हिस्सों में बंटती फुटबॉल
यूरोपियन सुपर लीग में शामिल हुए 12 क्लब
लंदन। यूरोप के 12 सबसे धनी फुटबॉल क्लबों के अलग होकर यूरोपियन सुपर लीग बनाने का फैसला विश्व फुटबॉल के लिए अब तक का संभवतः सबसे बड़ा झटका है। लेकिन जानकारों का कहना है कि वर्षों से विश्व फुटबॉल जिस दिशा में जा रहा था, यह उसका स्वाभाविक परिणाम है। जिस तरह फुटबॉल के ढांचे पर धन का दबदबा बनने दिया गया, उससे ये संकट कभी न कभी खड़ा होना ही था।
फुटबॉल विशेषज्ञों के मुताबिक यूरोपियन सुपर लीग के गठन के बाद यूरोपीय फुटबॉल उस रूप में मौजूद नहीं रहेगा, जिस रूप में आज है। इसका असर पूरी दुनिया के फुटबॉल ढांचे पर पड़ेगा। गौरतलब है कि दुनिया भर के तमाम प्रतिभाशाली खिलाड़ी यूरोपीय लीगों में ही खेलते हैँ। फिलहाल, फ्रांस या जर्मनी का कोई क्लब अलग होने का ऐलान करने वाले समूह में शामिल नहीं है लेकिन जानकारों के मुताबिक आगे ऐसा नहीं होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है।
जर्मनी और फ्रांस के अलावा लीग फुटबॉल के लिहाज से तीन सबसे बड़े यूरोपीय देशों- ब्रिटेन, इटली और स्पेन के 12 क्लबों ने अपना अलग लीग बनाने का फैसला किया है। इनमें मैनचेस्टर यूनाइटेड, लिवरपूल, बार्सिलोना एफसी, रियाल मैड्रिड, युवेंतस और एसी मिलान शामिल हैं। अभी की व्यवस्था के मुताबिक खिलाड़ी क्लबों की ‘सम्पत्ति’ होते हैं। लेकिन ये क्लब वैश्विक या यूरोप चैम्पियनशिप के लिए राष्ट्रीय टीमों को खिलाड़ी उपलब्ध कराने को बाध्य होते हैं। इसके बदले राष्ट्रीय टीमें उन्हें पैसा देती हैं। जिस समय यूरो चैम्पियनशिप या दूसरे महाद्वीपों का चैम्पियनशिप टूर्नामेंट या फीफा वर्ल्ड कप फुटबॉल टूर्नामेंट होता है, उस समय लीग में छुट्टी रखी जाती है। यानी लीग और फीफा के तहत आने वाले टूर्नामेंटों का कार्यक्रम तालमेल से बनाया जाता है। अब बनने वाली नई लीग का राष्ट्रीय फुटबॉल एसोसिएशनों या फीफा (राष्ट्रीय एसोसिएशनों का वैश्विक परिसंघ) से क्या संबंध होगा, ये मालूम नहीं है।
जिन 12 क्लबों ने अलग होने का ऐलान किया है, उनके साथ दुनिया के सबसे मशहूर खिलाड़ियों में से ज्यादातर अनुबंधित हैं। घोषणा के मुताबिक नई लीग की शुरुआत इसी साल अगस्त से होगी। इसमें इंग्लैंड के छह क्लब (आर्सेलन, चेल्सी, लिवरपूल, मैनचेस्टर सिटी और मैनचेस्टर यूनाइटेड), स्पेन के तीन क्लब (एलेटिको डी मैड्रिड, बार्सिलोना एफसी और रियाल मैड्रिड), और इटली के तीन क्लब (एसी मिलान, इंटर मिलान और युवेंतस) हिस्सा लेंगे। इन क्लबों की तरफ से जारी साझा बयान में उम्मीद जताई गई है कि उनका पहला टूर्नामेंट शुरू होने से पहले कई और क्लब प्रस्तावित सुपर लीग से जुड़ेंगे।
इन क्लबों ने कहा है कि कोरोना महामारी के कारण मौजूदा यूरोपीय फुटबॉल का आर्थिक मॉडल डगमगा गया है। इसलिए अब ऐसी रणनीतिक दृष्टि और कारोबारी नजरिए की जरूरत है, जिससे यूरोपीय फुटबॉल ढांचे को सहायता मिल सके और उसका मूल्य बढ़ाया जा सके। लेकिन तीनों देशों के राष्ट्रीय फुटबॉल संघों ने इन क्लबों के इस कदम की कड़ी निंदा की है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन इन क्लबों के कदम को फुटबॉल के लिए बेहद हानिकारक बताया है। उन्होंने कहा है कि वे इन क्लबों के खिलाफ किसी भी कार्रवाई का समर्थन करेंगे। इटली के प्रधानमंत्री ने प्रस्तावित सुपर लीग को एक बकवास बताया है। उधर फ्रांस क राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इस पहल का हिस्सा न बनने के लिए अपने देश के फुटबॉल क्लबों की तारीफ की है।
राष्ट्रीय फुटबॉल संघों की इस बात में दम है कि इन क्लबों ने अपने आर्थिक हितों को तरजीह दी है। ऐसा उन्होंने यूरोपीय फुटबॉल के हितों की कीमत पर किया है। लेकिन जानकारों का कहना है कि खुद राष्ट्रीय संघों और संबंधित देशों की सरकारों ने क्लबों की ताकत बढ़ने दी। आर्थिक हितों पर तरजीह देने का ही ये परिणाम था कि यूरोपीय लीग टूर्नामेंटों को विश्व कप टूर्नामेंट से भी ज्यादा महत्व दिया जाने लगा। ऐसे में जब कुछ क्लबों को अपना आर्थिक हित खतरे में नजर आया, तो उनका अलग होकर नई लीग बनाने का फैसला आश्चर्यजनक नहीं है।