आओ ओलम्पिक दिवस के नाम पर करें तमाशा

इंटरनेशनल दिव्यांग पैरा शूटर दिलराज कौर की कौन लेगा सुध?
श्रीप्रकाश शुक्ला
मथुरा।
हम तमाशबीन हैं, जिससे मतलब निकलता हो उसे बाप बनाने में देर नहीं लगाते। आज समूचा देश अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक दिवस मना रहा है। उसे खिलाड़ियों, खेल प्रशिक्षकों और शारीरिक शिक्षकों से कोई लेना-देना नहीं है। यदि होता तो उत्तर प्रदेश के सैकड़ों खेल प्रशिक्षक, शारीरिक शिक्षक और खिलाड़ी गुरबत के दौर से न गुजर रहे होते। अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक दिवस मनाने से पहले इस दिवस के निहितार्थ भी समझें।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पदकों को अपने नाम कर स्वयं को साबित कर चुकी देहरादून की दिव्यांग पैरा शूटर दिलराज कौर आज जीवन-यापन के लिए सड़क किनारे नमकीन और बिस्किट बेचने को मजबूर हैं। दिलराज कौर ने विभिन्न प्रतियोगिताओं में 24 स्वर्ण, आठ रजत तथा तीन कांस्य पदक जीते हैं। इस शूटर ने उत्तराखंड स्टेट शूटिंग चैम्पियनशिप में 2016 से 2021 तक चार स्वर्ण पदक जीतने के साथ अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी एक रजत पदक हासिल किया है। इस तरह उसके नाम कुल 35 पदक हैं।
खेलों में पैरा शूटर दिलराज कौर की सफलता क्या कम है, क्या नारी शक्ति का गुणगान करने वाली हमारी हुकूमतों और खेलों से जुड़े लाखों लोगों का ध्यान नहीं दिलराज की तरफ नहीं जाना चाहिए? यह बहुत बड़ा सवाल है जिसका जवाब किसी के पास नहीं है क्योंकि हम नौटंकीबाज हैं। दिलराज जैसी मुफलिसी के दौर से गुजरने वाले खिलाड़ियों और खेल प्रशिक्षकों की संख्या देश-प्रदेशों में एक-दो में नहीं बल्कि हजारों में है लेकिन हमारा ध्यान उन पर नहीं जाएगा क्योंकि हमें तो ठकुरसुहाती में मजा आता है।
खैर, अंतरराष्ट्रीय पैरा शूटर दिलराज कौर देहरादून के गांधी पार्क के बाहर दो जून की रोटी के लिए नमकीन और बिस्किट बेच रही है। दिलराज के मुताबिक उन्होंने बीते 15-16 साल में निशानेबाजी में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश और प्रदेश का मान बढ़ाया है। इसके बदले में सरकार उन्हें एक अदद सरकारी नौकरी तक नहीं दिला सकी।
दिलराज कौर सिस्टम पर तंज कसते हुए कहती हैं कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि आत्मनिर्भर बनो। मैं नमकीन-बिस्किट बेचकर आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रही हूं। 3-4 महीने से घर के आसपास अस्थायी दुकान लगा रही थी, मगर वहां बिक्री इतनी नहीं होती थी कि गुजारा भी हो सके। किसी ने सुझाव दिया कि भीड़ वाले क्षेत्र में बेचो तो गांधी पार्क के बाहर काम शुरू किया है।
दिलराज के पिता सरकारी कर्मचारी थे। वर्ष 2019 में उनका निधन हो गया। इसके बाद उनकी पेंशन और भाई तेजिंदर सिंह की प्राइवेट नौकरी से किसी तरह गुजर-बसर हो रहा था। इस वर्ष फरवरी में भाई का भी निधन हो गया। अब घर में दिलराज और उनकी मां ही रह गई हैं। दोनों देहरादून के गांधी पार्क के बाहर एक खटिया लगाककर चिप्स व नमकीन बेचकर गुजर-बसर कर रही हैं। 4 साल के कार्यकाल में सात लाख लोगों को परोक्ष और अपरोक्ष रूप से रोजगार देने का दावा करने वाली उत्तराखंड की सरकार की कथनी और करनी को आप नहीं बल्कि दिलराज कौर ही समझेंगी।
उत्तर प्रदेश की स्थिति तो इससे भी ज्यादा खराब है। सैकड़ों प्रशिक्षक और हजारों शारीरिक शिक्षक खून के आंसू रो रहे हैं लेकिन उनकी सुध लेने की बजाय खेल संगठनों में जमे लोग मदद की बजाय गलबहियां कर रहे हैं। योग दिवस और ओलम्पिक दिवस मनाकर मीडिया में छा जाने को बेताब हैं। 21वीं सदी में जी रहे लोगों को शर्म आनी चाहिए क्योंकि वह 74 साल बाद भी ओलम्पिक का अभिप्राय नहीं समझ पाए हैं। 

 

 

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