ओलम्पिक में बढ़ता ही गया महिला खिलाड़ियों का कारवां

69 साल में महिला एथलीटों की संख्या 14 गुना बढ़ी
इस बार 55 पेश करेंगी चुनौती जिनमें 35 पहली बार खेलेंगी 
खेलपथ संवाद। 
नई दिल्ली।
बेटियां न ही कमजोर हैं, न ही बेटों से कमतर। ओलम्पिक खेलों के महाकुम्भ में भारतीय खिलाड़ी बेटियों ने अपने 69 साल के सफर में न केवल 14 फीसदी बढ़ोत्तरी की बल्कि कई दफा तो मुल्क की नाक कटने से भी बचाई। 2000 सिडनी ओलम्पिक में भारोत्तोलक कर्णम मल्लेश्वरी तो 2016 रियो ओलम्पिक में शटलर पीवी सिंधू और पहलवान साक्षी मलिक के कमाल को शायद ही कोई भारतीय भूला हो। कर्णम ओलम्पिक खेलों में पहली पदक विजेता भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। 
चार बेटियों के साथ शुरू हुआ ओलम्पिक का ऐतिहासिक सफर 69 साल में 14 गुणा बढ़ गया। यह लगातार दूसरा ओलम्पिक है जब खेलों के महाकुंभ में शिरकत कर रही देश की बेटियों की संख्या लगभग पुरुष खिलाड़ियों के बराबर ही है। देश की चार बेटियों ने पहली बार 1952 हेलसिंकी ओलम्पिक में दो खेलों एथलेटिक्स और तैराकी में हिस्सा लिया था। तो इस बार टोक्यो में रिकॉर्ड 55 बेटियां रिकॉर्ड 15 खेलों में चुनौती पेश कर तिरंगे की शान बढ़ाएंगी।
पांच खेलों में तो सिर्फ बेटियों पर ही दारोमदार होगा। शुुरुआती 60 वर्षों और 16 ओलम्पिक (1952 से 2012) में जहां 147 बेटियां खेलीं वहीं अगले नौ साल और दो ओलम्पिक (2016 और 2021) में ही रिकॉर्ड 109 ने यह गौरव हासिल कर लिया।
रियो ओलम्पिक में तो बेटियों ने न सिर्फ पदक जीतकर तिरंगे की शान की बढ़ाई बल्कि खाली हाथ आने से भी बचाया। शटलर पीवी सिंधू रजत जीतने वाली देश की पहली महिला बनीं तो पहलवान साक्षी मलिका महिला कुश्ती में पहले पदक की साक्षी बनीं। बेटियां अब तब ओलम्पिक में पांच पदक जीत चुकी हैं। पिछले दोनों ओलम्पिक में बेटियों ने पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया है। टोक्यो में बेटियों से और ज्यादा पदकों की उम्मीद है।   
मैरी डिसूजा (1956, मेलबर्न) ने लगातार दूसरी बार ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई किया पर सरकार ने बजट की कमी का हवाला देकर उन्हें नहीं भेजा। वह इन खेलों में भाग लेने वाली एकमात्र महिला थीं। उन्हें 100 और 200 मीटर दौड़ में खेलना था। इसके अलावा 1988 और 1992 में छह-छह और 1996 में नौ महिलाओं ने खेलों में भाग लिया। वहीं तीन (1960, 1968 और 1976) खेलों में कोई महिला क्वालीफाई नहीं कर पाई।
नीलिमा मैदान पर उतरने वाली पहली भारतीय महिला 
नीलिमा घोष ओलंपिक खेलों में मैदान पर उतरने वाली पहली भारतीय महिला हैं। उन्होंने 21 जुलाई 1952 को हेलेंसिकी ओलंपिक  खेलों की 100 मीटर दौड़ में भाग लेकर यह रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज किया था। तब उनकी उम्र 17 साल की थी। नीलिमा के अलावा मैरी डिसूजा (100, 200 मीटर) और तैराक डॉली नाजीर व आरती शाह ने भी भाग लिया था।
ओलम्पिक (800 मीटर दौड़, 1984 लॉस एंजिल्स) के सेमीफाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी शाइनी विल्सन 1992 में बार्सिलोना में खेलों के महाकुंभ के उद्घाटन समारोह में ध्वजवाहक बनने वाली पहली भारतीय महिला बनीं थीं। उनके अलावा अंजू बॉबी जॉर्ज (2004, एंथेस) ही यह उपलब्धि हासिल कर पाई हैं। यह दोनों ही खिलाड़ी एथलेटिक्स से हैं। इस बार मुक्केबाज मैरीकॉम को यह गौरव मिला है। मैरी एथलेटिक्स के अलावा यह सम्मान पाने वाली पहली महिला होंगी।
वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी 2000 सिडनी ओलम्पिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी थीं। उन्होंने कांस्य पदक जीता था वहीं शटलर पीवी सिंधू (2016, रियो) रजत पदक जीतने वाली देश की पहली महिला खिलाड़ी हैं। मैरीकॉम (2012, लंदन, कांस्य) खेलों के महाकुंभ में पदक जीतने वाली पहली मॉम हैं। साइना नेहवाल ने भी लंदन ओलम्पिक में कांस्य पदक जीता था। पैरालम्पिक में दीपा मलिक पहली भारतीय पदक विजेता महिला खिलाड़ी हैं। 
वर्ष         एथलीट
1980       18
1984       10
2000       21
2004       25
2008       23
2012       23
2016       54
2021       55

रिलेटेड पोस्ट्स