अपनी बेटी और बेटे को बनाऊंगी पहलवानः अलका तोमर

सुशील राजपूत मेरे लिए भगवान, ऐसे लोग बिरले ही होते हैं
श्रीप्रकाश शुक्ला
नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश के यश भारती सम्मान और अर्जुन अवॉर्ड से विभूषित सिसोली गांव के नैन सिंह तोमर-मुन्नी देवी की बेटी पहलवान अलका तोमर आज अपने पारिवारिक जीवन से बेहद खुश हैं। अलका का कुश्ती के प्रति लगाव घटने की बजाय और बढ़ गया है। ससुरालीजनों के प्रोत्साहन ने अलका में एक नया जोश और जुनून पैदा कर दिया है। वह अपने बच्चों को पहलवान बनाने का सपना देख रही हैं।
प्रतिस्पर्धी कुश्ती को अलविदा कह चुकीं अलका तोमर फिलवक्त जहां लगातार प्रतिभाशाली पहलवानों को दांव-पेच सिखा रही हैं वहीं बड़ी संजीदगी से बताती हैं कि वे अपनी बेटी और बेटे को भी सिर्फ पहलवान बनाने का ही सपना देख रही हैं। अलका कहती हैं कि मेरा बेटा बेशक दूसरे खेल को आत्मसात कर ले लेकिन बेटी बनेगी तो सिर्फ पहलवान। अलका अपनी बेटी के साथ हर पल जीना चाहती हैं। बकौल अलका मैं चाहती हूं कि मेरी बेटी भारतीय उम्मीदों को पंख लगाए।
वर्ष 1998 से प्रतिस्पर्धी कुश्ती में दांव-पेच दिखाने वाली अलका तोमर कुश्ती में अपनी सफलता का श्रेय परिजनों के साथ-साथ अपने प्रशिक्षक जबर सिंह सोम जी और नोएडा कालेज आफ फिजिकल एज्यूकेशन के संचालक सुशील राजपूत को देती हैं। अलका कहती हैं कि सुशील राजपूतजी मेरे लिए भगवान से कम नहीं हैं। उनकी मदद से ही मैं इस मुकाम तक पहुंचने में सफल हुई। श्री राजपूत ने 2001 से 2011 तक मेरे खान-पान का न केवल पूरा खर्चा वहन किया बल्कि मुझे अपने कालेज में निःशुल्क तालीम भी प्रदान की। 
मुझे ही नहीं वह लगातार अन्य खिलाड़ियों की भी मदद कर रहे हैं। एक पहलवान के लिए बेहतर डाइट जरूरी होती है। श्री राजपूत ने काजू-बादाम से लेकर खानपान का हर खर्च वहन किया। आज के युग में जब इंसान अपने परिजनों को दो जून की रोटी मुहैया न करा रहा हो ऐसे में 10 साल तक श्री राजपूत ने मेरी डाइट की व्यवस्था न की होती तो मेरे परिवार के लिए बहुत मुश्किल होता। सच कहें तो सुशील राजपूत जैसे खेल और खिलाड़ी हितैषी लोग बिरले ही होते हैं।

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