नाओमी ओसाका ने उजागर किया टेनिस की दुनिया का स्याह सच

क्रिस साउटर ने प्रेस कान्फ्रेंसेज को गिद्धों का गड्ढा बताया
पेरिस।
जापान की मशहूर टेनिस खिलाड़ी नाओमी ओसाका के फ्रेंच ओपन ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट से खुद को हटा लेने से न सिर्फ टेनिस बल्कि खेल की पूरी दुनिया में तीखी बहस खड़ी हो गई है। ओसाका ने फ्रेंच ओपन के दौरान प्रेस कांफ्रेंस न करने का फैसला किया था। पहले मैच के बाद उनके ऐसा न करने पर फ्रेंच ओपन के आयोजकों ने उन पर 15 हजार डॉलर का जुर्माना लगा दिया। इसके विरोध में ओसाका ने अपने को टूर्नामेंट से बाहर करने की घोषणा की। 
ओसाका ने कहा था कि हाल में वे डिप्रेशन से पीड़ित रही हैं, इसलिए उनकी दिमागी हालत पत्रकारों के सवालों का सामना करने लायक नहीं है। इस विवाद पर टिप्पणी करते हुए विश्व बैंक की अनुसंधान इकाई के प्रमुख रह चुके मशहूर अर्थशास्त्री ब्रैंको मिलनाविच ने लिखा- ‘मैंने ये बात कई बार लिखी है कि टेनिस ऐसा खेल है, जिसमें एक संकीर्ण माफिया ने सारी ताकत हथिया ली है और वह खिलाड़ियों के साथ गुलाम की तरह व्यवहार करता है। यह ऐसा खेल है जो सिर्फ धनी देशों में धनी दर्शक वर्ग के लिए खेला जाता है।’
अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन की वेबसाइट पर एक टिप्पणी में कहा गया है कि ओसाका के अनिच्छा से मीडिया कान्फ्रेंस में भाग लेने के बजाय टूर्नामेंट से ही खुद को बाहर कर लेने के फैसले ने मैचों के बाद होने वाली प्रेस कान्फ्रेंसेज के कल्चर को लेकर व्यापक बहस छेड़ दी है। इन प्रेस कान्फ्रेंसेज का खिलाड़ियों की दिमागी सेहत पर क्या असर होता है, उससे जुड़े सवाल इसमें उठे हैं।
जूडी मरे फाउंडेशन के कंसल्टेंट क्रिस साउटर ने इन प्रेस कान्फ्रेंसेज को गिद्धों का गड्ढा बताया है। मशहूर ब्रिटिश टेनिस खिलाड़ी एंडी मरे ने ये फाउंडेशन अपनी मां के नाम पर बनाया है। मरे अकसर इस बात की शिकायत करते थे कि टेनिस कैसे किसी खिलाड़ी के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। साउटर ने कहा- ‘इन प्रेस कान्फ्रेंसों में पुरुषों का वर्चस्व होता है। पराजित खिलाड़ी के लिए इसमें शामिल होना एक भयावह अनुभव होता है। उनसे ऐसे सवाल पूछे जाते हैं कि वे क्यों हार गए। पत्रकार कुछ गंदगी ढूंढ़ निकालने की कोशिश में जुटे रहते हैं।’
चार बार ग्रैंड स्लैम खिताब जीत चुकीं 23 वर्षीया ओसाका ने ट्विटर पर लिखा था कि वे सार्वजनिक मंचों की स्वाभाविक वक्ता नहीं हैं। उन्हें कहा कि विश्व मीडिया का सामना करने के पहले उन्हें गहरी चिंता घेर लेती है। जब फ्रेंच ओपन के आयोजकों ने ओसाका पर 15 हजार डॉलर का जुर्माना लगाया और आगे प्रेस कान्फ्रेंस में न आने पर टूर्नामेंट से निकाल देने की धमकी दी, तो खुद ही टूर्नामेंट से बाहर होने का एलान करते हुए ओसाका ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि उनके इस निर्णय से पेरिस में सब लोगों का ध्यान खेल पर वापस जा सकेगा। ओसाका के इस फैसले के बाद आयोजकों ने राफेल नडाल सहित कई खिलाड़ियों की तस्वीर के साथ एक ट्विट पोस्ट किया, जिसमें कहा गया- ‘ये लोग अपने असाइनमेंट को समझते हैं।’ बाद में ये ट्विट डिलीट कर दिया गया।
विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि असाइमेंट यानी पूर्व वचनबद्धता की दुहाई देकर आयोजकों ने जो सख्ती दिखाई, वह डिप्रेशन की शिकार एक खिलाड़ी के साथ न्याय नहीं है। उन्होंने ये भी ध्यान दिलाया है कि हर खिलाड़ी पत्रकारों के सवालों का जवाब देने में माहिर नहीं होता। ऐसे खिलाड़ियों को होने वाले तनाव को समझा जाना चाहिए। लेकिन जिस समय खेल पर पैसा हावी हो गया है, ऐसी संवेदनशील सोच गायब हो गई है। स्पॉन्सर कंपनियां खिलाड़ियों को अपने बैनर के नीचे लाकर मीडिया के जरिए अपना प्रचार करती हैं। आयोजकों को चिंता उन कंपनियों की ही रहती है। उन्हें न तो खिलाड़ियों के हितों से कोई लेना-देना होता है, और न वे प्रेस कान्फ्रेंस की चिंता मीडिया या पत्रकारों के लिए करती है। ये बात आज ज्यादातर खेलों पर लागू होती है।

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