69 साल पहले बेटियों ने ओलम्पिक में जगाई थी उम्मीद की लौ

टोक्यो में रिकॉर्ड 55 बेटियां 16 खेलों में करेंगी शिरकत 
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
चार बेटियां, दो खेल और पांच स्पर्धाएं। 69 साल  पहले 21 जुलाई 1952 को हेलसिंकी ओलम्पिक खेलों के महासमर में पहली बार मैदान पर उतरकर भारतीय बेटियों ने जो उम्मीद की लौ जगाई थी वह अब मशाल बन चुकी है। हेलसिंकी से बेटियों ने जो ऐतिहासिक सफर शुरू किया था वह टेढ़ी-मेड़ी पगडंडियों से होता हुआ अब जापान की राजधानी टोक्यो पहुंच चुका है। वह भी रिकॉर्ड 55 बेटियों और रिकॉर्ड 16 खेलों के साथ। 
दुनिया भर के 200 से ज्यादा देशों के 11000 से ज्यादा खिलाड़ियों के बीच देश की बेटियां तिरंगे की शान बढ़ाने को बेताब हैं। उम्मीद है कि बेटियां 69वीं सालगिरह पर नया इतिहास लिखेंगी। 17 साल की नीलिमा घोष के 100 मीटर दौड़ की पहली हीट के लिए मैदान पर उतरने के साथ ही बेटियों ने इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करवा लिया था। नीलिमा पांच खिलाड़ियों में 13.6 सेकेंड का समय निकालकर पांचवें स्थान पर रहकर आगे नहीं बढ़ पाईं पर पहली भारतीय महिला ओलम्पियन बन गईं। इसके कुछ देर बाद मैरी डिसूजा भी 100 मीटर हीट में 13.1 सेकेंड के साथ पांचवें नंबर पर रहीं। 
नीलिमा 80 मीटर बाधा दौड़ तो डिसूजा 200 मीटर दौड़ में भी पहले ही दौर में बाहर हो गईं। तैराक डॉली नाजीर (100 मीटर फ्रीस्टाइल, 200 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक) व आरती शाह (200 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक) भी पहले दौर से आगे नहीं बढ़ पाईं। इसके बाद सिर्फ चार (1956 मेलबर्न, 1960 रोम, 1968 मैक्सिको और 1976 मॉट्रियल) बार ऐसा हुआ जब कोई भी भारतीय महिला खिलाड़ी ओलम्पिक में नहीं खेली।
दिग्गज शाइनी विल्सन (1984 लॉस एंजिल्स) बेटियों के ओलम्पिक में भाग लेने के 32 साल बाद किसी स्पर्धा के सेमीफाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं। शाइनी 800 मीटर दौड़ के अंतिम चार में पहुंचीं। इन्हीं खेलों में उड़न परी पीटी ऊषा ने एक और कदम आगे फाइनल में जगह बनाकर पदक की उम्मीद जगा दी। वह फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। उन्होेंने 400 मीटर बाधा दौड़ में 55.42 सेकेंड के समय के साथ राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया पर कुछ सेकेंड से पदक से चूक गईं। 
2004 एंथेस ओलम्पिक में लांग जंपर अंजू बॉबी जार्ज पांचवें स्थान पर रहीं। उन्होंने 6.83 मीटर की कूद लगाई जो आज तक राष्ट्रीय रिकॉर्ड है। रियो ओलम्पिक 2016 में जिम्नास्ट दीपा करमाकर भी चौथे स्थान पर रहते हुए पदक से चूक गईं। वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी (69 किलोग्राम, सिडनी 2000) 48 साल बाद ओलम्पिक में पदक जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बनीं।
शटलर पीवी सिंधू (रियो 2016) ओलम्पिक में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं। सिंधू की उम्र तब 21 साल की थी और वह ओलम्पिक पदक जीतने वाली देश की सबसे युवा भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। साइना नेहवाल (लंदन, 2012) में पदक जीतने वाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बनी थीं। उन्होंने कांसा जीता था। यह एकमात्र खेल है जिसमें दो महिलाओं ने पदक जीते हैं। कुश्ती में साक्षी और मुक्केबाजी में मैरीकॉम अपने-अपने खेल में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। इन दोनों ने कांस्य पदक जीते हैं।
रियो ओलम्पिक 2016 में देश के सबसे बड़े 117 सदस्यीय दल ने भाग लिया था। कई स्टार खिलाड़ियों खासकर पुरुषों से पदक की उम्मीद थी पर कोई भी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। ऐसे में पहलवान साक्षी मलिक कांस्य और शटलर सिंधू ने रजत जीतकर किसी तरह मुल्क की लाज बचाई। 

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