारतीयों की जीत पर ब्रिटेन का झंडा लहराया जाता था। आजाद भारत में उसी शान से हॉकी का खेल जीतकर भारतीय तिरंगे की शान देखने को आतुर हैं। मास्को में हुए आधे-अधूरे ओलंपिक के चार दशक बाद भारतीय बेटियों का क्वॉर्टर फाइनल तक पहुंचना भारतीयों को उद्वेलित कर गया। बहरहाल, इस बात का श्रेय हॉकी इंडिया को भी देना होगा कि जिसने खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएं मुहैया करायी और खिलाड़ियों को लगातार विदेशों में खेलने का मौका दिया। टीम को विदेशी कोच उपलब्ध कराये। वहीं ओडिशा सरकार को भी श्रेय, जिसने टीम को प्रायोजित करके संबल दिया। 
आज महिला हॉकी टीम यूरोपीय खिलाड़ियों की तरह बेहतर फिटनेस के साथ खेल रही हैं, जिसके चलते सोमवार की जीत के बाद सारे देश में ‘चक दे इंडिया’ के नारे लगते रहे, सोशल मीडिया पर भी यही ट्रेंड चलता रहा। हरियाणा के लिये तो यह विशेष रूप से इतराने का मौका है कि महिला हॉकी टीम की कप्तान, गोलकीपर समेत आधी से ज्यादा टीम हरियाणा से है। बेहद सामान्य पृष्ठभूमि व निजी जीवन के कठोर संघर्षों के बाद ये बेटियां इस मुकाम पर पहुंची हैं। पुरुष वर्चस्व वाले समाज से निकलकर बेटियों ने हॉकी के खेल को नई ऊंचाई प्रदान की है।
टोक्यो ओलंपिक को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हैट-ट्रिक लगाने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी वंदना कटारिया के लिये भी याद किया जायेगा। पूरे मैच में टीम जिस तरह एक होकर खेली, उसने टीम का हौसला सातवें आसमान में पहुंचा दिया। साथ ही बताया कि सामने कितनी ही मजबूत टीम क्यों न हो हम जीत कर लौटेंगे। इस लाजवाब खेल ने महिला हॉकी में देश की उम्मीदें जगा दी हैं। उम्मीद है कि टीम सेमीफाइनल में ही नहीं पहुंची, टीम फाइनल में पहुंचकर देश की उम्मीदों को हकीकत में बदलेगी।

रिलेटेड पोस्ट्स