कमजोर मनोबल से शर्मनाक हार
हार-जीत खेल का हिस्सा है लेकिन एडीलेड टेस्ट में पहली बार खेली गई गुलाबी गेंद ने भारतीय क्रिकेट के इतिहास में काला अध्याय लिख दिया। रक्त जमाती सर्दी में भारतीय क्रिकेट प्रेमियों की धड़कनें तब थम गईं जब पूरी भारतीय क्रिकेट टीम पहले रात-दिन के टेस्ट मैच में 36 रन पर सिमट गई। क्रिकेट टीम न केवल आठ विकेट से हारी बल्कि भारतीय टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में सबसे कम रन बनाकर हारी।
आज से 46 साल पहले भारतीय क्रिकेट टीम ने 1974 के लॉडर्स टेस्ट मैच में सिर्फ 42 रन बनाये थे। मैच में पूरी टीम ने निराश किया और तू चल मैं आया की तर्ज पर भारतीय क्रिकेट टीम रेत के महल की तरह बिखर गई। विडम्बना यह कि टीम का कोई भी खिलाड़ी दहाई के अंक तक न पहुंच पाया। अतिरक्त रन भी दहाई के अंक तक नहीं पहुंचे। निराशाजनक यह है कि इस साल यह तीसरा मौका था जब टेस्ट मैच में टीम ने तीसरे दिन ही पराजय का वरण किया।
विडम्बना देखिये कि पहली पारी में बढ़त लेने के बावजूद भारतीय टीम के हौसले इतने पस्त थे कि महज 90 रन की चुनौती दूसरी पारी में आस्ट्रेलिया को दे पायी, जिसे उसने दो विकट पर 93 रन बनाकर हासिल भी कर लिया। भारत के नामचीन खिलाड़ी महज कागजी शेर साबित हुए। भारतीय सरजमीं से बाहर हुए पहले दिन-रात के मैच में खिलाड़ियों ने क्रिकेट प्रेमियों को निराशा के गर्त में धकेल दिया। ऐसे में आत्ममंथन की जरूरत है कि ऐसे शर्मनाक प्रदर्शन की असली वजह क्या है? क्या भारतीय खिलाड़ियों को विदेशी पिच पर खेलने में परेशानी होती है? वैसे भी दुनिया के सभी खिलाड़ी दूसरे देशों में प्रतिकूल वातावरण व मेजबान टीम के अनुरूप बनी पिचों पर खेलते हैं। क्या डे-नाइट मैचों को खेलने का अनुभव नहीं था?
क्या फटाफट क्रिकेट के सम्मोहन में टीम के खिलाड़ी टेस्ट मैचों में चौकड़ी भरना भूल गये हैं? क्या खिलाड़ियों के चयन में खोट था? निस्संदेह, क्रिकेट अनिश्चिताओं का खेल है लेकिन ऐसा भी क्या कि कोई भी खिलाड़ी दहाई के अंक तक नहीं पहुंच पाया? रोहित शर्मा आदि एक-दो नामचीन खिलाड़ियों के अलावा सारी ही टीम ही तो खेल रही थी? ऐसा भी नहीं है कि टीम में प्रतिभाओं की कमी हो। टीम के पास आस्ट्रेलिया से ज्यादा अनुभव भी है। क्या टीम के खेल में कोई तकनीकी खामी शेष थी? टीम के कोच रवि शास्त्री व टीम प्रबंधन को सोचना होगा कि टीम भावना में कड़ी कहां टूटी है। निस्संदेह इस हार से टूटे मनोबल से उबरने में टीम इंडिया को कुछ वक्त लगेगा। फिर भी मानना होगा कि टीम आस्ट्रेलिया बढ़िया खेली और मैच का पासा पलटने में बेहतरीन गेंदबाजी का प्रदर्शन किया, जिसका श्रेय कमिंस व हेजलवुड की सधी हुई गेंदबाजी को जाता है। लेिकन आस्ट्रेलिया के समक्ष मनोवैज्ञानिक पराजय स्वीकार करके घुटने टेकना कमजोरी जरूर कही जायेगी।